नई दिल्ली: ईरान ने बुधवार को रणनीतिक रूप से स्थित चबहर बंदरगाह के विस्तार में निवेश करने के अपने वादे को पूरा नहीं करने को लेकर भारत की आलोचना की। साथ ही कहा कि यदि नई दिल्ली ईरान से तेल आयात में कटौती करता है तो उसे “विशेषाधिकार” खोने के लिए तैयार रहना होगा। ईरान के उप राजदूत मसूद रेज़वानियन रहाघी ने कहा कि यदि भारत यदि सउदी अरब, रूस, इराक, यूएस या किसी अन्य देश से तेल लेने का प्रयास करता है तो ईरान उसके विशेषाधिकार को समाप्त कर देगा। उन्होंने यह भी कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि चबहर बंदरगाह के विस्तार के लिए भारतीय निवेश का वादा करता है और अभी तक इससे जुड़े परियोजनाओं को भी पूरा नहीं किया गया है। ऐसी उम्मीद है कि भारत तत्काल चबहर बंदरगाह के विकास में सहयोग के जरूरी कदम उठाए। रहाघी ने ये बातें वैश्विक कूटनीति में उभरती चुनौतियों और अवसरों और भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर इसके प्रभाव पर एक सेमिनार में कही।

भारत, ईरान और अफगानिस्तान के लिए मध्य एशिया के अन्य देशों के साथ चहबर बंदरगाह को व्यापार करने के लिए सुनहरा द्वारा माना गया। मई 2016 में, भारत, ईरान और अफगानिस्तान ने एक समझौता किया। इसमें तीन देशों के बीच ट्रांजिट और ट्रांसपोर्ट कोरिडोर के रूप में चहबर बंदरगाह विकसित करने का निर्णय लिया गया। चहबर बंदरगाह को तीन देशों में माल और यात्रियों के परिवहन के अलाव ईरान में समुद्री परिवहन का क्षेत्रिय केंद्र बनाने का निर्णय लिया गया। ईरान से तेल आयात पर अमेरिकी प्रतिबंधों का जिक्र करते हुए रहाघी ने कहा कि उनका देश भारत के लिए एक विश्वसनीय ऊर्जा भागीदार रहा है। ईरान हमेशा तेल की “तर्कसंगत कीमत” का पालन करता है जो उपभोक्ताओं और आपूर्तिकर्ताओं दोनों के हित को सुनिश्चित करता है।

रहाघी ने कहा कि अगर भारत ईरान को सऊदी अरब, रूस, इराक, अमेरिका और अन्य देशों के साथ तेल की मांग के 10 प्रतिशत के लिए बदलाव करता है तो उसे डॉलर आयात पर वापस जाना पड़ सकता है। इसका अर्थ है सीएडी (चालू खाता घाटा ) और अन्य ईरान द्वारा दिए जा रहे अन्य सभी विशेषाधिकारों से वंचित होना। वरिष्ठ ईरानी राजनयिक ने कहा दोनों देशों को एक साथ काम करना जरूरी था ताकि आवश्यक उपकरणों और तंत्र को अपनाकर संबंध बना रहे। हमें इन संबंधों को और अधिक टिकाऊ बनाने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए एक मजबूत राजनीतिक दृढ़ संकल्प की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों को बैंकिंग संबंध स्थापित करना, नए लेनदेन मार्ग खोलना और एक-दूसरे के बाजारों और व्यापार समुदायों की सहायता करना चाहिए।

इराक और सऊदी अरब के बाद ईरान भारत का तीसरा सबसे बड़ा तेल सप्लायर है। अप्रैल 2017 और जनवरी 2018 (वित्तीय वर्ष 2017-18 के पहले 10 महीने) के बीच ईरान ने 18.4 मिलियन टन कच्चे तेल की आपूर्ति की। वहीं, अमेरिका ने भारत और अन्य देशों को ईरान से तेल आयात को 4 नवंबर तक “शून्य” करने या प्रतिबंधों का सामना करने के लिए कहा है। ईरान परमाणु समझौते से अमेरिका को खींचने के बाद ट्रम्प प्रशासन ने ईरान के खिलाफ प्रतिबंध वापस लाए। ईरान और उसके बंदरगाहों तक जहाज भेजना भी अमेरिकी प्रतिबंधों के तहत आ रहा है। रहाघी ने कहा कि इस तरह के एक स्वार्थी दृष्टिकोण में, अमेरिका पूरी दुनिया को अपने मित्र और सहयोगी बनने या प्रतिद्वंद्वी बनने के लिए निशाना बना रहा है। अमेरिका को धमकियों या बल के उपयोग की अपनी नीति को त्यागना होगा। मई में, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने घोषणा की थी कि अमेरिका 2015 में ओबामा प्रशासन द्वारा हस्ताक्षरित ईरान परमाणु समझौते से वापस आ रहा है। इसके तहत तेहरान अपनी संवेदनशील परमाणु गतिविधियों को सीमित करने पर सहमत हुआ था और अंतरराष्ट्रीय निरीक्षकों को अपर्याप्त आर्थिक प्रतिबंधों को उठाने के बदले में अनुमति दे दी थी। रहाघी ने यह भी सुझाव दिया कि क्षेत्रीय संकटों को हल करने के लिए फारस की खाड़ी और पश्चिम एशिया में एक क्षेत्रीय वार्ता मंच स्थापित किया जाना चाहिए।