नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह सूबे गुजरात में भी सरकारी धन के खर्च के इस्तेमाल में गड़बड़ी का मामला सामने आया है. चौंकाने वाली बात है कि इस सूबे में 16 वर्षों से19 विभागों के कई मदों में खर्च धन का हिसाब-किताब ही नहीं दिया गया है. वर्ष 2001 से लेकर वर्ष 2015-16 के बीच करीब 2140 करोड़ रुपये का इस्तेमाल कहां हुआ, इसका सरकार ने उपयोगिता प्रमाणपत्र ही नहीं दिया है. वर्ष 2018 में आई कैग की ऑडिट रिपोर्ट में इसका इस गड़बड़झाले का खुलासा हुआ है.ऑडिट के दौरान चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि 14.41 करोड़ के गबन के 158 मामलों में सरकार ने कोई कार्रवाई ही नहीं की. ऑडिट की अवधि का जो समय है, सिर्फ मई 2014 के बाद का वक्त छोड़ दें तो बाकी समय नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री रहे.

यह हाल तब रहा, जबकि गुजरात राज्य के वित्तीय नियम 1971 और जनरल फाइनेंशियल रूल्स 2005 के मुताबिक किसी भी स्पेशल स्कीम के तहत अगर बजट जारी हो तो वित्तीय वर्ष खत्म होने के अधिकतम 12 महीने के भीतर उसका हिसाब-किताब सहित उपयोगिता प्रमाणपत्र शासन में जमा कर दिया जाए. ताकि पता चल सके कि धनराशि का सही इस्तेमाल हुआ है या नहीं. नियम के मुताबिक जब तक कोई विभाग या सरकारी संस्थान जारी बजट का उपयोगिता प्रमाणपत्र न दे, तब तक उसे दूसरा बजट न जारी किया जाए. मगर सारे नियम-कायदे टूट गए. गुजरात में कुल 2140 करोड़ रुपये की धनराशि का कहां और कैसे इस्तेमाल हुआ, इसका सुबूत नहीं उपलब्ध कराया गया. यह धनराशि 2001-02 से लेकर 2015-16 के बीच विभागों को जारी हुई थी.

31 मार्च 2017 तक हुई गुजरात में कैग ने जांच के दौरान पाया कि पिछले 16-17 वर्षों से तमाम कार्यों के हिसाब-किताब गायब हैं. संबंधित मद में खर्च धनराशि का उपयोगिता प्रमाणपत्र(यूसी) ही उपलब्ध नहीं है. एनडीटीवी के पास मौजूद रिपोर्ट्स के मुताबिक कुल 2528 कार्यों के लिए जारी 228.03 करोड़ रुपये का हिसाब किताब पिछले आठ साल से अधिक समय से लटका हुआ है. इसी तरह 64 कार्यों के लिए जारी 250.96 करोड़ की धनराशि का उपयोगिता प्रमाणपत्र छह से आठ साल बीत जाने पर भी जमा नहीं हुआ. वहीं 166.50 करोड़ के 157 उपयोगिता प्रमाणपत्र चार से छह वर्ष बीत जाने पर भी नहीं जमा हुए. वहीं 942.45 करोड़ के यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट एक से दो साल के बीच के लंबित हैं. नियम के मुताबिक गुजरात सरकार की ओर से अपने संबंधित विभागों से ये प्रमाणपत्र लेकर सीएजी को उपलब्ध कराने थे.

2140 करोड़ की धनराशि में से 41 प्रतिशत हिस्सा नगर विकास विभाग के पास था. मगर यह विभाग वर्षों से हिसाब-किताब को दबाए बैठा है. करीब 870.23 करोड़ के कार्यों का उपयोगिता प्रमाणपत्र अर्बन डेवलपमेंट ने नहीं उपलब्ध कराया है. इसी तरह अर्बन हाउजिंग डिपार्टमेंट्स ने 383.13 करोड़ के प्रमाणपत्र नहीं उपलब्ध कराए हैं. ऑडिट के दौरान पता चला कि 158 मामलों में 14.41 करोड़ की धनराशि का गबन हुआ, मगर एक्शन नहीं लिया गया.