नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए जज जस्टिस जे चेलामेश्‍वर का कहना है कि हर सरकार न्यायपालिका पर कुछ नियंत्रण रखना चाहती है और ये अच्छी चीज़ नहीं है. रिटायरमेंट के बाद जे. चेलामेश्‍वर ने एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने सरकारी दखलअंदाजी से लेकर न्यायिक नियुक्तियों जैसै तमाम मुद्दों पर खुलकर अपनी बात रखी.

22 जून को रिटायर होने वाले न्यायाधीश ने कहा, "हर सरकार न्यायपालिका पर किसी न किसी तरह का नियंत्रण रखना चाहती है. कोई भी सरकार जितनी ज्यादा संभव हो सके, वो देश की अलग-अलग चीजों पर नियंत्रण रखना चाहती है.''

जे चेलामेश्‍वर ने जजों की नियुक्तियों में देरी करने के मोदी सरकार के प्रयास को लेकर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को एक चिटठी भी लिखी थी. इस बारे में उन्होंने कहा कि जो कुछ भी लिखा गया था वो सही तथ्य थे. उन्होंने कहा, ''हां, मैंने जो भी कहा है, ये सारे तथ्य हैं. ऐसा क्यों किया गया ये एक बहस का मामला है.''

आपको बता दें कि जस्टिस चेलामेश्वर ने सीजेआई दीपक मिश्रा को पत्र लिखा था कि सरकार न्यायपालिका के काम में जरूरत से ज्यादा दखलअंदाजी कर रही है जो कि लोकतंत्र के लिए सही नहीं है. अपने पत्र में जस्टिस चेलामेश्वर ने कर्नाटक हाईकोर्ट में एक जज की नियुक्ति का मुद्दा उठाया था.

जे चेलामेश्‍वर सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम का हिस्‍सा भी थे और इसका सदस्‍य रहते हुए उन्‍होंने पारदर्शिता व जजों की नियुक्ति में निष्‍पक्षता को लेकर सवाल उठाए. उनके सवालों ने देश के तीन मुख्‍य न्‍यायाधीशों (CJI) जस्टिस टीएस ठाकुर, जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस दीपक मिश्रा के लिए खासी मुश्किलें खड़ी कीं. हालांकि, रिटायरमेंट से पहले उन्‍होंने कहा कि उनकी किसी भी मुख्‍य न्‍यायाधीश से निजी समस्‍या नहीं रही. वह केवल सुधार के जरूरी मुद्दों को ही उठा रहे थे. उन्‍होंने कहा, 'निजी स्‍तर पर मुझे इनमें से किसी भी जज से समस्‍या नहीं रही. मैं संस्‍थानिक मुद्दे उठा रहा था. वहां एक रेखा खींचने की जरूरत थी. बस इतना ही था.'

पूर्व चीफ जस्टिस ठाकुर के कार्यकाल में जस्टिस चेलामेश्‍वर ने अपारदर्शिता और निष्‍पक्ष प्रकिया के अभाव में कॉलेजियम की बैठकों में शामिल होने से इनकार कर दिया था. उन्‍होंने इस बात पर जोर दिया था कि जजों की सिफारिशों को रिकॉर्ड किया जाना चाहिए और उनके पास सर्कुलेशन के जरिये इन्‍हें भेजा जाना चाहिए.

साल 2015 में राष्‍ट्रीय न्‍यायिक नियुक्ति आयोग के पक्ष में वोट करने वाले जस्टिस चेलामेश्वर इकलौते जज थे. उन्‍होंने कॉलेजियम की प्रचलित व्‍यवस्‍था को अस्‍वीकार कर दिया था. तीन साल बाद वह अब भी मानते हैं कि कॉलेजियम को ज्‍यादा पारदर्शी और निष्‍पक्ष होने की जरूरत है. 2016 में उनके कॉलेजियम की बैठकों में जाने से इनकार के बाद ही इसके एजेंडा और चर्चा के बिंदू दर्ज किए जाने लगे थे. उन्‍होंने यह भी तय करवाया कि असंतुष्‍ट बिंदुओं को भी सरकार तक पहुंचाया जाए.