मृत्युंजय दीक्षित

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ अभी तक जिसे केवल एक साजिश के तहत केवल नवाबों की नगरी कहकर ही पुकारा गया और उसके पहले के गौरवमयी हिंदू इतिहास को वामपंथी व सेकुलर इतिहासकारों के दबाव में दबा दिया गया अब ज बवह सच सामने आने लगा है तब सेकुलर वामपंथियेां तथा मुस्लिम तुष्टीकरण के बल पर जीने वाले दलों को अब लखनऊ में वीरवर लक्ष्मण जी की प्रतिमा से भी खतरा उत्पन्न होने लग गया है।

अभी हाल ही में राजधनी लखनऊ की असली पहचान को कायम रखने के लिये भाजपा पार्षद दल की ओर से आये एक प्रस्ताव को नगर निगम कार्यकारिणी ने पास कर दिया है जिसके अनुसार वीरवर लक्ष्मण जी की नगरी में स्थित लक्ष्मण टीला चैराहे पर भगवान श्रीराम के अनुज वीरवर लक्ष्मण की विशाल प्रतिमा लगाने का प्रसताव है। प्रतिमा के साथ बड़ा शिलापट भी होगा जिस पर इतिहास का उल्लेख होगा। प्रस्ताव पेश करने वाले पार्षद रजनीश गुप्ता का कहना है कि जहां पर टीले वाली मस्जिद है उसके सामने के चैराहे को ही लक्ष्मण टीला कहते हंै। वह चैराहा रेलिंग से घिरा है और जगह खाली हीे। वहां पर लक्ष्मण जी की प्रतिमा लगाई जा सकती है प्रस्ताव इसलिये दिया गया है क्योंकि लखनऊ को पहले लक्ष्मण नगरी कहा जाता है जिसका स्वरूप परिवर्तित होेते हुए मुगलों अंग्रेजों आरै नवाबों के दोर से गुजरता हुआ लखनऊ पड़ गया है। वैसे भी लखनऊ का नाम लक्ष्मणपुरी करने की मांग काफी समय से चल रही है। बीच में जातिगत आधार पर राजनीति का दायरा बढ़ने से लखनऊ का नामकरण लाखन पासी के नाम पर करने की मांग भी उठी थी। लेकिन अब एक बार फिर भगवान सरकार दो तिहाई बहुमत से आने के बाद यह मांग फिर जोर उठाने लग लग गयी है तथा लोगों को उम्मीद ही नहीं अपितु लखनऊवासियों की यह पुरानी मांग जल्द ही पूरी होकर रहेगी।

लेकिन इस बीच इस घटनाक्रम के बीच सबसे बड़ी बात यह है कि प्रदेश के अलेमाओं और मुस्लिम तुष्टीकरण के बल पर जीवित रहने वाले दलों के पेट में कड़ा दर्द उठने लग गया है तथा सभी को एक बार फिर इस्लाम और इस्लामियत खतरे मंे नजर आने लग गयी है। मुसिलम उलेमाआंे तथा धर्मगुरूओं ने इस प्रस्ताव का तीखा विरोध शुरू कर दिया है। मुस्लिम समाज आखिर हिंदू समाज उसके आस्था के केंद्रोे के प्रति इतना अधिक असहिष्णु क्यों होता चला जा रहा है ? वह भी तब जबकि मुसलमानों को देश में संवैधानिक व असंवैधानिक रूप से बेहद अधिकार प्राप्त हंै। भारत में मुस्लिम समाज तो सड़को पर बैठकर भी नमाज अदा कारता हे और चैराहों पर रोजा इफ्तार आदि का आयोजन करके सड़क जाम कर देता है। देश का कानून भी अल्पसंख्यकवाद के नाम पर उनको हर प्रकार का संरक्षण दे रहा है तब भी हिंदू समाज के प्रति गहरी विद्वेष की भावना प्रकट करता रहता है। निश्चय ही कांग्रेस, सपा, बसपा जैसे दल ही मुस्लिम समाज को हिंदुओं के प्रति भड़काते हैं। अभी तो केवल प्रस्ताव आया है और मुस्लिम समाज के ठेकेदारो नें अपनी राजनीति शुरू कर दी है। मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड तो आगामी 14- 15 जुलाई को इस विषय पर चर्चा भी करने जा रहा है।

टीले वाली मस्जिद के इमाम ने उस इलाकेे में लक्ष्मण की मूर्ति का यह कहकर विरोध किया कि यहां पर मुर्ति लगाने से इस इलाके में नमाज अदा करने वालों को एतराज होगा। इसलिये यहां लक्ष्मण की मूर्ति नहीं लगनी चाहिये। ज्ञातव्य है कि टीले वाली मस्जिद को ऐतिहासिक तौर पर लक्ष्मण का टीला भी कहा जाता है। लखनऊ के पार्षद रामकृष्ण यादव जिन्होंने लक्ष्मण की मूर्ति के लिये प्रस्ताव दिया है ने कहा है कि यह इलाका आज भी लक्ष्मण के टीले के नाम से जाना जाता है जमीन के रिकार्ड में भी यह लक्ष्मण का टीलाके नाम से ही दर्ज है। ऐसे में इस इलाके में लक्ष्मण जी की प्रतिमा लगाने का विरोध क्यों हो रहा है ?जबकि सभी जानते हैं कि लखनऊ वीरवर लक्ष्मण जी के नाम पर ही बसा था।

