लखनऊ: चाइल्ड सेक्स ट्रैफिकिंग पर हाल ही में रिलीज़ फिल्म अमोली की स्क्रीनिंग पर सेक्स इंडस्ट्री में बच्चों की बढ़ती डिमांड को लेकर चर्चा हुई, साथ ही उन लोगों पर जो पैसे देकर बच्चों के साथ सेक्स करते हैं।
फिल्म में उन मासूमों की कहानी को दर्शाया गया है, जिन्हें ज़बरदस्ती सेक्स इंडस्ट्री में धकेला गया; उन बहादुर लोगों के इंटरव्यू भी हैं, जो इस दलदल से बाहर निकल पाये। फिल्म उन लड़कियों के परिवारवालों की कहानी भी सुनाती है, जो कई सालों से लापता हैं साथ ही उन एक्टिविस्ट के जज़्बे को बयान करती है, जो बच्चों के शारीरिक शोषण को एक व्यवसाय बनने के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं।

शिरोज़ हैंगआउट पर Change.org और यूथ की आवाज़ के इस साझा कार्यक्रम में स्क्रीनिंग के बाद एक पैनल द्वारा चर्चा हुई। इसके बाद फिल्ममेकर, आईएएस अफसर मिनिस्थी एस नायर और अन्य विशेषज्ञों ने इस संवेदनशील मुद्दे पर जनता से बातचीत की।

बच्चों के शारीरिक शोषण को एक व्यवसाय बनाने में, इसके ग्राहक सबसे बड़े गुनहगार हैं लेकिन मौजूदा कानून में पीड़ित को ही भुगतना पड़ता है। चर्चा में मौजूद लोगों ने इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया कि कैसे कानून को ग्राहकों पर ज़िम्मेदारी डालनी चाहिये ना कि इसका शिकार हुए लोगों पर।

जैज़मीन कौर, अमोली की डायरेक्टर ने इस गंभीर मुद्दे से निपटने के लिए सिनेमा के महत्तव को उजागर किया, उन्होंने बताया कि कैसे सिनेमा की मदद से दिखाया जा सकता है कि इस धंधे में ‘बच्चों की डिमांड’ इसलिए है क्योंकि उसके ‘ग्राहक’ हैं। उन्होंने कहा, “हम उम्मीद करते हैं कि अमोली की रिलीज़ से चाइल्ड ट्रैफिकिंग मुद्दे पर और बात होगी और सही बदलाव किये जाएंगे ताकि इसकी रोकथाम हो सके। हमारी कोशिश है कि कानून बनाने वाले तस्करों को नहीं बल्कि बच्चों की डिमांड करने वाले कस्टमरों को भी सज़ा दें।”

अमोली के लेखक और डायरेक्टर अविनाश रॉय ने समझाया कि कैसे सिनेमा की मदद से इस गंभीर और नज़रअंदाज़ कर दिये जाने वाले मु्द्दे को मु्ख्यधारा में लाया जा सकता है ताकि इसपर खुलकर बात हो। उन्होंने कहा, “ट्रैफिकिंग का शिकार हुए मासूमों की संख्या का अनुमान लगा पाना मुश्किल है। और हमने इस फिल्म के माध्यम से इसी पहलू पर फोकस किया है। हमें पता है कि महज़ एक फिल्म से चाइल्ड ट्रैफिकिंग का मु्द्दा सुलझ नहीं जाएगा, पर कम से कम ये इतना बताने में सफल होगी कि सिस्टम और कानून इस मुद्दे पर क्या करता है।”

आईएएस अफसर, मिनिस्थी एस नायर ने कहा, “ये एक दर्दनाक सच्चाई है कि जब ट्रैफिकिंग के शिकार लोगों को लाया जाता है तो उन्हें ‘वेश्या’ समझा जाता है और उनपर इम्मोरल ट्रैफिकिंग प्रिवेनशन एक्ट के तहत मामला चलता है। हमें उसको एक पीड़ित के रूप में देखना चाहिये और उसे जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत लाना चाहिये। हम आज भी पीड़ित को मुजरिम के साथ खड़ा करते हैं। पुलिस और समाज, दोनों को ट्रैफिकंग के शिकार बच्चों के प्रति अपना रवैया बदलना होगा।”

सोनल कपूर, फाउंडर एवं डायरेक्टर, प्रोत्साहन इंडिया फाउंडेशन ने कहा, “बच्चों के शारीरिक शोषण का व्यवसाय मानो एक अदृश्य समस्या है। सोचिये कि अगर युवा लोग मिलकर चाइल्ड ट्रैफिकिंग की समस्या से लड़ने लगें तो कैसा रहेगा। सोचिये कि अगर बच्चों को पॉक्सो एक्ट के बारे में पता हो, उन्हें पता हो कि कैसे शोषण के शिकार बच्चों को पहचाना जाए, इससे वो सही लोगों को खबर कर देंगे, सही अधिकारियों तक पहुँच सकेंगे और बदलाव का हिस्सा बनेंगे।
मेलीटा फर्नान्डेज़, एडवोकेट, इंटरनेशनल जस्टिस मिशन ने कहा, "ह्यूमन ट्रैफिकिंग एक ऐसा अपराध है जो हर दिन आगे बढ़ रहा है। ट्रेफिकर्स, नए-नए तरीके से कानून को चकमा दे रहे हैं। ट्रैफिकिंग से लड़ने के लिए सबको साथ आना होगा। हर प्रदेश के अधिकारियों को आपस में तालमेल बिठाना होगा और संपर्क में रहना होगा। साथ ही राज्य सरकारों की पीड़ितों के पुनर्वास में क्या भूमिका होगी, इसको भी परिभाषित करना होगा।"