लखनऊ: उत्तर प्रदेश चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी महासंघ के उप महामंत्री सुरेश सिंह यादव ने कहा है कि दिल्ली में जिस तरह से विरोध प्रकट करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जंतर मंतर में लगाई रोक को हटाया है। उसी तरह से उत्तर प्रदेश की सरकार प्रदेश की सरकार विधानसभा, मुख्यमंत्री आवास या फिर मुख्यमंत्री कार्यालय के आसपास धरना स्थल बहाल करें। उन्होंने कहा कि इको गार्डन पर होने वाले धरना प्रदर्शन और पीड़ित की आवास सरकार को सुनाई पड़ती। इसलिए धरना स्थल विधानसभा के आसपास बनाया जाए।

म्हासंघ के उप महामंत्री सुरेश सिंह यादव ने बताया कि केन्द्र की राजधानी के जंतर-मंतर पर सरकार की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ और अपनी मांगों के समर्थन में धरना-प्रदर्शन करने वाले, विभिन्न सामाजिक राजनीतिक संगठनों के अच्छे दिन आ गए हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने जंतर मंतर और वोट क्लब पर धरना-प्रदर्शन पर लगी रोक हटाने का आदेश दे कर नागरिकों के विरोध-प्रदर्शन करने के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की है। पिछले साल अक्टूबर में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने वायु प्रदूषण और प्रदर्शनकारियों द्वारा गंदगी फैलाने के बिना पर जंतर मंतर पर धरना-प्रदर्शन करने पर रोक लगा दी थी। गैर सरकारी संगठन मजदूर किसान शक्ति संगठन और कुछ अन्य संगठनों ने एनजीटी के इस आदेशको सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। अदालत का विश्वास है कि क्षेत्र की संवेदनशीलता और नागरिकों के शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के अधिकार के बीच एक संतुलन बनाने की जरूरत है। इसीलिए जंतर मंतर और वोट क्लब जैसे स्थानों पर धरना-प्रदर्शन करने पर पूर्ण पाबंदी नहीं लगाई जा सकती। सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में यह भी कहा कि जब चुनावों के दौरान राजनीतिक नेता वोट मांगने के लिए जनता के पास जा सकते हैं तो चुनाव बाद जनता उनके प्रति विरोध प्रदर्शन या अपनी लंबित मांगों की पूर्ति पर सरकार ध्यान आकृष्ट करने के लिए उनके कार्यालयों के पास क्यों नहीं जा सकती? यह सच है कि लोकतंत्र में आम जन को सरकार तक अपनी बात पहुंचाने का अधिकार है। धरना-प्रदर्शन इसका प्रत्यक्ष माध्यम है। इनके जरिये लोगों को अपनी भावनाओं को प्रकटकरने का अवसर मिलता है। इस तरह यह धरना-प्रदर्शन सेफ्टी बॉल्व की तरह काम करता है। श्री यादव रने यह भी कहा कि जरूरत पड़ने पर प्रदेश के कई संगठनों के साथ धरना स्थल बहाली के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जाएगा।