लखनऊ: प्रदेश में आदित्यनाथ योगी के नेतृत्व में स्पष्ट बहुमत की सरकार बनने के बाद से राज्य कर्मचारियों में यह विश्वास बढ़ा था कि उनकी लम्बित और जायज समस्याओं का समयबद्ध तरीके से समाधान होगा। राज्य कर्मचारी इसी आशा और विश्वास के साथ सरकार के साथ कंधे से कंधा मिला कर काम भी कर रहे है। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के प्रतिनिधि मण्डल ने जब प्रदेश सरकार के मुखिया से पहली मुलाकात कर प्रदेश के लाखों कर्मचारियों की मूलभूत और जायज समस्याओं से उन्हें अवगत कराया था तो मुख्यमंत्री ने प्रतिनिधि मण्डल से मात्र छह माह का समय मांगा था। सरकार को बने एक साल से अधिक का समय बीत गया। मुख्यमंत्री और प्रतिनिधि मण्डल की वार्ता को नौ माह से ज्यादा समय बीत गया लेकिन सरकार की तरफ से कर्मचारियों की विभिन्न समस्याओं के निराकरण की कोई पहल नही की गईं । यह जानकारी आज राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष हरिकिशोर तिवारी, महामंत्री शिवबरन सिंह यादव ने संयुक्त रूप से पत्रकारों को देते हुए बताया कि ऐसी स्थिति में हमें एक बार पुनः आन्दोलन का रास्ता अपनाना पड़ रहा है। परिषद की 11 नवम्बर से 22 नवम्बर 1013 की महाहड़ताल और 23 जुलाई 15 की महारैली की तर्ज में एक बार पुनः परिषद आन्दोलन पर जा रही है। आन्दोलन की घोषणा करते हुए नेताद्वय ने बताया कि आन्दोलन के पहले क्रम में 19 जुलाई को समस्त जनपदों में धरना प्रदर्शन एवं रैली, 20,21 और 22 अगस्त 18 को कार्य बहिष्कार के साथ जनपदीय धरना, चार अक्टूबर को वर्ष 2015 की तर्ज प्रदेशिक महारैली और 22,23 और 24 अक्टूक्बर को वर्ष 2013 की तर्ज पर महाहड़ताल का निर्णय लिया गया है।

परिषद के अध्यक्ष हरिकिशोर तिवारी और महामंत्री शिवबरन सिंह यादव ने बताया कि जिन 11 सूत्रीय मांगों को लेकर हमें आन्दोलन के लिए बाध्य होना पड़ा है, उनमें से कई मांगों पर उच्च स्तरीय वार्ता के बाद सहमति भी बन चुकी है। चंद अधिकारियों की सोची समझी राजनीति और कर्मचारियों के दिल में राज्य सरकार के प्रति अविश्वास पैदा करने की नियत से उक्त सहमति वाले आदेश भी अब तक लम्बित पड़े है। उन्होंने बताया कि वर्तमान सरकार के कार्यालय में परिषद का प्रतिनिधि मण्डल मुख्यमंत्री से लेकर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव कार्मिक, प्रमुख सचिव वित्त के साथ कई बार वार्ता कर चुका है। कर्मचारियों की समस्याओं से राज्य सरकार और शासन पूरी तरह से भिज्ञ है,इसके बावजूद समस्याओं का समाधान नही हो पा रहा है। उन्होंने कहा कि परिषद द्विपक्षीय वार्ता के पक्ष में है, लेकिन परिषद का मत यह भी है कि वार्ता में जो भी तय हो उसका अनुपालन अतिशीघ्र आदेश के रूप में जारी हो जाना चाहिए।