नयी दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के लापता छात्र नजीब अहमद के मामले में सीबीआई को क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करने की अनुमति दी है। हाई कोर्ट ने नजीब अहमद की मां फातिमा नफीस के उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने नजीब के केस में सीबीआई को हटाने, मामले की एसआईटी जांच कराने और जांच की निगरानी करने का अनुरोध किया था। हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद लोगों की कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही है।

भारत में मुस्लिम छात्रों के सबसे बड़े संगठन मुस्लिम ऑर्गेनाइजेश ऑफ इंडिया (एमएसओ) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुहम्मद शाहबाज़ मिस्बाही ने कहा कि लोगों को नजीब अहमद के केस में सीबीआई पर भरोसा नहीं है। जिस तरह से सीबीआई मामले की जांच कर रही थी उससे साफ जाहिर होता है कि सीबीआई की केस में कोई दिलचस्पी ही नहीं थी। मिस्बाही ने कहा कि सीबीआई ने ना तो इस मामले में आरोपियों से कोई पूछताछ की, ना ही पूरी जांच पड़ताल की।

मिस्बाही ने हाई कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हुए कहा कि अगर मामले की एसआईटी से जांच कराई जाती तो शायद नजीब अहमद के मामले में इंसाफ हो पाता। मिस्बाही ने कहा कि सीबीआई की जब जांच ही अधूरी है, तो किस आधार पर वह क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर रहे हैं। मिस्बाही ने सवाल किया कि आखिर सीबीआई नजीब का 2 साल भी पता ही नहीं लगा पाई तो वह किस आधार पर क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर रही है।

गौरतलब है कि सीबीआई नजीब अहमद के लापता होने के मामले की जांच 16 मई, 2017 से कर रही है। एजेंसी ने करीब एक साल की जांच के बाद कहा कि उसने सभी पहलुओं से मामले की जांच की और पाया कि लापता छात्र के खिलाफ कोई अपराध नहीं हुआ है। 14 अक्टूबर की रात एबीवीपी से कथित रूप से जुड़े कुछ छात्रों के साथ कहासुनी के बाद अहमद 15 अक्टूबर, 2016 को जवाहर लाल विश्वविद्यालय के माही-मांडवी छात्रावास से लापता हो गया था।