परम्परागत हजारों वर्षों से पूजा एवं यज्ञ आदि में हवन सामाग्री का प्रयोग होता आया है। हवन कुण्ड में अग्नि को प्रज्वलित करने के लिए आम के पेड़ की समिधा (लकड़ी) को अधिकाधिक रूप में प्रयोग में लाया जाता है तथा नवग्रह की शान्ति हेतु भिन्न-भिन्न समिधा (लकड़ी) का प्रयोग का किया जाता है जैसे-सूर्य ग्रह की शान्ति के लिए मदार, चन्द्रमा के लिए ढाक, मंगल के लिए खैर, बुद्ध के लिए लटजीरा, बृहस्पति के लिए पीपल, शुक्र के लिए गूलर, शनि के लिए शमी, राहु के लिए दूब, केतु के लिए कुश का प्रयोग किया जाता है।
हवन सामग्री का प्रयोग वातावरण को शुद्ध करता है। चिकित्सकीय दृष्टिकोण से माना जाता है कि यह अनेक प्रकार के हानिकारक जीवाणुओं एवं विषाणुओं से हमें बचाती है। बशर्ते इस हवन सामाग्री में मिश्रित जड़ी-बूटियां शुद्ध हों और सही अनुपात में हों।
सामान्यतः हवन सामग्री में बालछड़, छड़ीला, कपूरकचरी, नागर मोथा, सुगन्ध बाला, कोकिला, हाउबेर, चम्पावती एवं देवदार आदि काष्ठ औषधियों का मिश्रण होता है, जो वातावरण को शुद्ध एवं सुगन्धित करता है। वर्तमान में वर्षा ऋतु एवं शरद ऋतु के सन्धि काल के इस वातावरण में अनेकानेक ऐसे विषाणुओें की वृद्धि हुई है, जो असाध्य एवं कष्टप्रद बीमारियों को जन्म दे रहे हैं। इसके दृष्टिगत उक्त हवन सामग्री के साथ गूगल, छोटी कटेरी, बहेड़ा, अडूसा, नीम पत्र, वन तुलसी एवं वाकुची के बीज को मिलाकर यदि हवन प्रतिदिन किया जाय तो वह घर के वातावरण को विसंक्रमित करने में अधिक प्रभावी होगा, जिससे हम अनेक रोगों के संक्र्रमण से बचे रहेंगे। इस हवन को यदि प्रतिदिन सम्भव न हो तो सप्ताह में दो दिन अवश्य करें।
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