एमडी साजिद खान, अंतरराष्ट्रीय विकास प्रमुख, एसीसीए

बहुतेरे छात्रों को इतिहास पसंद नही आता क्योंकि इसमें अतीत की घटनाओं, सभ्यताओं, धर्मों, स्थानों और तिथियों को समझना और याद रखना पड़ता है। तथ्यों और आंकड़ों से भरा इतिहास उन्हें बहुत थकाऊ और भारी लगता है, ऐसे में पढऩे के लिहाज से एक जरूरी विषय पर उनकी दिलचस्पी खत्म हो जाती है।
अब जरा कल्पना करें कि क्या मानव इतिहास को कक्षा के निर्देश और इंटरैक्टिव लर्निंग के संयोजन के माध्यम से छात्रों को सिखाया जा रहा है। क्या तब भी वे उन ऐतिहासिक कालक्रम और घटनाओं के बारे में पढऩे और सीखने के लिए प्रेरित नहीं होंगे, जिन्होंने दुनिया को आकार दिया, कई युद्ध और लड़ाइयां, जो गुजरी शताब्यिों में लड़ी गईं।

इतिहास क्यों? मुझे कोई संदेह नहीं है कि कक्षा में ध्यान खींचने वाली तकनीक का उपयोग अन्य सभी नीरस प्रतीत लगने वाले विषयों में भी किया जा सकता है।

इंटरेक्टिव, एकीकृत या परस्पर प्रभावकारी शिक्षण की दुनिया में आपका स्वागत है!

शिक्षा का यह वैकल्पिक और नया तरीका – जहां पारंपरिक कक्षा डिजिटल लर्निंग से मिलती हैं- पारम्परिक शिक्षण प्रणालियों में से कई को खत्म कर रहा है और सीखने में मजेदार है, वहीं सार्वजनिक और निजी शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों के लिए आकर्षक है।

लेकिन, जैसे ही आधुनिक विद्यालयों ने देखते ही देखते गांव गुरुकुल को प्रतिस्थापित नहीं किया, डिजिटल कक्षाएं भी रातों-रात भौतिक कक्षाओं को नहीं हटाएंगी। इसके बजाय, दोनों माध्यम कुछ इस तरह से सह-अस्तित्व में चलेंगे, जिससे शिक्षा सेवाओं का वितरण मजबूत करेगा, शिक्षा की भौगोलिक पहुंच का विस्तार होगा, शिक्षण कौशल और नई रणनीतियां बनेंगी, शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा और छात्रों के प्रदर्शन को बढ़ावा मिलेगा।

एकीकृत शिक्षण का मतलब यह नहीं है कि ‘तकनीक’ कक्षा से ‘शिक्षक’ को बेदखल कर देगी। बल्कि कुछ होगा भी तो यह कि इस अवधारणा से शिक्षकों को उनके दृष्टिकोण को वैयक्तिकृत करने और सार्थक सीखने के अनुभव प्रदान करने का मौका मिलेगा, यहां तक कि यह छात्रों को उनके शैक्षणिक विकास के पथ पर अधिक स्वायत्तता प्रदान करेगी। इस मायने में जहां प्रौद्योगिकी शिक्षकों को बेहतर सिखाने में सहयोगी रहेगी वहीं छात्रों को बेहतर तरीके से अध्ययन करने में मददगार है – यह पूरी शिक्षा प्रणाली के लिए दोनों हाथों में लड्डू की तरह है।

हालांकि, इस सदी की शुुरुआत में ही भारत में डिजिटल शिक्षा की शुरुआत हो गई थी, फिर भी फिलहाल यह अपने विकास के शुरुआती चरणों में है। हाल के वर्षों कक्षाओं के साथ प्रौद्योगिकी को एकीकृत करने के लिए भारत सरकार के बुनियादी प्रयासों ने पूरे देश में डिजिटल शिक्षा को शहरी और ग्रामीण छात्रों के करीब लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

