भोपाल: क्या बीजेपी दवाओं के ज़रिए चुनाव प्रचार करना चाहती है? चौंकिए मत क्योंकि जब आप भारतीय जनऔषधि परियोजना के तहत बांटी जा रही दवाईयों के पैकेट देखेंगे तो उसमें आपके साफ तौर पर भगवा रंग में भाजपा लिखा दिखेगा. कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी दवाईयों का भगवाकरण कर अपना प्रचार प्रसार कर रही है.

प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना के तहत देश भर में दवा दुकानें खोली गई हैं, मध्यप्रदेश में भी. इन केंद्रों पर महंगी दवाओं के सस्ते विकल्प मिलते हैं. लेकिन ये दवाएं अब चुनावी होती जा रही हैं. देश का पैसा जिस योजना में लगा हो वहां इन दवाईयों, सिरप और इंजेक्शनों के कवर पर भारतीय जनऔषधि परियोजना के पहले अक्षर भा, ज और प को भगवा रंग से लिखा गया है. बस चतुराई के साथ प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना में से 'प्रधानमंत्री' शब्द को छोटा कर दिया.

दुकान चलाने वालों का कहना है, नाम तीसरी दफा बदले गए हैं. भोपाल की जनऔषधि केन्द्र में बतौर फार्मासिस्ट काम रही रश्मि वर्मा ने बताया ये एक कंपनी की दवा है, जिसकी पैकेजिंग अब बदली है, लेकिन 5-6 महीने पहले. इससे पहले भी पैकिंग चेंज हुई थी.

मध्यप्रदेश में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने बीजेपी पर आरोप लगाया है कि बीजेपी दवाइयों और इंजेक्शनों से चुनाव जीतना चाहती है. अपनी शिकायत लेकर पार्टी चुनाव आयोग पहुंच गई है. कह रही है कि गुणवत्ता परखे बगैर सिर्फ चुनाव प्रचार के लिए सत्ताधारी दल लोगों के स्वास्थ्य से खेल रही है. पार्टी प्रवक्ता भूपेन्द्र गुप्ता ने कहा बीजेपी कुटिलता से जनता के पैसे से पार्टी की ब्रांडिग कर रही है. सरकार ने गुणवत्ता मानक तय करने में लापरवाही चल रही है, जेनेरिक दवाएं फॉर्मूलेनशन से बनाते हैं लैब टेस्ट ज्यादा नहीं होते, जनस्वास्थ्य प्रभावित होगा.

वहीं बीजेपी का कहना है कि नाम बदलने में कुछ गलत नहीं, पार्टी प्रवक्ता राहुल कोठारी ने कहा जिस तरह से अच्छा काम हुआ है विपक्ष मीन-मेख निकाल रहा है, कोई प्रचार नहीं है मुझे लगता है जिन्हें बीजेपी के नाम से नींद नहीं आती वो ऐसी बातें निकालते हैं. जो योजना भारत की जनता की योजना है तो वहां भारतीय लगाना स्वाभाविक है.

ये योजना 2008 में सबसे पहले जन औषधि योजना के नाम से लॉन्च हुई थी, 2015 में इसका नाम बदलकर प्रधानमंत्री जन औषधि योजना किया गया. 2016 में वापस इस योजना का नाम बदलकर प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना कर दिया गया.

दवाओं के नाम पर चुनावी ब्रांडिंग उस देश में जो स्वास्थ्य सेवा सुलभ होने के मामले में दुनिया के 195 देशों में 154वीं पायदान पर हैं. हालात बांग्लादेश, नेपाल, घाना और लाइबेरिया से भी बदतर हैं. इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट बताती है भारत प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष स्वास्थ्य पर महज़ 1112 रुपये खर्च करता है, यानि लगभग 3 रुपये प्रति दिन. मध्यप्रदेश तो इस मामले में और कंजूसी दिखाते हुए महज़ 716 रुपये खर्च करता है.

तय कर लीजिए क्या हमारी सरकारें जो स्वास्थ्य सेवा पर जीडीपी का 1.15 फीसदी, खर्च करती हैं, जो दुनिया के सबसे कम खर्चों में से एक है, उन्हें ऐसी जनता के पैसों से ऐसी ब्रांडिंग का हक है.