नई दिल्ली: जलवायु परिवर्तन पर इंटरगवर्नमेंटल पैनल (आईपीसीसी) ने आज अपनी रिपोर्ट में ग्लोबल वार्मिंग को लेकर आगाह करते हुए इससे निपटने की रुपरेखा सामने रखी है। भारत को अपने 2022 तक के 175 गिगावाट अक्षय ऊर्जा के महत्वाकांक्षी लक्ष्य के साथ वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस के भीतर रखने में मदद मिलेगी। फिर भी, भारत को कोयला औऱ तेल में किए जाने वाले नये निवेश को लेकर सजग रहने की जरुरत है।

आईपीसीसी की 1.5 डिग्री सेल्सिसय पर रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक कार्बन उत्सर्जन 2030 तक आधी करनी होगी। अगर अभी की स्थिति बनी रही तो वैश्विक तापमान 2030 और 2051 के बीच 1.5डिग्री से ज्यादा हो जायेगा। ऐसे में उत्सर्जन को कम करने के लिये तत्काल उपाय करने की जरूरत है।

1.5 डिग्री के लक्ष्य को हासिल करने के लिये, कोयला खपत को 2030 तक कम से कम दो तिहाई कम करने की जरुरत होगी और 2050 तक बिजली उत्पादन के क्षेत्र में कोयला खपत को लगभग शून्य करना होगा। 2050 तक अक्षय ऊर्जा से 70-85% तक बिजली हासिल की जा सकेगी, हालांकि रूझानों के मुताबिक इसमें इससे भी ज्यादा संभावना है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सोलर, वायु और बिजली भंडारण तकनीक में सुधार होने की वजह से कहा जा सकता है कि व्यवस्थागत बदलाव पहले ही शुरू हो चुका है।

भारत के लिये भी तापमान को 1.5 डिग्री से नीचे रखना क्यों जरुरी है इसको समझाते हुए ग्रीनपीस के कैंपेन मैनेजर नंदीकेश शिवालिंगम कहते हैं, “भारत उन सबसे संवेदनशील देशों में शामिल है जहां जलवायु परिवर्तन की वजह से चरम मौसम की घटनाएँ होती हैं। आईपीसीसी रिपोर्ट के अनुसार भारत जैसे क्षेत्र अत्यंत गर्म हवा की चपेट में आ सकते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन की वजह से भारत जैसे विकासशील देशों के जीडीपी को भी नुकसान पहुंचेगा। भारत के तटीय इलाके पहले ही समुद्र स्तर के बढ़ने की वजह से संघर्ष कर रहे हैं, जो कि अगर तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस के नीचे नहीं रखा जाता है तो उससे और ज्यादा बढ़ेगा।”

नंदीकेश कहते हैं, “भारत का जलवायु परिवर्तन से निपटने की प्रतिबद्धता तारीफ के काबिल है। दुनिया भर के देशों में भारत का अक्षय ऊर्जा का लक्ष्य सबसे महत्वाकांक्षी है। फिलहाल भारत का इलेक्ट्रिक परिवहन की तरफ बढ़ने की योजना से हमारे पास बिजली और परिवहन व्यवस्था में बदलाव लाने का सबसे सही मौका है। ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव तेजी से हो रहा है। हम अब जिवाश्म ईंधन वाली अर्थव्यवस्था से अक्षय ऊर्जा वाले भविष्य की तरफ बढ़ रहे हैं। लेकिन इसको भी प्रभावकारी बनाने के लिये भारत को अपने कोयला और तेल में निवेश की योजना को फिर से सोचना होगा।”

आईपीसीसी की रिपोर्ट अपने आप में अनूठा और जलवायु विज्ञान के लिये महत्वपूर्ण है। सरकार और कॉर्पोरेट को अपने क्रिया-कलापों से यह दिखाने की जरुरत है कि वे इस विज्ञान को समझते हैं और इसकी गंभीरता से वाकिफ हैं।