नई दिल्ली: जोखिम वाले कर्ज (एनपीए) की गंभीर समस्‍या से जूझ रहा देश का बैंकिंग सेक्‍टर अपने अकाउंट बुक को कर्ज वसूल कर नहीं, बल्कि दूसरे तरीके से दुरुस्‍त करने में जुटा है। देश के सरकारी और निजी क्षेत्र के बैंकों ने सिर्फ 2017-18 के वित्‍त वर्ष में ही 1,44,093 करोड़ रुपये के लोन को बट्टे खाते (राइट ऑफ) में डाल दिया। यह आंकड़ा वित्‍त वर्ष 2016-17 के मुकाबले 61.8 फीसद ज्‍यादा है। वर्ष 2016-17 में बैंकों ने कुल 89,048 करोड़ रुपये के लोन को ठंडे बस्‍ते में डाला था। लोन को ठंडे बस्‍ते में डालने के मामले में सरकारी बैंकों की हिस्‍सेदारी काफी ज्‍यादा है। इस साल मार्च में समाप्‍त हुए वित्‍त वर्ष में केवल सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने ही 1,20,165 करोड़ के लोन को बट्टे खाते में डाल दिया। वहीं, निजी बैंकों ने 23,928 करोड़ रुपये के लोन को ठंडे बस्‍ते में डाला था। वित्‍त वर्ष 2016-17 में भी सरकारी बैंकों ने ही सबसे ज्‍यादा लोन को राइट ऑफ किया था। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने जहां 75,929 करोड़ रुपये को बट्टे खाते में डाला था, वहीं निजी बैंकों ने महज 13,119 करोड़ के लोन को ठंडे बस्‍ते में डाला था। ‘इंडियन एक्‍सप्रेस’ के लिए रेटिंग एजेंसी आईसीआरए द्वारा तैयार आंकड़ों से इसका खुलासा हुआ है। बता दें क‍ि बट्टे खाते में वैसे लोन को डाला जाता है, जिसकी वसूली संदिग्‍ध हो जाती है। हालांकि, यह कदम उठाने के बाद भी बैंक लोन की वसूली के लिए अपना प्रयास जारी रखता है। विशेषज्ञों की मानें तो लोन को बट्टे खाते में डालने से वह बैंक के अकाउंट बुक से बाहर हो जाता है।

राइट ऑफ पर बोले आरबीआई के पूर्व डिप्‍टी गवर्नर- यह घोटाला है: लोन को ठंडे बस्‍ते में डाले जाने के बाद भी बैंक वसूली को लेकर कदम उठा सकता है। हालांकि, न तो ऐसे कर्ज की वसूली उत्‍साहजनक है और न ही इससे जुड़ी प्रक्रिया पारदर्शी है। एक सरकारी बैंक के मुख्‍य कार्यकारी अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘आमतौर पर बैंक उसी कर्ज को ठंडे बस्‍ते में डालते हैं, जिनकी वसूली संभव नहीं है। लोन लेने वालों को इसकी जानकारी भी नहीं दी जाती है। राइट ऑफ करने के बाद संबंधित लोन की गिनती एनपीए में नहीं की जाती है। ऐसे कर्ज को वसूल करने पर उसे संबंधित बैंक के लाभ में जोड़ दिया जाता है।’ आरबीआई के पूर्व डिप्‍टी गवर्नर केसी. चक्रवर्ती बैंक लोन को ठंडे बस्‍ते में डालने की प्रक्रिया को घोटाला बताते हैं। उन्‍होंने कहा, ‘टेक्निकल राइट-ऑफ जैसी कोई चीज होती ही नहीं है। यह अपारदर्शी है और इसे बिना क‍िसी नीति के अंजाम दिया जाता है। आमतौर पर संकट के समय में अच्‍छी तरह से समझ-बूझकर छोटी-मोटी राशि को बट्टे खाते में डाला जाता है। लोन को तकनीकी आधार पर ठंडे बस्‍ते में डालने से अपारदर्शिता पैदा होती है। साथ ही क्रेडिट रिस्‍क मैनेजमेंट का पूरा तानाबाना भी तबाह हो जाता है और बैंकिंग प्रणाली में तमाम तरह की गलत चीजें भी आने लगती हैं। यह जरूरी तौर पर बताना चाहिए कि लोन की कितनी राशि को ठंडे बस्‍ते में डाला जा रहा है, क्‍योंकि आप जनता के पैसे को बट्टे खाते में डाल रहे होते हैं। यह एक घोटाला है।’ बता दें क‍ि वित्‍त वर्ष 2018 में एनपीए 10.3 लाख करोड़ तक पहुंच चुका है।

लोन को ठंडे बस्‍ते में डालने में एसबीआई अव्‍वल: आईसीआरए द्वारा तैयार आंकड़ों के अनुसार, कर्ज को ठंडे बस्‍ते में डालने में देश का सबसे बड़ा बैंक एसबीआई सूची में सबसे ऊपर है। एसबीआई ने 2017-18 के वित्‍त वर्ष में 40,281 करोड़ रुपये के लोन को बट्टे खाते में डाल दिया। एसबीआई पिछले 10 वर्षों में कुल 1,23,137 करोड़ के लोन को राइट ऑफ कर चुका है। इस मामले में बैंक ऑफ इंडिया दूसरे (28,068 करोड़ रुपये), केनरा बैंक (25,505 करोड़ रुपये) तीसरे और लोन घोटालों से त्रस्‍त पंजाब नेशनल बैंक चौथे स्‍थान पर है। पिछले वित्‍त वर्ष में लोन को ठंडे बस्‍ते में डालने के मामले में निजी क्षेत्र का एक्सिस बैंक दूसरे नंबर पर है। एक्सिस ने मार्च में समाप्‍त वित्‍त वर्ष में 11,688 करोड़ रुपये के लोन को बट्टे खाते में डाला था।