ज़ीनत शम्स

एक साल पहले की कांग्रेस पार्टी और आज की कांग्रेस पार्टी में आज बहुत बड़ा अंतर स्पष्ट दिखाई देता है, आज की कांग्रेस आक्रमकता और आत्मविश्वास से भरी दिखाई देती है और यह बदलाव राहुल गाँधी के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद से हुआ है, कांग्रेस अध्यक्ष बनने के साल भर के अंदर ही राहुल गांधी ने पार्टी में नई जान फूंकी। जनता के बीच पुरानी और उम्रदराज दिखने वाली पार्टी को उन्होंने युवा दिखाने के लिए अहम कदम उठाए। राहुल ने इसके लिए हर महीने नई नियुक्तियां कीं। युवा नेताओं-कार्यकर्ताओं के नियुक्ति पत्रों पर दस्तखत किए। उन्होंने दिल्ली में पार्टी मुख्यालय समेत बाकी राज्यों में पार्टी का ढांचा इस तरह मजबूत करते हुए कांग्रेस का चेहरा बदला।

राहुल ने कांग्रेस की कमान संभालने के बाद सचिवों की संख्या को लगभग दोगुणा कर दिया। जहां पार्टी में पहले 40 से 45 सचिव होते थे, उनके आने के बाद इनकी संख्या 70 या उससे ऊपर पहुंच गई। सूत्रों के मुताबिक, इन 70 में से 40 सचिव ऐसे हैं, जिनकी उम्र 45 से कम है। मौजूदा कांग्रेस अध्यक्ष का मकसद पार्टी में औसतन 40 साल के उम्र वाले नेता चाहते हैं।

आपको बता दें कि इससे पहले तक कांग्रेस के मॉडल में एक वरिष्ठ नेता ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी का प्रभारी होता था। उसके हाथों में कई राज्यों की कमान होती थी, जहां उसके नीचे प्रत्येक राज्य में एक सचिव होता था। पर अब ऐसा नहीं है। नया एआईसीसी प्रभारी केवल एक राज्य का काम-काज संभालता है। उसके अंतर्गत दो से चार सचिव होते हैं।

प्रत्येक सचिव को कुछ विधानसभा क्षेत्र आवंटित हैं, जहां उन्हें कम से कम दो हफ्ते बिताकर मासिक रिपोर्ट पार्टी को भेजनी पड़ती है। कांग्रेस के वॉर रूम की बात करें, तो वहां सचिवों को हर रोज स्थानीय और प्रासंगिक मुद्दों पर अपडेट देना होता है। पार्टी को जमीनी स्तर पर सक्रिय दिखाने के लिए उन लोगों को साफ निर्देश है कि वे अपने-अपने राज्यों में नई दिल्ली के मुकाबले चीजों को लेकर अधिक सक्रिय रहें।

राजनीतिक जानकारों की मानें तो कांग्रेस में यह फेरबदल 2019 और 2024 के चुनाव को ध्यान में रखकर किया गया है। पार्टी उन चुनावों तक खुद की छवि मजबूत करने के लिए अभी से जुटी है। कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का कहना है कि युवा चेहरों, जमीनी स्तर पर सक्रियता और पार्टी के लिए दिए गए योगदान के आधार पर नए सचिवों का चयन किया जाता है।