नई दिल्ली: देश में अनुसूचित जाति के छात्रों की पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप के नाम पर बड़े घोटाले का खुलासा हुआ है। यूपी, महाराष्ट्र, पंजाब, तमिलनाडु और कर्नाटक में कैग की ऑडिट के दौरान इस खेल का खुलासा हुआ। पांच साल में आंख मूंदकर इन राज्यों में 18 हजार करोड़ रुपये से अधिक की छात्रवृत्ति बंटी। न नियमों का ख्याल किया गया, न उपभोग प्रमाणपत्र लिए गए, न ही किसी तरह की जांच हुई। चौंकाने वाली बात रही कि एक ही रोल नंबर, एक ही जाति प्रमाणपत्र पर हजारों छात्रों को धनराशि जारी कर दी गई। इससे सिस्टम में शिक्षा माफिया से लेकर अफसरों की भूमिका पर बड़े सवाल खड़े होते हैं।187581 छात्रों के खाते में तो निर्धारित से 4967.19 लाख रुपये ज्यादा भेज दिए गए।

सिर्फ नमूना जांच में इतनी गड़बड़ियां सामने आई हैं, बताया जा रहा है कि अगर ओबीसी से लेकर जनरल आदि वर्गों की सभी छात्रवृत्ति वितरण की जांच हो तो यह देश के बड़े घोटालों में से एक होगा। वर्ष 2018 की रिपोर्ट नंबर 12 में कैग ने देश में दलित छात्रों की छात्रवृत्ति लूट की पोल खोलकर रख दी है। कैग ने सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय से वित्तीय अनियमितताओं की जांच कराकर दोषी अफसरों पर कार्रवाई की संस्तुति की है। साथ ही छात्रवृत्ति वितरण की मौजूदा व्यवस्था बदलकर फुलप्रूफ व्यवस्था लागू करने की सिफारिश की है। दरअसल पोस्टमैट्रिक स्कॉलरशिप को दशमोत्तर छात्रवत्ति कहते हैं, जो दसवीं से ऊपर की कक्षाओं के छात्रों को मिलती है।

कैग ने 2012 से लेकर 2017 तक की ऑडिट के दौरान सिर्फ उत्तर-प्रदेश में कुल 1.76 लाख ऐसे मामले पकड़े, जिसमें एक ही क्रमांक के जाति प्रमाणपत्र पर 233.55 करोड़ रुपये बांटने का खुलासा हुआ। इसी तरह 34652 केस ऐसे मिले, जिसमें अभ्यर्थियों के आवेदन में एक ही क्रमांक यानी सेम हाईस्कूल की सर्टिफिकेट लगी रही। ऐसे आवेदनों पर 59.79 करोड़ रु जारी हुए। इसी तरह 13303 ऐसे मामले रहे, जिसमें एक ही बोर्ड रोल नंबर और एक ही जाति प्रमाण पत्र से 27.48 करोड़ का खेल हुआ।

हैरानी की बात यह रही कि ऑनलाइन साफ्टवेयर ने जब यह खेल पकड़ा तो भी संदिग्ध डेटा को विभागीय जिम्मेदारों ने करेक्ट कर दिया। यानी इन गड़बड़ियों को दुरुस्त कर खाते में धनराशि भेज दी। दरअसल ऐसी दो या तीन बार आवेदन कर कोई पैसा न हासिल कर ले या फिर एक ही प्रमाणपत्र पर कई छात्रों को छात्रवृत्ति न मिले, इसके लिए सक्षम पोर्टल पर अभ्यर्थियों का डेटा अपलोड होता है। यह पोर्टल एक ही सीरियल नंबर के दो या दो से अधिक सर्टिफिकेट मिलने पर संबंधित आवेदन को इनकरेक्ट श्रेणी में डाल देता है। मगर जिम्मेदारों ने इस इनकरेक्ट डेटा को करेक्ट कर फ्राड किया। इससे छात्रवृत्ति वितरण में कॉलेज से लेकर ऊपरी स्तर तक मिलीभगत के संकेत मिलते हैं।

कैग ने जांच में पाया कि 2016-17 के 1566 छात्रों के डेटा को करेक्ट कर दिया गया। जबकि सक्षम पोर्टल ने एक ही प्रमाणपत्र, रोल नंबर के चलते इन छात्रों को फेल कर दिया था। उत्तर प्रदेश में 57 मामले पकडे गए, जहां ज्यादा इनकम वाले सर्टिफिकेट पर भी धनराशि जारी कर दी गई। जबकि दो लाख से ज्यादा सालाना वार्षिक आय होने पर लाभ नहीं मिलना था। पांच राज्यों में 187581 छात्रों को 4967.19 लाख रुपे का अधिक भुगतान हुआ। बीए, बीएससी, बीकॉम जैसे कोर्स के लिए अधिकतम फीस 5000 रुपये निर्धारित थी, मगर इससे ज्यादा पैसा लुटाया ।