उधर लखनऊ नगर निगम में आये इस प्रस्ताव से शिया और सुन्नी दोनों मौलानाओं ने खुलकर विरोध करना शुरू कर दिया है। सुन्नी मौलाना सुफियान निजामी का कहना है कि मुर्ति की वजह से इलाके मंे तनाव फैल सकता है। वहीं शिया मौलाना सैफ अब्बास ने कहा कि अगर लक्ष्मण की मूर्ति लगानी है तो शहर भर में कहीं भी लगाया जा सकती है।

वहीं बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने लक्ष्मण जी की प्रतिमा लगाने के प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा है कि मुस्लिम समाज तो पमाज कहीं भी अदा कर सकता हैं। जरूररत पड़ने पर टीले वाली मस्जिद को स्थानांतरित किया जा सकता है। उनका कहना है कि विदेशो ंखासकर अरब देशों में विकास के नाम पर मस्जिदों को खिसकाया गया है। जबकि मुस्लिम वोटों के समथ्रक दलों का कहना है कि यह सबकुछ विवाद बीजेपी की ओर से जानबूझकर सास्म्पद्रायिक आधार पर धु्रवीकरण कराने के लिये किया जा रहा है। वर्ष 1993 में भी जब प्रदेश में कल्याण सिंह की सरकार थी तब इस प्रकार का प्रस्ताव आया था लेकिन तब उलेमओं के विरोध के कारण यह प्रस्ताव टाल दिया गया था। लेकिन अब लखनऊ नगर निगम से लेकर लोकसभा तक मंे बीजेपी का प्रचंड बहुंमत है और राज्यपाल से लेकर राष्ट्रपति तक अपना है । अब यह देखना लिचस्प होने जा रहा है कि आगे आने वाले दिनों में यह प्रस्ताव तथ इस पर राजनीति किस कदर आगे बढ़ेगी। फिलहाल दोनों ही पक्ष आमने सामने होते दिखलायी पड़ रहे हैं।

यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि समाजवादी सरकार और बसपा सरकारों ने अपने हिसाब से लकखनऊ के इतिहास को तोड़ा मरोड़ा है। समाजवादी सरकारों ने लखनऊ शहर को पूरी तरह से मुगलिया सल्तनत मंे ही बदलने की साजिश रच डाली थी और काफी सफल भी हो रहे थे। हर जगह नवाबियत के रंग घोले जा रहे थे। अब बीजेपी के पास यही उचित समय है कि वह अब बिना समय गंवायें तथा बिना किसी दबाव में आकर लखनऊ सहित पूरे प्रदेश के पुराने गौरव को वापस लायें। अगर हिंदू समाज कोई फैसला लेगा तो वह मुस्लिम प्रेमियों और मुस्लिम समाज को बुरा लगेगा ही हिंदू समाज तो उनके लिये अपने मंदिरों में रोजा इफ्तार का आयोजन करवाते हंैं तो क्या हम लक्ष्मण टीले के सामने अपनी खाली पड़ी जगह पर एक प्रतिमा नहीं लगवा सकते। वह प्रतिमा लगने के बाद भी मुस्लिम समाज के नमाज अदा करने के लिये काफी जमीन उपलब्ध रहेगी। टीले वाली मस्जिद के मौलाना साहब केवल अपनी राजनीति को ही चमका रहे हैं तथा हिंदू समाज को परोक्ष रूप से धमकी दे रहे हैं।

वीरवर लक्ष्मण जी हमारे नगर देवता हैं। हर दीपावली के अवसर पर प्रदेश के राज्यपाल वह चाहे किसी भी दल के रहे हों लक्ष्मण पार्क में लक्ष्मण जी को पहला दीपक जलाते हंै। यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि जिसे मुगल टीले वाली मस्जिद कहते हंैं वह लक्ष्मण का टीला ही है। पुरातत्व विदों का कहना है कि यदि यहां पर खुदाई करवायी जाये तो पूरा सच सामने आ जायेगा। जबकि मुस्लिम पक्षकरों का कहना है कि हम लोग यहां पर 350 सालों से यहां पर नमाज अदा कर रहे हैं तथा हर शुक्रवार व रमजान की नमाज के अवसर पर हजारों की सुया में लोग नमाज अदा करते हैं। वैस्े भी लक्ष्मण तजी की प्रतिमा पर विवाद क्यों, मुस्लिम समाज इतना अधिक असहिष्णु क्यों ?