नई दिल्ली: 1987 में हुए हाशिमपुरा नरसंहार मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने इस मामले में बुधवार को निचली अदालत के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें 16 पीएसी (प्रोविंशियल आर्म्ड कॉन्स्टेबुलरी) कर्मियों को बरी कर दिया गया था। हाई कोर्ट ने इन सभी को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। बता दें कि मेरठ के हाशिमपुरा में मई 1987 में अल्पसंख्यक समुदाय के 40 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था। पीएसी कर्मियों पर इनकी हत्या का आरोप था।

मार्च 2016 में सेशन कोर्ट ने सबूतों की कमी का हवाला देते हुए आरोपी 16 पीएसी कर्मियों को बरी कर दिया था। अदालत ने कहा था कि यह तो साबित होता है कि हाशिमपुरा मोहल्ले से 40 से 45 लोगों का पीएसी के ट्रक से अपहरण किया गया और उन्हें मारकर नदी में फेंक दिया गया। अदालत के मुताबिक, यह साबित नहीं हो पाया कि इस हत्याकांड में पीएसी कर्मी शामिल थे। इस मामले में गवाह थे बुजुर्ग रणबीर सिंह बिश्नोई। बिश्नोई इस साल मार्च में तीस हजारी कोर्ट में हाजिर हुए और मामले की केस डायरी को सौंपा। इस केस डायरी में मेरठ पुलिस लाइंस में 1987 में तैनात पुलिसकर्मियों के नाम दर्ज थे। इस केस डायरी को सबूत के तौर पर पेश किया गया था।

सरकारी वकील के मुताबिक, पीएसी कर्मी एक मस्जिद के बाहर इकट्ठे 500 में से तकरीबन 50 मुसलमानों को उठाकर ले गए। उन्हें गोली मार दी और उनके शव एक नहर में फेंक दिए। इस जनसंहार में 42 लोगों को मृत घोषित किया गया था। इस घटना में पांच लोग जिंदा बच गए थे, जिन्हें अभियोजन पक्ष ने गवाह बनाया था। बता दें कि इस मामले से जुड़े सबूत नष्ट किए जाने की बात भी सामने आ चुकी है। पीड़ित परिवारों ने इसके लिए सीधे तौर पर केंद्र और राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया था। इस मामले के मुख्य चश्मदीद गवाह थे जुल्फिकार नसीर। वह किसी तरह बच गए थे।

इस नरसंहार के करीब 30 साल बाद गाजियाबाद जिले के तत्कालीन एसपी विभूति नारायण राय ने एक किताब लिखकर इस घटना को याद किया था। ‘हाशिमपुरा 22 मई : द फारगॉटन स्टोरी आफ इंडियाज बिगेस्ट कस्टोडियल किलिंग्स’ किताब में नरसंहार और उसके बाद की घटनाओं का जिक्र किया गया था। इसमें राय ने कहा था, ”मेरी अंतरात्मा पर साल 1987 में उमस भरी गर्मियों में 22 मई की भयानक रात अब भी बोझ बनी हुई है। और इसी तरह से बाद के दिन मेरी यादों में ऐसे उकरे हुए हैं जैसे कि किसी पत्थर पर हों, इसने मुझे पुलिसकर्मी के रूप में जकड़ लिया। हाशिमपुरा का अनुभव मुझे अब भी पीड़ा देता है।”

क्या था हाशिमपुरा कांड

हाशिमपुरा नरसंहार मामले में जवानों पर आरोप था कि उन्होंने एक गांव से पीड़ितों को अगवा कर गंगनहर के पास ले जाकर उनकी हत्या कर दी थी। इतना ही नहीं हत्या करने के बाद उन जवानों ने सबके शव नहर में फेंक दिए थे। हाईकोर्ट ने इस मामले में बीते छह सितंबर को सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। यह मामला सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में स्थानांतरित किया गया था। 21 मार्च 2015 को निचली अदालत ने अपने फैसले में सभी 16 आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था। अदालत ने कहा था कि अभियोजन पक्ष आरोपियों की पहचान और उनके खिलाफ लगे आरोपों को बिना शक साबित नहीं कर पाया।

ट्रायल कोर्ट के इस फैसले को यूपी सरकार राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और कुछ अन्य पीड़ितों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। इसके अलावा भाजपा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भी याचिका दायर कर तत्कालीन मंत्री पी चिदंबरम की भूमिका की जांच के लिए अलग से याचिका दायर की थी। अदालत ने सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की। हालांकि मामले में 17 आरोपी बनाए गए थे लेकिन ट्रायल के दौरान एक आरोपी की मौत हो गई थी।

फरवरी 1986 में केंद्र सरकार ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने का आदेश दिया, तो वेस्ट यूपी में माहौल गरमा गया। इसके बाद 14 अप्रैल 1987 से मेरठ में धार्मिक उन्माद शुरू हुआ। कई लोगों की हत्या हुई, तो दुकानों और घरों को आग के हवाले कर दिया गया था। हत्या, आगजनी और लूट की वारदातें होने लगीं। इसके बाद भी मेरठ में दंगे की चिंगारी शांत नहीं हुई थी। इन सबको देखते हुए मई के महीने में मेरठ शहर में कर्फ्यू लगाना पड़ा और शहर में सेना के जवानों ने मोर्चा संभाला।

इसी बीच 22 मई 1987 को पुलिस, पीएसी और मिलिट्री ने हाशिमपुरा मोहल्ले में सर्च अभियान चलाया। आरोप है जवानों ने यहां रहने वाले किशोर, युवक और बुजुर्गों सहित कई 100 लोगों को ट्रकों में भरकर पुलिस लाइन ले गई। शाम के वक्त पीएसी के जवानों ने एक ट्रक को दिल्ली रोड पर मुरादनगर गंग नहर पर ले गए थे। उस ट्रक में करीब 50 लोग थे। वहां ट्रक से उतारकर जवानों ने लोगों को गोली मारने के बाद एक-एक करके गंग नहर में फेंका गया दिया। इस घटना के बाद करीब 8 लोग सकुशल बच गए थे। जिन्होंने बाद में थाने पहुंचकर रिपोर्ट दर्ज कराई थी, जिसके बाद हाशिमपुरा कांड पूरे देश में चर्चा का विषय बना।