लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी

राज्य मुख्यालय लखनऊ।समाजवादी कंपनी परिवार में वर्चस्व को लेकर लम्बे अर्से से चली आ रही रार में तरह-तरह की चर्चाओं को बल मिल रहा है, सियासी गलियारों में हो रही चकल्लस में यह बात बहुत तेज़ी से गस्त कर रही है कि बसपा की सुप्रीमो मायावती ने सपा कंपनी के सामने ऐसी शर्त रखी है जिससे यादव परिवार हिल गया है।हमारे सूत्रों के अनुसार मायावती ने सपा कंपनी के सामने पारिवारिक रिस्ते सुधारने का प्रस्ताव रखा है उनका कहना है कि सिर्फ़ महागठबंधन से ही काम नहीं चलेगा पारिवारिक रिस्ते भी सही होने चाहिए।सपा से बग़ावत कर अपना मोर्चा बनाने वाले शिवपाल सिंह यादव से सम्बंध सुधारने की शर्त रखी है इस ख़बर के बाहर आने के बाद नई-नई कहानियाँ सामने खुल कर आ रही है मुलायम सिंह यादव को जन्तर मंतर पर सपा कंपनी के कार्यक्रम में ले जाने के लिए एक दिन पहले सारा यादव परिवार दिल्ली में जुटा था कि किसी तरह मुलायम सिंह यादव बेटे के द्वारा सजे मंच पर बैठ जाए जिसके बाद मुलायम सिंह यादव बेटे के मंच पर चले गए उसके बाद भाई शिवपाल सिंह यादव जो अपने आपको भाई के क़रीब मानते थे उनको काफ़ी आघात लगा वह इस समय अकेले सियासी युद्ध में डटे हुए है अब यह तो आना वाला समय ही बताएगा कि इस सियासी युद्ध में शिवपाल सिंह यादव का राजनीतिक भविष्य क्या होगा लेकिन इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि जिस तरीक़े से मुलायम सिंह यादव ने अपने भाई की बलि दी है उसकी कल्पना नहीं जा रही थी क्योंकि शिवपाल सिंह यादव मुलायम सिंह यादव के उन दिनों के भाई होने के साथ साथी थे जब मुलायम सिंह यादव की कोई राजनीतिक हैसियत नहीं होती थी परन्तु शिवपाल सिंह यादव अपने भाई को शीर्ष पर देखना चाहते थे और ऐसा हुआ भी लेकिन जब भाई का नंबर आया तो भाई का बेटा इतना बड़ा हो चुका था कि वह अपनी विरासत उसको सौंपना चाहते थे जो वह एक हद तक सौंप भी चुके थे बेटे को तमाम विरोध के बावजूद मुख्यमंत्री बनाकर जब मुलायम सिंह यादव ने बेटे के सर पर ताज रखने की घोषणा की तो सपा कंपनी के शीर्ष नेता इस फ़ैसले से सहमत नहीं थे चाहे वरिष्ठ नेता आज़म खान हो या प्रो रामगोपाल यादव शिवपाल सिंह यादव ने भी जमकर विरोध किया था लेकिन सपा ने कभी पार्टी बनने की कोशिश नही की यह तो प्राईवेट कंपनी ही है इस लिए इसमें वरिष्ठों की राय के कोई मायने नही है इसमें जो सीईओ चाहता है वही होता है।अगर पार्टी होती तो शायद बेटे का नंबर नही आता।इस लिए किसी के विरोध को अहमियत नहीं मिली हुआ वही जो कंपनी के सीईओ चाहते थे। लेकिन बेटा इतना सबकुछ पाने को बेताब हुआ कि उसने बाप को ही सपा कंपनी के सीईओ से हठाकर ख़ुद को ही कंपनी का सीईओ घोषित कर लिया और बाप को मार्गदर्शक मंडली में डाल दिया उसके बाद कोई कुछ कहने लगा तो कोई कुछ ज़्यादातर विश्लेषण कर्ताओ का कहना था कि यह सब मुलायम सिंह यादव की चाल का हिस्सा है जो किसी हद तक सही भी लगता था जो अब सही साबित हो रहा है तो कोई इसे कलयुग का खेल बता कर बेटे को निशाने पर लेते थे कहते थे आज यही कल्पना की जा सकती है वैसा ही हुआ पर भाई अपनी व मुलायम की बेइज़्ज़ती से खिन्न इस उम्मीद में रहा कि शायद अब हालात सुधरेंगे लेकिन कोई हल नहीं निकलता देख आख़िरकार भाई ने भी अपने तीर कमान से निकाल फिर से खड़े होने की कोशिश शुरू की इस उम्मीद के साथ कि मुलायम सिंह यादव मेरे साथ आ जाएँगे लेकिन वह यहाँ भी फ़ेल रहे और भाई बेटे के ही साथ थे है और रहेंगे भी ऐसा लगता है।असल में मुलायम सिंह यादव ने अपने राजनीतिक चरख़ा दाँव से बहुत से राजनीतिक घरानों को चित कर उनका सियासी मुक़ाम ख़त्म किया है ऐसे ही अपने भाई को निपटा दिया है अब यह बात अलग है कि छोटे भाई शिवपाल सिंह मुलायम सिंह यादव व बेटे को कितना नुक़सान पहुँचाते है यह तो आने वाला समय ही बताएगा।यूपी के राजनीतिक परिदृश्य को समझते हुए सपा कंपनी के सीईओ बहुजन समाज पार्टी से किसी भी सूरत में गठबंधन करना चाहती है उसके लिए कुछ भी क़ुर्बानी देने के लिए तैयार है इसी बीच एक यह ख़बर निकल कर आई है कि बसपा कि सुप्रीमो मायावती ने सपा कंपनी के मालिक के सामने यूपी में महागठबंधन करने के लिए चाचा शिवपाल सिंह यादव से सम्बंध सुधारने की शर्त रख दी है अब इसके दो मतलब निकाले जा रहे है कि असलियत में मायावती सपा कंपनी से गठबंधन ही नहीं करना चाहती इसी लिए ऐसी शर्त रख दी गई है ताकि सपा कंपनी गठबंधन की बात ही न करे और वह अकेले यूपी में लोकसभा चुनाव लड़े जिसकी वह तैयारी कर भी रही है क्योंकि हमारे भरोसे के सूत्रों के अनुसार चालीस से पचास सीटों पर बसपा ने प्रत्याशियों के नाम फ़ाइनल कर लिए है जिसकी घोषणा अक्टूबर के दूसरे हफ़्ते में करने की तैयारी है और अगर मायावती सपा कंपनी में हो रही रार को ख़त्म कराने का प्रयास कर रही है तो राजनीति के पण्डित इस बात को यह कह कर हवा में उड़ा रहे है कि सियासत में जो कहा जाता है उसको पूरा नहीं किया जाता वह तो बस एक नई बहस को जन्म देने भर के लिए होता है जिसमें वह कामयाब हो जाते है उसमें सच्चाई कुछ नहीं होती।

लेखक वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक समीक्षक है।