मुश्ताक़ अली अंसारी

28 सितम्बर को भगत सिंह का जन्म दिवस देशभर में मनाया जाता है। इस दिन हम ही नहीं उनके घुरविरोधी दक्षिणपंथी सामप्रदायिक राष्ट्रवादी भी उन्हें श्रृंधांजलि देने के लिए बाध्य है और आपकी क्रान्तिकारी राष्ट्रवाद की विरासत को हड़पने के लिए उन्हें श्रृद्धांजलि दे रहे है। तब सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या शहीद-ए-आजम भगत सिंह का राष्ट्रवाद और देशभक्ति तथा संघ भाजपा का सामप्रदायिक राष्ट्रवाद व देशभक्ति एक है या एक दूसरे के विरोधी हैं, भगत सिंह का राष्ट्रवाद और देशभक्ति किसके हित में है? भगत सिंह का राष्ट्रवाद, देशभक्ति ब्रिटिश सरकार की गुलामी से देश को आजाद कराने व समाजवादी समाज की संरचना में निहित थी। वहीं संघ का साम्प्रदायिकता पर आधारित राष्ट्र की अवधारणा जो विभाजनकारी मनुवादी जाति व्यवस्था पर आधारित राष्ट्र जिसके शीर्ष पर सामन्ती ताकते विराजमान थी जो पूरी तरह ब्रिटिश साम्राज्य के आधार स्तम्भ थे। जबकि भगत सिंह का राष्ट्रवाद और देशभक्ति 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम और उसकी साझी विरासत में नौजवानों किसानों के संघर्षों में निहित है। साम्राज्यवाद विरोधी धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की चेतना और समाजवादी आधार पर समाज की संरचना जिसमें मानव द्वारा मानव के शोषण का उन्मूलन किया जाये, ये था भगत सिंह का राष्ट्रवाद। आज उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विश्वविद्यालयों को राष्ट्रवाद से विमुख होकर अराजकता का अड्डा बता कर बंद कर रहे हैं। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान क्रान्तिकारियों के खिलाफ गवाही देने वाले, माफीनामें लिखने वाले और आजादी के तुरन्त बाद आजादी आन्दोलन के पुमुख नेता निहत्थे महात्मा गाँधी की हत्या करने वालों का राष्ट्रवाद असल में देशी-विदेशी पूंजीपतियों, उद्योगपतियों और साम्राज्यवाद का सेवक है। इनका राष्ट्रवाद कागज पर बने देश के नक्शे से शुरू होकर अम्बानी अडानी, माल्या की डयोढ़ी पर जाकर खत्म हो जाता है। इनके राष्ट्रवाद में न छात्र है न नौजवान न ही मजदूर-किसान।

आज जब विश्वविद्यालयों से क्रान्तिकारी जनपक्षधर समाजवादी व्यवस्था की मांग करने वाला राष्ट्रवाद भगत सिंह के विचारों से लैस है। वहीं देशी विदेशी पूंजीपतियों की सांठगांठ से चलने वाला तंत्र जब राष्ट्रवाद के नाम पर सारे भ्रष्टाचार व घोटालों को छिपाने की कोशिश कर रहा हो ऐसे वक्त में भगत सिंह के विचारों को
समझने की आवश्यकता और जरूरी हो जाती है।

इस समय हमारा देश कारपोरेट परस्त सामप्रदायिक भाजपा सरकार की गलत नीतियों से जूझ रहा है इसमें करोड़ों लोग बेरोजगारी और भुखमरी के शिकार हो रहे है। भारत की दो तिहाई जनसंख्या मजदूरो, किसानों छोटे व्यापारियों की है उनको पूंजीपतियों और सरकार की मिली भगत से लूट ने पस्त कर दिया है। गरीबों के जनधन खाते खोलवाकर उसमें 15 लाख भेजने और काला धन वापस लाने के नाम पर नोटबंदी और उसके बाद जी0एस0टी0 ने देश की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है। दो करोड़ प्रतिवर्ष का वादा करके आयी मोदी सरकार रोजगार के मुद्दे पर चुप होकर बुलट ट्रेन की लफाजी करती रही और बड़े-बड़े उद्योगपति देश की बैंकों से हजारों करोड़ का कर्ज लेकर फरार होते जा रहे है। और अम्बानी अडानी बेदान्ता हजारो करोड का ऋण दबाये बैठी है। इतना ही नहीं राफेल घोटाले में शामिल अनिल अंबानी की कम्पनी रिलायन्स नेवल एण्ड इंजीनिरिंग कम्पनी जो 9000 करोड़ का कर्ज दबाये बैठी थी अब नये नाम रिलायन्स डिफेन्स के नाम से फ्रांसीसी कम्पनी डसाल्ट के बीच डील कर 36 हजार करोड़ से अधिक का घोटाला किया गया बैंकों व एल0आई0सी0 में जनता की गाढ़ी कमाई का जमा धन घोटाले और कर्ज में लूटा जा रहा है और आम जनता को सामप्रदायिकता की घुट्टी पिलाकर देश को सामप्रदायिक दंगों में बेरोजगारी और तंगहाली से पीड़ित युवाओं को झोंकने का षडयन्त्र लगातार जारी है।

ऐसे में शहीद-ए-आजम भगत सिंह की विचारधारा और उनका समाजवादी दर्शन है हम युवाओं का पथ प्रदर्शन कर सकता है। शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने कहा था जब गतिरोध की स्थित लोगों को अपने शिकंजे में जकड़ लेती है। तो किसी भी प्रकार की तब्दीली से वो हिचकिचाते हैं। इस जड़ता और निश्क्रियता को तोड़ने के लिए एक क्रान्तिकारी चेतना पैदा करने की जरूरत होती है अन्यथा पतन और बर्बादी का वातावरण छा जाता है लोगों को गुमराह करने वाली प्रतिक्रियावादी शक्तियां जनता को गलत रास्ते पर ले जाने में सफल हो जाती है इससे इंसान की प्रगति रूक जाती है और उसमें गतिरोध आ जाता है। इस परिस्थिति को बदलने के लिए यह जरूरी है कि क्रान्ति की चेतना ताजा की जाये ताकि इंसानियत की रूह में हरकत पैदा हो।

आज के दौर में जब गतिरोध की स्थित ने लोगांे को अपने शिकंजे में जकड़ रखा है। समाज की सभी नियंत्रणकारी चोटियों पर रूढ़िवादी प्रतिक्रियवादी ताकते मजबूती से जमी हुई हैं। ऐसे कठिन समय में हम इंसानियत की रूह में एक बाद फिर से हरकत पैदा करने के लिए सभी बहादुर, स्वाभिमानी, इंसाफ पसंद और प्रगतिशील नौजवानों का आहवान करते हैं जो सच्चे अर्थों में युवा हैं, जो आंगन की मुर्गी की तरह फुदकने के बजाय तूफानों में गर्वीले गरूड़ की तरह उड़ान भरने का साहस रखते हैं। जिन्होंने सपने देखने की आदत नहीं छोड़ी और जो नये सिरे से संघर्ष की योजना बनाकर देश की सत्ता पर काबिज देश का हजारो लाखों करोड़ जनधन कर्ज के रूप में उद्योगपतियों के ऊपर लुटाने वाली कारपोरेट परस्त साम्प्रदायिक भाजपा सरकार जो रक्षा सौदों में हजारो करोड़ के घोटाले और दलाली करने के बावजूद बेशर्मी के साथ देश की जनता को अपने अन्धजाल में फंसाये हुये है।