देश की सबसे बड़ी ऑडिट एजेंसी ने उत्तर प्रदेश के 75 में से सिर्फ दस जिलों के सौ कॉलेजों की जांच कर ही बड़ी गड़बड़ी पकड़ी। इसी तरह कर्नाटक के 30 में से आठ, महाराष्ट्र के 36 में से नौ, पंजाब के 22 में से छह, तमिलनाडु के 32 में से आठ जिलों के कुल 12900 में से 410 संस्थानों को जांच में शामिल किया। इन संस्थानों में रजिस्टर्ड 337700 में से 8200 अभ्यर्थियों के आवेदनों की जांच की गई। तब जाकर भारी पैमाने पर घोटाले का खुलासा हुआ। यूपी के कॉलेजों में नमूना जांच सत्र 2016-17 में हुई। यूपी में छात्रृवत्ति घोटाले की कई बार शिकायतें कर चुके पूर्वांचल विश्वविद्यालय से जुड़े शिक्षक नेता अनुराग मिश्रा कहते हैं-यह तो नमूना है, अगर यूपी में शुरुआत से लेकर अब तक सभी वर्गों की छात्रवृत्ति वितरण की जांच हो तो सिर्फ एनआरएचएम घोटाले से कई गुना बड़ा घोटाला निकलेगा। अनुराग कई बार यूपी सरकार को जांच के लिए पत्र लिखते रहे, मगर जांच कूड़ेदान में फेंक दी जाती रही।

कैग ने जांच के दौरान पाया कि छात्रवृत्ति को लेकर उत्तरदायी सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग ने कोई एक्शन प्लान ही नहीं बनाया। न ही मंत्रालय ने ऐसा कोई सर्कुलर जारी किया, जिससे 2012-17 तक की अवधि में छात्रवृत्ति के लिए छात्रों की पात्रता का समुचित मूल्यांकन हो सके। योग्य छात्रों का डेटाबेस ही नहीं उपलब्ध मिला।जांच में पता चला कि छात्रवृत्ति वितरण में 1986 में गठित कमेटी की संस्तुतियों के मुताबिक टाइमलाइन का भी पालन नहीं हुआ। अखबारों में हर साल छात्रवृत्ति के बारे में सूचना भी नहीं प्रचारित हुई।

कैग ने कहा है कि अनुसूचित छात्रों को छात्रवृत्ति देने का मकसद था कि वे बिना किसी आर्थिक बाधा के उच्च शिक्षा हासिल कर सकें। मगर पांचों राज्य आंकड़ा ही नहीं उपलब्ध करा सके कि कितने छात्रों ने छात्रवृत्ति के जरिए अपना कोर्स कंप्लीट किया। मॉनीटरिंग फ्रेमवर्क का अभाव रहा। कैग की ऑडिट में पता चला कि केंद्र और राज्यांश मिलाकर यूपी में कु 9580 करोड़ की धनराशि उपलब्ध रही, मगर इसमें से 7332.72 करोड़ रुपये की छात्रवृत्ति ही बंटी। इतना ही नहीं यूपी, महाराष्ट्र, तमिलनाडु में 375.30 करोड़ रुपये बैंक खाते या नाम के मिसमैच करने से बंट नहीं सका।

उपभोग प्रमाणपत्र ही नहीं दिए-नियम के मुताबिक किसी योजना के तहत मिले धनराशि का कितना इस्तेमाल हुआ इसका उपभोग प्रमाणपत्र संबंधित संस्थाओं को धनराशि जारी करने वाले विभाग या मंत्रालय को देना पड़ता है। मगर नमूना जांच में शामिल राज्यों में पैसे का उपभोग प्रमाणपत्र भी नहीं दिया गया। इससे बड़े पैमाने पर धनराशि के दुरुपयोग का अंदेशा होता है। महाराष्ट्र में जांच के दौरान पता चला कि नौ में से छह जिलों के समाज कल्याण आयुक्त ने संस्थाओं से न उपभोग प्रमाणपत्र मांगा और न ही दिया। तमिलनाडु में 2012-13 और 2013-14 के दौरान क्रमशः 377.49 और 899.49 करोड़ की धनराशि का समय से उपभोग प्रमाणपत्र नहीं जमा मिला।