लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी

राज्य मुख्यालय लखनऊ। देश में मौजूदा सियासी हालात जुदा-जुदा से लगते है जब भी इसे क़रीब जा कर पढ़ने का मौक़ा मिलता तो बहुत कुछ दिखाई देने लगता है। अब आम आदमी इसको इतनी गहराई में जाकर परखने की कुवत (हिम्मत नही जुटा सकता)| असल में मुक़ाबला सच और झूठ के बीच है, अब यह तय करना कि कौन हसीन सपने दिखा रहा है और कौन सही रास्ते की बात कर रहा है| एक तरफ़ 31 प्रतिशत वोट है दूसरी तरफ़ 69 प्रतिशत| पहले प्रतिशत में कुछ वोट ऐसा है जो दलित-मुसलमान विरोधी है उसको आप रोक नही सकते लेकिन उसी में दस से पन्द्रह प्रतिशत वोट ऐसा है जो विकास और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ उधर गया था उससे वापिस आने की उम्मीद की जा सकती है लेकिन जो 69 प्रतिशत वोट है वह भिन्न-भिन्न सोच रखता है उसकी कोई सोच (आईडियोलोजी) नही है यह भी कहा जा सकता है, नही तो साम्प्रदायिकता को हराना कोई बहुत बड़ा काम नही है| हिन्दुस्तान जैसे मुल्क में साम्प्रदायिकता मज़बूत नही हो सकती यह बात हिन्दुस्तान की सियासत पर काफ़ी दिनों से नज़र रखने वाले जानकार मानते है| उनका तर्क है कि हिन्दुस्तान एक ऐसा मुल्क है जहाँ ऐसी ताकते हावी नही हो सकती जो एक तरफ़ा बात करे अब वह कोई भी हो सकती है जो इस तरह की बात करे कि हिन्दुस्तान में एकला चलो की रणनीति पर काम करो| यहाँ यह बात भी कहनी ज़रूरी है कि मुसलमान ने कभी इस तरह की किसी भी ताक़त को ऊउभरने नही दिया और साथ देने का तो सवाल ही नही पैदा होता, यही वजह रही कि उसके सियासी हीरो प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित नेहरू,लाल बहादुर शास्त्री, आयरन लेडी इन्दिरा गांधी ,मुरारजी देसाई , जयप्रकाश नारायण ,लोहिया , हेमवती नन्दन बहुगुणा ,बाबू जगजीवन राम ,चरण सिंह ,ज्योति बसु ,हरिकिशन सिंह सुरजीत , एबी वर्धन ,राजीव गांधी, संजय गांधी , वीपी सिंह , चन्द्रशेखर, इन्द्र कुमार गुजराल , देवीलाल ,सोनिया गांधी , मनमोहन सिंह , लालू प्रसाद यादव , मुलायम सिंह यादव , राहुल गांधी रहे और इन नेताओं को ही अपनी आईडियोलोजी माना, इसमें एक नाम भी मुसलमान का नही है, यह बात किसी से छिपी नही है| कभी अपनी कयादत की बात नही की इससे यह बात साबित होता है कि मुसलमान इस देश में सबको साथ लेकर चलने में यक़ीन रखता है लेकिन नाथूराम गोड़से व नागपुरिया आईडियोलोजी हमेशा बहुसंख्यक वर्ग को भ्रमित करते चले आ रहे हैं, कैसी घटिया आईडियोलोजी है? सबकुछ होने के बाद भी हिन्दु ख़तरे में है अगर यहाँ हिन्दु ख़तरे में है तो कहाँ सुरक्षित रहेगा। यह बात अलग है कि उपरोक्त सभी नेताओं ने इनके यक़ीन को ठेंस पहुँचाई इनके विकास के लिए कोई ठोंस कार्ययोजना नही बनाई और वह पिछड़ता चला गया आज उसकी हालत बद से बदतर हो गई है, यह बात मैं नही केन्द्र सरकार द्वारा गठित रंगनाथ मिश्र आयोग व जस्टिस राजेन्द्र सच्चर कमेटी की रिपोर्ट कहती है कि मुसलमान इस देश में किस तरह जीवन यापन कर रहा है परन्तु फिर भी वह देश की एकता की बात करता है| अब इसे क्या कहा जाए ? सबका साथ सबका विकास का नारा देकर मूर्ख बनाने वाले बहुसंख्यक वर्ग को धोखा दे रहे हैं, पाँच साल होने को है सरकार चलाते हुए एक काम नही बता सकते कि यह हमने किया है| देश हित में सिर्फ़ देश को बाँटने की नीति के अलावा हिन्दु-मुसलमान की बातें करवाने व करने के अलावा कोई काम किया हो तो बताए, मीडिया भी उनकी इसी नीति पर फ़ोकस किए हुए है, वह भी सकारात्मक मुद्दों से दूर हिन्दु-मुसलमान पर ही लगा है| क्या इन मुद्दों से देश चलेगा? क्या यही मुद्दे देश की आर्थिक रीढ़ की हड्डी को मज़बूत करेगा? क्या विकास दर को बढ़ाएगा? यह बात हमें खुद सोचनी होगी कि बहुत हो चुका हिन्दु-मुसलमान-सिख-ईसाई या दलित अब यह नही चलेगा, देश की बात होगी एकता की बात होगी, अखंडता की बात होगी। देश में अमन सुकून रहे, तरक़्क़ी की राह पर चले, एकता की माला बने, हमें ऐसे हालात बनाने होगे, हमें उनको नकारना होगा जो इस मुल्क को धर्मवाद, जातिवाद या किसी और वाद में ले जाना चाहते हैं | इसकी ज़िम्मेदारी सबसे ज़्यादा किसी के पास है तो वह है बहुसंख्यक वर्ग के पास| उसे अपने आँख कान खोलने होगे तब हमारा प्यार वापिस आएगा नही तो देश बहुत पिछड़ जाएगा जिसका सबसे ज़्यादा नुक़सान बहुसंख्यक वर्ग को ही होगा क्योंकि यह भी सच है फ़ायदा और नुक़सान दोनों उसी को होता है जो संख्या में ज़्यादा होता है ? आख़िर में एक बात कह कर अपनी बात ख़त्म करता हूँ , मुसलमान ने इस देश में अपना क़ायद हिन्दु नेताओं को ही क्यों बनाया? क्योंकि वह इस देश को बाँटना नही चाहता है, वह इसे एक माला बनाए रखना चाहता है और खुद भी इसका मोती बनकर उस माला का हिस्सा रहना चाहता है बस।