गरीबी और भुखमरी निवारण मे आध्यात्म की भूमिका पर संगोष्ठी का आयोजन

लखनऊ : प्रज्ञा इंटरनेशनल ट्रस्ट द्वारा कबीर शांति मिशन के स्मृति भवन 6/7 विपुल खंड गोमती नगर लखनऊ मे संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंगीकृत टिकाऊ विकास के 17 लक्ष्यों मे से पहले और दूसरे लक्ष्यों "गरीबी और भुखमरी निवारण मे आध्यात्म की भूमिका" विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया । कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विधि एवं न्याय मंत्री श्री बृजेश पाठक जी थे ।

इस परिचर्चा मे विभिन्न धार्मिक, आध्यात्मिक गुरु व प्रबुद्ध-जनों सहित अपने अपने क्षेत्र के विषय विशेषज्ञों ने आध्यात्मिक चेतना ,वैश्विक शांति एवं नागरिक कर्तव्य-बोध के जरिये इन लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु अपने अपने विचार साझा किए ।

कार्यक्रम की शुरुवात दीप प्रज्वलन और राष्ट्र गीत से हुई , कार्यक्रम की अध्यक्षता न्यायमूर्ति एस सी वर्मा द्वारा की गयी । कार्यक्रम का संचालन श्री रश्मि सोनी जी ने किया।

भारत और दुनिया में सद्भाव, शांति, समृद्धि और खुशी को बढ़ावा देकर एक खुशहाल भारत के निर्माण की कामना को लेकर आयोजित इस संगोष्ठी मे आगत सभी मेहमानों , धर्मावलंबियों का स्वागत प्रमिल द्विवेदी ने किया। उसके बाद सर्वधर्म प्रार्थना के तहत बौद्ध, हिन्दू, इस्लाम, सिख, इसाई, जैन आदि धर्मावलंबियों ने बारी-बारी से प्रार्थनाएं की।

मुख्य अतिथि मंत्री विधि एवं न्याय बृजेश पाठक ने ने कहा कि गरीबी और भुखमरी शब्द सुनकर शरीर मे कंपन होने लगता है और मन मे पीड़ा , उन्होने आगे कहा कि हमारे देश मे किसानों कि हालत भी भुखमरी के कगार पर पहुँच रही है उनके लिए भी इस तरह के कार्यक्रम होने चाहिए जिससे उनकी हालत मे सुधार हो सके ।

भुखमरी और गरीबी को मिटाने में आध्यात्म की भूमिका पर हुई परिचर्चा में श्रीराम प्रपत्ति पीठाधीश्वर श्री स्वामी (डॉ.) सौमित्रिप्रपन्नाचार्य जी (देवराहा बाबा आश्रम, आस्तीक ऋषि तपस्थली) ने कहा कि ‘टिकाऊ विकास लक्ष्यों’ को हासिल करने में योगदान करना हर सनातन धर्मावलम्बी का प्रथम कर्तव्य है और महाभारत आदि ग्रन्थ इसकी नित्य प्रेरणा दे रहे हैं | धर्म और आध्यात्म का एक-एक उपदेश सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करवाने के लिये ही है | आध्यात्म से सतत प्रेरणा, ऊर्जा, निर्देश एवं मार्गदर्शन प्राप्त करना चाहिए |

प्रज्ञा इंटरनेशनल की संस्थापक सदस्या व ख्यातिप्राप्त लेखिका और इतिहासकार डॉ कीर्ति नारायण ने बताया कि आध्यात्मिक जागरूकता वह आधार है जिस पर मानव मूल्य सृजित होते हैं और ये भारतीय संविधान में निहित हैं।गरीबी को केवल तभी कम किया जा सकता है जब सद्भाव के मूल्यों को बढ़ावा दिया जाय इसलिए, टिकाऊ विकास के पहले दो लक्ष्यों गरीबी और भुखमरी को तभी हासिल किया जा सकता है जब विचार, शब्द और कार्य में, मानवीय ,नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों के प्रति स्वयं को प्रतिबद्ध कर किया जाए ।

लखनऊ विश्वविद्यालय सांख्यिकी विभाग की विभागाध्यक्षा व प्रज्ञा इंटरनेशनल की संस्थापक सदस्या प्रो.शीला मिश्रा, ने कहा कि आध्यात्मिक वृत्ति हमे जीवन के इस कल्याणकारी उद्देश्य के प्रति समर्पित करती है जहां गरीबी और भूख का अस्तित्व ही सम्भव नहीं हो सकता, सर्वे भवन्तु सुखिनः बस यही भाव रह जाता है। आध्यात्मिकता अर्थात बस यही याद कि; वृक्ष कबहुँ नहि फल भखै नदी न संचै नीर, परमारथ के कारण करने साधुन धरा शरीर।

अंतर्राष्ट्रीय वक्ता और थेओसोफिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के उत्तर प्रदेश के मुखिया श्री यू एस पाण्डेय जी ने कहा कि शारीरिक और मानसिक भूख और किसी भी अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए आध्यात्मिक आधार आवश्यक है।

राज्य नियोजन विभाग उत्तर प्रदेश के निदेशक डॉ आनंद मिश्रा ने कहा कि मुझे खुशी है कि टिकाऊ विकास के लक्ष्यों को आध्यात्मिक आयाम से जोड़कर अत्यंत लोकप्रिय एवं सुग्राह्य तरीके से जानकारी जनता तक पाहुचने का जो कार्य प्रज्ञा इंटरनेशनल ट्रस्ट कर रहा है बधाई के पात्र हैं, इससे उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि संयुक्त राष्ट्र को भी नई एवं व्यावहारिक दिशा मिलेगी ।

प्रज्ञा इंटरनेशनल ट्रस्ट के संरक्षक न्यायमूर्ति एस सी वर्मा ने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन मे कहा कि गरीबी और भुखमरी निवारण मे आध्यात्म की भूमिका" बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन इस पर जमीनी स्तर पर काम करने व एक मिशाल कायम करने की जरूरत है जिससे लोगों को प्रेरणा मिल सके ।

कार्यक्रम में विभिन्न धर्मावलम्बियों, आध्यात्मिक गुरुओं के अलावा अन्य गणमान्य शामिल थे। कार्यक्रम का समापन डॉ भानु के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ।