लखनऊ के रचनाकार डा.नैयर मसूद पर राष्ट्रीय सेमिनार

लखनऊ: सरल व्यक्तित्व और पारखी नजर वाले डा.नैयर मसूद ने उर्दू साहित्य के फलक पर अफसानों की एक नई इबारत गढ़ी जो पहले नहीं मौजूद थी। वे छोटी-छोटी बातों को अपने जुदा अंदाज में विस्तार से बयान करते थे। अपनी कहानियों और अपने अलग तनकीदी नजरिए की बदौलत सारी दुनिया में मशहूर हुए| लखनऊ के उर्दू रचनाकार नैयर मसूद पर ये विचार उर्दू विद्वान डा.शम्सुर्रहमान फारुकी ने दूसरे सत्र के अध्यक्षीय वक्तव्य में व्यक्त किए। यहां राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह में शोएब निजाम के संयोजन व सिराज अजमली के संचालन में फखरुद्दीन अली अहमद मेमोरियल कमेटी की ओर से और उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी के सहयोग से डा.नैयर मसूद के व्यक्तित्व और कृतित्व पर दो सत्रों में संगोष्ठी का आयोजन किया गया था। यहां पढ़े लेखों को कमेटी किताब के रूप में प्रकाशित करेगी।

लखनऊ में 1936 में जन्मे और लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व फारसी विभागाध्यक्ष 21 से अधिक पुस्तकों का लेखन, संपादन और प्रकाशन किया है और उर्दू तथा फारसी में उनके लगभग दो सौ से अधिक लेख प्रकाशित हुए हैं। डा.मसूद को उत्तर आधुनिक उर्दू तथा कथा साहित्य के प्रवर्तकों में से एक माना जाता है। परिवर्तन तथा अस्तित्व के पतन की तरफ बढ़ने के बारे में असरदार कल्पनाएं सामने रखता उनका लघु कथा संग्रह ताऊस चमन की मैना बहुत विख्यात है। उन्हें उर्दू अकादमी के कई पुरस्कारों और प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कारों सहित सन् 2007 में सरस्वती सम्मान मिला था। उनका निधन गत वर्ष 24 जुलाई को हो गया था।

इससे पूर्व प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए अफसानानिगार सैयद मोहम्मद अशरफ ने उन्हें सहज रचनाकार बताते हुए कहा कि उनकी हर कहानी दर्द का मुख्तलिफ नगमा सुनाती है। उनकी कहानियों के पात्र बहुत ही आम होते थे। शीशाघाट जैसी कहानियों का जिक्र करते हुए डा.अशरफ ने कहा कि सिम्फनी जैसी लयकारी रखने वाली उनकी कहानियों का अंत हमेशा पाठकों की उम्मीदों से परे हमेशा जुदा होता था। फ्लैशबैक के अंदर फ्लैशबैक दिखाना उनकी खूबी थी।

प्रो.शारिब रुदौलवी ने आयोजन को सार्थक बताते हुए कहा कि डा.मसूद अफसानानिगारी और समीक्षात्मक दृष्टि के दोनों पहलुओं से उत्कृष्ट रचनाकार थे। उर्दू साहित्य में उनका योगदान भुलाया नहीं जा सकता। डा.मसूद पर किताब लिखने वाले प्रो.अनीस अश्फाक ने कहा कथा, शायरी, इतिहास लेखन समीक्षा आदि साहित्य की कई विधाओं में उन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किया। अर्जित ज्ञान को बांटना ही उनका मकसद रहा। काज़ी अफजाल हुसैन ने उन्हें समकालीन उर्दू कथाकारों से अलग नये नजरिये का रचनाकार बताते हुए कहा कि डा.मसूद ने उर्दू अफसानों में नयी दृष्टि का सूत्रपात किया। मीर अनीस के मर्सियों की विवेचना करते हुए उन्होंने लखनऊ और यहां की मर्सियाचख्वानी की परम्परा को समेटा। जिक्रे मीर भी उनकी बेहतरीन किताब है।

डा.नूर फात्मा ने उनकी कहानियों के विषयों पर लेख पढ़ा तो डा.मोहिदुर्रहमान ने डा.मसूद द्वारा गालिब की रचनाओं की समीक्षा पर अपना नजरिया बयां किया। खुर्शीद अकरम ने डा.मसूद द्वारा कुल 30-35 कहानियां लिखे जाने का जिक्र करते हुए कहा कि उनके अफसानों में चकरा देने वाला अनोखापन है। शायर फरहत अहसास का मानना था कि डा.मसूद के अफसाने मानवता के कई पक्षों से मुठभेड़ कराने को बाध्य करती हैं। दूसरे सत्र में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के शाफै किदवाई, कहानीकार खालिद जावेद, काज़ी जमाल हुसैन, सलीम इब्राहिम, शाहिद अख्तर, और फखरुद्दीन अली अहमद मेमोरियल कमेटी के अध्यक्ष आरिफ अयूबी सहित डा.सीमा सगीर इत्यादि ने भी विचार व्यक्त किए। डा.मसूद के परिवारीजनो में बेटी समरा मसूद व भाई अजहर मसूद ने भी अपने संस्मरण रखे। इस अवसर पर आकाशवाणी के कार्यक्रम निष्पादक, प्रतुल जोशी व डा.महेन्द्र पाठक सहित बड़ी तादाद में उर्दू रचनाकार व साहित्यप्रेमी उपस्थित थे।