सरकार की ओर से संचालित शिक्षा कार्यक्रम अब बच्चों का मात्र स्कूल में नामांकन बढ़ाने तक सीमित नहीं रहे हैं बल्कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, सहयोगी शिक्षा प्रदान करने और बेहतर परिणामों को प्राप्त करने तक आ गए हैं। ‘स्मार्ट’ या ‘वच्र्युअल’ कक्षाओं को बनाने पर जोर से जहां सीखने की गतिविधियां वैयक्तिकृत होती है, जिससे छात्रों से उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन बाहर लाने में मदद मिलती है वहीं शिक्षकों को उन छात्रों पर अधिक ध्यान देने का समय और मौका मिलता है, जिन्हें इसकी अधिक आवश्यकता होती है।

व्यक्तिगत और ऑनलाइन निर्देश का एकीकृत शिक्षण ढांचा छात्रों को डिजिटल शिक्षण उपकरण और सामग्रियों तक पहुंच प्रदान कर रहा है। इसमें प्रत्येक क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा सूचना और डाटा से विकसित ऑनलाइन पाठ्यक्रमों के माध्यम से एक इंटरैक्टिव वातावरण में छात्रों को शिक्षा दी जाती है। उदाहरण के लिए, सरकार के ई-पाठशाला वेब पोर्टल और मोबाइल ऐप्स, ई-संसाधन प्रसारित करते हैं, जिसमें केंद्रीय और राज्य शिक्षा बोर्डों व संस्थानों द्वारा विकसित ई-पुस्तकें भी शामिल हैं। केंद्रीय विद्यालय प्रासंगिक ई-सामग्री के साथ प्रीलोड किए गए टैबलेट वितरित करते हैं जो शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया, दोनों को आसान और प्रभावी बनाता है।

डिजिटल लर्निंग को गति प्रदान करने की योजना को इस वर्ष एक और बढ़ावा मिला जब केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट भाषण में ‘ब्लैकबोर्ड से डिजिटल बोर्ड’ तक जाने की आवश्यकता पर जोर दिया, इस प्रकार स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयोंं के लिए प्रौद्योगिकी की भूमिका को भविष्य के लिए रेखांकित किया गया।

डिजिटल लर्निंग की दुनिया में इसे इसे ‘फ्लिप्ड क्लासरूम’ कहा जाता है – एक निर्देशक रणनीति जो कक्षा की चहारदीवारी के बाहर मल्टीमीडिया सामग्री वितरित करके पारंपरिक शिक्षा को उलट देती है। विद्यार्थी कक्षा से बाहर भी शैक्षिक गतिविधियों में शामिल होने के लिए डिजिटल उपकरणों और उपकरणों की एक शृंखला का उपयोग कर सकते हैं – लैपटॉप से स्मार्टफोन और ऐप्स से वेबसाइटों तक। उदाहरण के लिए, छात्र ऑडियो सुन सकते हैं, वीडियो देख सकते हैं और किसी भी समय, कहीं भी, उनके पाठ्यक्रम से संबंधित अन्य मल्टीमीडिया संसाधनों का उपयोग कर सकते हैं और उन्हें अपने शिक्षकों और सहपाठियों के साथ साझा कर सकते हैं।

‘फ्लिप्ड क्लासरूम’ के शिक्षकों और छात्रों दोनों के लिए स्पष्ट लाभ हैं। जहां इससे शिक्षकों को अपने पाठ्यक्रमों को संशोधित करने या तैयार करने के लिए अधिक समय मिलता है, शिक्षकों के लिए छात्र व्यवहार को समझना बेहतर करता है, विद्यार्थियों की समस्याओं को सुलझाने के लिए शिक्षकों को अधिक वक्त मिलता है, वहीं छात्रों को अलग हट कर सोचने और अधिक रचनात्मक होने के साथ-साथ अपनी अकादमिक भागीदारी और प्रदर्शन में सुधार करने की अनुमति देता है।

नीति-निर्माता और शिक्षाशास्त्री, एकीकृत शिक्षण को और आगे ले जाने के लिए नए उपाय खोजने में जुटे हैं। चूंकि, यह आज के डिजिटल दौर के विद्यार्थियों को शिक्षित करने और कल की प्रौद्योगिकी संचालित नौकरियों के लिए तैयार करने का प्रयास है। इस दृष्टिकोण से, मैं भारतीय कक्षाओं के पुनर्निर्माण को हमारी शिक्षा प्रणाली के लिए पांसा पलट देने वाले खेल के रूप में देखता हूं।