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हिंसक भीड़ को सजा देने के लिए सरकार बनाये क़ानून: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: गोरक्षकों द्वारा हिंसा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मॉब लिंचिंग की घटनाएं रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी किए है. कोर्ट ने चार हफ्ते में केंद्र और राज्यों को लागू करने के आदेश दिए है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कोई नागरिक अपने हाथ में कानून नहीं ले सकता. ये राज्य सरकारों का फर्ज है कि वो कानून व्यस्था बनाये रखें. कोर्ट ने कहा कि संसद इसके लिए कानून बनाए, जिसके भीड़ द्वारा हत्या के लिए सजा का प्रावधान हो. सुप्रीम कोर्ट अगस्त में मामले की अगली सुनवाई करेगा. इस मामले में तीन जुलाई को कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था.

गोरक्षा के नाम पर हिंसा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'मॉबोक्रेसी' को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता, और इसे नया नियम नहीं बनने दिया जा सकता है. कोर्ट के मुताबिक, इससे कड़ाई से निपटना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने गोरक्षा के नाम पर हुई हत्याओं के सिलसिले में प्रिवेंटिव, रेमिडियल और प्यूनिटिव दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा कि संसद को इसके लिए कानून बनाना चाहिए, जिसमें भीड़ द्वारा हत्या के लिए सज़ा का प्रावधान हो. मामले की अगली सुनवाई सुप्रीम कोर्ट अगस्त में करेगा.

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को इन दिशानिर्देशों को चार हफ्ते के भीतर लागू करने का आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी नागरिक कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकता, और यह राज्य सरकारों का फर्ज़ है कि वे कानून एवं व्यस्था बनाए रखें.

गौरक्षकों द्वारा हिंसा के मामले में सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को अपना फैसला सुनाएगा. सुप्रीम कोर्ट देश भर में इस तरह की मॉब लिंचिंग की घटनाएं रोकने के लिए दिशा निर्देश जारी करेगा. तीन जुलाई को कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था.

इस मामले की पिछली सुनवाई के दौरान CJI दीपक मिश्रा ने कहा था कि मॉब लिंचिंग जैसी हिंसा की वारदातें नहीं होनी चाहिए चाहे कानून हो या नहीं. कोई भी ग्रुप कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकता. ये राज्यों का दायित्व है कि वो इस तरह की वारदातें न होने दे. मॉब लिंचिंग के पीड़ितों को मुआवज़े के लिए इंदिरा जयसिंह ने कहा था कि धर्म, जाति और लिंग को ध्यान मे रखा जाए, लेकिन चीफ जस्टिस ने कहा ये उचित नहीं. पीड़ित सिर्फ पीड़ित होता है, उसे अलग-अलग खांचे में नहीं बांटा जा सकता. इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट को बताया कि अब तो असामाजिक तत्वों का मनोबल बढ़ गया है. वे गाय से आगे बढ़कर बच्चा चोरी का आरोप लगाकर खुद ही कानून हाथ में लेकर लोगों को मार रहे हैं. महाराष्ट्र में ऐसी घटनाएं हुई हैं.

याचिकाकर्ता के वकील संजय हेगड़े ने इन घटनाओं से निपटने और घटना होने के बाद अपनाए जाने वाले कदमों पर विस्तृत सुझाव कोर्ट के सामने रखे थे. ये सुझाव मानव सुरक्षा कानून (मासुका) पर आधारित हैं. सुझावों में नोडल अधिकारी, हाइवे पेट्रोल, FIR, चार्जशीट और जांच अधिकारियों की नियुक्ति जैसे कदम शामिल हैं. सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी किया था. राज्यों के चीफ सेकेट्री से पूछा था कि क्यों ना उनके खिलाफ कोर्ट की अवमानना का मामला चलाया जाए.

तुषार गांधी की याचिका में कहा गया है कि पिछले साल 6 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी कर कहा था कि गौरक्षा के नाम पर हिंसा की घटनाओं पर रोक लगनी चाहिए और हर जिले में नोडल अफसर बनाए जाएं. इसके बावजूद इन तीन राज्यों में गौरक्षा के नाम पर हिंसा की वारदातें हो रही हैं. याचिका में ऐसी सात घटनाओं का जिक्र किया गया है.

गौरक्षा के नाम पर बने संगठनों पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिका पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि वो प्राइवेट लोगों द्वारा किसी भी विजिलेंटिज्म को समर्थन नहीं करती. लेकिन कानून व्यवस्था राज्य सरकारों का काम है. संसद में भी सरकार ने यही बताया है. वहीं गुजरात सरकार की ओर से कहा गया कि सरकार ने ऐसे मामले में दोषी व्यक्ति को गिरफ्तार कर कारवाई की है.

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