नई दिल्ली: झारखंड में मजदूरों के कल्याण के नाम पर करोड़ों रुपये की वित्तीय अनियमितता की बात सामने आई है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, श्रमिक कल्याण उपकर (सेस) के नाम पर झारखंड सरकार ने वर्ष 2008-09 से साल 2016-17 (8 साल) के बीच सरकारी परियोजनाओं का ठेका लेने वाले ठेकेदारों से 312.90 करोड़ रुपये वसूल किया। इन पैसों को मजदूरों के हक में खर्च करना था, लेकिन CAG की छानबीन में दूसरी ही तस्वीर सामने आई है। सरकार के खर्चों और आय का ब्योरा रखने वाली सर्वोच्च संस्था के मुताबिक, झारखंड सरकार ने उपकर के मद में वसूली गई राशि को श्रमिक कल्याण बोर्ड (फरवरी 2018 तक) में जमा ही नहीं कराया।
CAG ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि श्रमिक कल्याण बोर्ड में पैसे को जमा न कराने के कारण सेस वसूलने का उद्देश्य पूरा नहीं हो सका। साथ ही राज्य सरकार की जवाबदेही पर भी सवाल उठाया गया है। CAG ने झारखंड के वित्त विभाग से सेस के मद में वसूली गई राशि को जल्द से जल्द श्रमिक कल्याण बोर्ड में जमा कराने को सुनिश्चित करने की सिफारिश की है। मालूम हो कि CAG की रिपोर्ट में जिस अवधि का उल्लेख किया गया है, उस दौरान मधु कोड़ा (निर्दलीय), शिबू सोरेन (झामुमो), अर्जुन मुंडा (बीजेपी) और हेमंत सोरेन (झामुमो) झारखंड के मुख्यमंत्री रहे। फिलहाल रघुबर दास (बीजेपी) प्रदेश के सीएम हैं।
CAG ने उठाए गंभीर सवाल: CAG ने श्रमिकों के कल्याण के लिए वसूले जाने वाले उपकर के संबंध में निर्धारित प्रावधानों का भी हवाला दिया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कांट्रैक्ट लेबर (रेग्युलेशन एंड एबोलिशन) रूल्स, 1971 के तहत श्रमिक कल्याण के मद में लगाए गए सेस से प्राप्त राशि को श्रमिक कल्याण बोर्ड में जमा कराना अनिवार्य है, ताकि इस पैसे का इस्तेमाल मजदूरों के कल्याण में किया जा सके। CAG की रिपोर्ट के अनुसार, तमाम नियम-कायदे के बावजूद राज्य सरकार ने प्रावधानों का पालन नहीं किया। झारखंड सरकार पर गंभीर सवाल उठाते हुए रिपोर्ट में कहा गया कि श्रमिक कल्याण उपकर से मिली राशि का राजस्व के तौर पर इस्तेमाल किया गया और संबंधित वर्षों में इसे रिवेन्यू सरप्लस (राजस्व की अधिकता) के तौर पर दिखाया गया। साथ ही राजकोषीय घाटे (सरकार की आय और खर्च का अंतर) को भी कम करके दिखाया गया।
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