लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी

राज्य मुख्यालय लखनऊ।राम मन्दिर को लेकर एक अर्से से सियासत हो रही है यह बात किसी से छिपी नही है 1989 में कांग्रेस के ख़िलाफ़ बने विपक्ष के मोर्च ने वीपी सिंह के नेतृत्व में सरकार का गठन किया उस गठबंधन का हिस्सा भाजपा भी थी सरकार में होने का लाभ लेते हुए अयोध्या में राम मन्दिर के निर्माण को एल के आडवाणी के नेतृत्व में रथयात्रा निकाली गई और इस मामले को लोगों की भावनाओं से जोड़ने की कोशिश की गई इसी दौरान भारत की सेकुलर सियासत के मज़बूत स्तम्भ माने जाने वाले जिन्होंने कभी भी साम्प्रदायिक ताक़तों से समझौता नही किया नही तो सब सियासी नेता अपने मफाद की ख़ातिर किन्तु परन्तु कर लेते है लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव ने ऐसा नही किया उन्होंने ही देश की फ़िज़ा में ज़हर घोल रही आडवाणी की रथयात्रा को रोक दिया जिसके बाद केन्द्र में चल रही गठबंधन की सरकार भी हिल गई लेकिन लालू प्रसाद यादव ने किसी सियासी मजबूरी को आड़े नही आने दिया और वही निर्णय लिया जो राजधर्म ने कहा बस फिर क्या था साम्प्रदायिक ताकते 1990 के दशक से बहुसंख्यक वर्ग के जज़्बातों से खिलवाड़ करते चले आ रहे है।RSS या उसके राजनीतिक विंग भाजपा ने हमेशा इस मुद्दे को अपने सियासी सफ़र का हवाईजहाज़ बनाया और उसमें लगातार सफ़र करती चली आ रही है जब-जब देश में चुनाव की आहट होती है तभी वह इसको चुनावी ढाल बना सियासी लाभ लेती चली आ रही है 1992 में भी एक ऐसा ही आन्दोलन चलाया गया जिसको कारसेवक का नाम दिया गया उसका नेतृत्व भी आडवाणी ही कर रहे थे 92 के आन्दोलन में कारसेवकों का इतना जमावड़ा हुआ कि वहाँ हालात बेक़ाबू कर दिए गए क्योंकि तब राज्य में भाजपा की ही सरकार थी और केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी तब की राज्य सरकार के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने देश की सबसे बड़ी अदालत में शपथ पत्र देकर अदालत को यह भरोसा दिलाया कि हमारी सरकार बाबरी मस्जिद की पूरी सुरक्षा करेगी परन्तु सरकार ने शपथ पत्र के विपरीत जाकर कारसेवकों को अराजकता फैलाने की पूरी छूट दी जिसके बाद वहाँ कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद को शहीद कर दिया और केन्द्र में बैठी कांग्रेस की पीवी नरसिंह राव सरकार ने कोर्ट व केन्द्र सरकार को गुमराह करने के आरोप में राज्य सरकार को बर्खास्त कर दिया उसके बाद जो हुआ कि चारों तरफ़ देश में साम्प्रदायिक दंगे हुए और हज़ारों बेगुनाह मारे गए लेकिन साम्प्रदायिक सियासत करने वालों को ज़रा भी शर्म नही आई जो आज तक जारी है साम्प्रदायिक ताक़तों के रिमोट कन्ट्रोल RSS लगातार इस मुद्दे पर सियासत करता रहा कभी वह अदालत को बहुसंख्यक वर्ग की भावनाओं का सम्मान करने की बात कहता है तो कभी कुछ अब सवाल यह उठता है कि जो हिन्दुवादी संगठन इस मुद्दे से जुड़े है वह कहते है कि हमारे पास प्रयापत सबूत है तो फिर अदालत को यह कहने की क्या ज़रूरत है कि अदालत को बहुसंख्यक वर्ग की भावनाओं का ख़्याल रखना चाहिए जब हमारे पास सबूत है तो भावनाओं और आस्थाओं का ख़्याल रखने की बात कहाँ से आई इससे तो यह साबित होता है कि इनके पास कोई सबूत नही है देश की जनता को गुमराह किया जा रहा है सबकुछ गोलमाल है।RSS व भाजपा की रणनीति सब झूट पर आधारित है वह कभी हिन्दु राष्ट्र के मुद्दे पर कहता है कि इस मुल्क में हिन्दुत्व व हिन्दू राष्ट्र मुसलमान के बिना अधूरा है ख़ैर यह तो उनका चाल चरित्र और चेहरा एक न होने की वजह है अब जो हालात बनाए जा रहे है जिससे मोदी की भाजपा सरकार घिरी हुई है 2014 में मोदी की भाजपा जो वायदे कर सत्ता में आई थी उससे कोई सकारात्मक काम नही हुआ उसी को छुपाने के लिए राममंदिर का मुद्दा उठाया जा रहा ताकि देश का नौजवान रोज़गार की बात न करे काले धन को लाने की बात की गई थी उस पर क्या हुआ मोदी की सरकार के पास कोई जवाब नही है राफ़ेल पर क्या हुआ यह बताने से भी सरकार गुरेज़ कर रही है जब हमने कुछ किया ही नही तो जेपीसी बनाने से क्यों पीछे भाग रही है सीबीआई के निदेशक को रातों रात क्यों हठाया गया इस पर भी मोदी की सरकार बुरी तरह घिर गई है अब सरकार व RSS की स्थिति ऐसी लग रही है जैसे साँप ने पकड़ी मेंढकी न खाते बन रहा है और न उगलते बन रहा है देश की जनता को गुमराह कर रही है अपने राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा के द्वारा प्राईवेट बिल लाने की बात कर रही है जब सरकार के पास बहुमत है तो फिर प्राईवेट बिल की क्या ज़रूरत है सरकार क्यों पीछे भाग रही है इस मुद्दे पर गोदी मीडिया के ज़रिए यह बात फैलाई जा रही है कि मोदी और RSS में राममंदिर के मुद्दे को लेकर ठन गई है RSS मोदी पर दबाव बना रही है कि मोदी सरकार इस मुद्दे पर अध्यादेश लाए जिससे RSS की छवि ख़राब न हो और यह संदेश जाए कि संघ के द्वारा प्रयास किया जा रहा जो बिलकुल ग़लत है वैसे सरकार कहती है कि संघ का सरकार पर कोई कन्ट्रोल नही है सरकार अपनी मर्ज़ी से फ़ैसले लेती है जो सरासर ग़लत है मोदी सरकार सहित प्रदेशों की सरकारें RSS के कन्ट्रोल में है वह जो चाहते है वही होता है सरकार के कोई मायने नही है मंत्री अपनी रिपोर्ट सरकार के मुखिया को न कर सीधे RSS को करते है यह हाल है सरकार और RSS के बीच के रिस्तो का फिर यह कहना कि हमारा सरकार से कोई लेना देना नही है यह सब लोकसभा के चुनावों के महासंग्राम की तैयारी है और कुछ नही जनता को सावधान रहने की ज़रूरत है नही तो देश बहुत पीछे चला जाएगा सच्चाई तो यही है बाक़ी जनता फ़ैसला करेगी कि झूट बुनियाद पर खड़ी RSS व भाजपा की इमारत कब तक टिकती है।