शशांक यादव एम0एल0सी0 उ0प्र0

उ0प्र0 में एक लाख इन्जीनियरिंग व मैनेजमेंट की सीट खाली रह गई है। वोट राजनीति के चलते बी0एड0 वालों को बी0टी0सी0 हेतु मान्यता देकर शिक्षा जगत में भी लाखों युवाओं में परेशाली बैचेनी बढ़ गई। और तब है जब यू0पी0 के 39 कालेज पिछले साल बन्द हो चुके है।

देश के पैमाने पर देखों तो तश्वीर डराने वाली है। बेरोजगारी की दर बढ़ रही हैं। 04 करोड़ से ज्यादा युवा बेरोजगार है। 2018 में कुल 6 लाख नये बेरोजगार सृजन होने का अनुमान है महिलओं की स्थिति और भी बुरी है। वहाॅ 50 प्रतिशत से अधिक बेरोजगार है। ये बात दीगर है हमारे नव आर्थशास्त्री कह दे कि गृृह कार्य भी पकौड़े की तरह रोजगार है।

बात इतनी ही नही है कि इन्जीनियरिंग मैनेजमेन्ट की वजह हो देश कि प्रतिष्ठित उद्यत संस्थाये मानती है। कि हमारे तकनीकी स्नातकों में 60 प्रतिशत से अधिक रोजगार देने लायक ही नही है। नेता नगरी और पूॅजी प्रतियों के गठजोड़ ने सरकारी नियमों की धता पढ़ाकर पैसे के दम पर अंधाधुध कालेज खोल दिये जिनमें न तो अध्यापक ही ठीक है और न ही कोर्स आधुनिक रूप में है।

यही बेरोजगार हमारी फसेबुक और व्हाट्सएप यूनिवर्सटी के प्रोफेसर बन रहे है नोताओं के हिन्दू मुस्लिम बहस के श्रोता कार्यकर्ता और दर्शक सब फ्री में मिल रहे है। बेरोजगारी से उपजी कुंठा हिंसा नशे और अपराध में रास्ता देख रही है।

इसी पीढ़ी को लग रहा है कि आरक्षण उनका हक मार रहा है अल्पसंख्यक संसाधनों पर कब्जा किये है और इस शरारत में पाकिस्तान का हाथ है हमारा बेरोजगार युवा स्पष्ट दिशा में अभाव में कलुषित राजनीतिक का सबसे नरम चारा बन गया है। हम कभी भी श्रम की महत्ता को इज्जत नही दी है एक माइडसेट बना है कि अकलमंद आदमी बैठकर खाते है और वेवकूफ काम करते है। किसान का पढ़ा लिखा लकड़ा भी खेती को हेय दृष्टि मे रखता है और पूरी पढ़ाई का फोकस टीचर के लेक्चर की बमबारी पर निर्भर है हमारे यहाॅ शिक्षा या किसी भी विषय में नई जानकारी या प्रयोग को परास्नातक के बाद शोध छात्रों के लिये छोड़ दिया गया है इंटर के बाद से ही छात्रों में खुद को ढ़ूढ़ने की चाहत पैदा ही नही होने दी जाती है प्रोजेक्ट आधारित पढ़ाई छात्र को सोचने समझने और विश्लेषण के लिये मजबूर करती है लेकिन सवाल उठाना हमारे यहाॅ गुस्ताखी समझी जाती है क्यांेकि सवाल उठाते ही छात्र के अन्दर पैदा होने वाला आत्मविश्वास कल को सिस्टम के लिये बड़े सवाल खड़े कर सकता है इसलिये छात्र राजनीतिक को खलनायक का दर्जा दे दिया गया।

सवाल न उठे इसलिये बड़े आराम से देश का बड़े से बड़ा नेता भी माता सीता को टेस्ट ट्यूब बेबी, गणेश जी को सर्जरी का और कौरवों को स्टेमसेल सेल का उत्पादन मनाने की सार्वजनिक घोषणा करके तार्किकता की भूण हत्या आराम से कर देता है। ये एक शानदार साजिश है शिक्षा के क्षेत्र में शानदान काम कर रहे प्रतिष्ठित संस्थानों का निजीकरण करके फीस इतनी मंहगी कर दी जाती है कि गुणवत्ता परक शिक्षा केवल बमीरों की बतौती बने और पैसों के दम पर नीट के माध्यम से जीरो या निगेटिव 4 से 5 नम्बर पाने वाले भी डाक्टर बन रहे है।

रोजगार की गारण्टी सिर्फ 100 दिन तक ग्रामीण अकुशल श्रमिकों तक सीमित है शिक्षित, प्रशिक्षित बेरोतजगारों के लिये रोजगार की गारण्टी हमारे यहाॅ अधिकार नही बन सका है पूरे तन्त्र को मौजूदा समय में सिर्फ भीड़ की जरूरत है। भीड़ का न सिर होता है न चेहरा भीड़ आराम से रिमोट से नियंत्रित होती है। इस भीड़ के अगर कथाकथित पढ़े लिखे शामिल हो जाये तो अपराधों को तार्किक बनाने के बहाने मिल जाते है।

हमारा युवा निश्चित सोच, लक्ष्य और संवेदनाओं के अभाव में सिर्फ भीड़ का हिस्सा बन रहा है। सार्थक नागरिक बनने के लिये सार्थक गुणवत्ता परक शिक्षा इस धर्म का राजनीतिक के मिश्रण वाले पूॅजीपरस्त तन्त्र की न कभी प्राथमिकता थी न कभी रहेगी। बल्कि फासिस्ट सांेच यही चाहेगी इन्सान को रोबोट में तब्दील करने के लिये सबसे आसान हिन्दु मुस्लिम की चाशनी चटा कर नशे में रखना है बेरोजगारी के सवाल खुद ही दब जायेगे।

लेखक उ0प्र0 विधान परिषद् के सदस्य है।