लखनऊ: कथाकार-उपन्यासकार बादशाह हुसैन रिजवी के उपन्यास ‘मै मुहाजिर नहीं हूं’ के उर्दू संस्करण का आज यहां यूपी प्रेस क्लब में विमोचन हुआ। इस उपन्यास का हिन्दी संस्करण 2011 में आ चुका है। इसका उर्दू अनुवाद डाॅ वजाहत हुसैन रिजवी ने किया है। इप्टा व प्रलेस द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम की सदारत उर्दू के मशहूर अदीब शारिब रुदौलवी ने किया। उन्होंने कहा कि इस उपन्यास में जिस हल्लौर की कथा है, वह पूरे हिन्दुस्तान का प्रतीक है। हमारी मिली-जुली विरासत को यह सामने लाता है। उर्दू में इसका संस्करण आना जरूरी था। आज नफरत का जिस तरह का माहौल, यह उपन्यास रचनाकार का प्रोटेस्ट है। जरूरी है कि हिन्दी अदब को उर्दू में तथा उर्दू अदब को हिन्दी में लाया जाय ताकि अदब दोनों जबान तक पहुंच सके।

समारोह को संबोधित करते हुए आलोचक वीरेन्द्र यादव ने कहा कि यह उपन्यास बादशाह हुसैन रिजवी के व्यक्तित्व का विस्तार करता है। इसमें विभाजन परसनल ट्रेजडी के रूप में आता है। उपन्यासकार का अपनी जड़ों की तलाश है। इसके साथ ही बेहतर समाज की कामना भी है। स्वप्निल श्रीवास्तव ने बादशाह हुसैन रिजवी के साथ को साझा करते हुए रोचक संस्मरण सुनाये। इस मौके पर उन्होंने एक क्विता का पाठ भी किया जो बादशाह हुसैन रिजवी पर उनके जीवन काल में लिखी थी। जसम के प्रदेश अध्यक्ष्स व कवि कौशल किशोर का कहना था कि यह मजहब के नाम पर देश के बंटवारे के खिलाफ हिन्दुस्तान की उस संस्कृति के पक्ष में है जो बहुलतावाद व इन्द्रधनुषी छटा वाली है। इसमें लेखक का जिद्द और प्रतिवाद व्यक्त हुआ है।

बदशाह हुसैन रिजवी के उपन्यास पर चर्चा करते हुए कथाकार किरण सिंह ने कहा कि यह आत्मकथात्मक शैली में लिखा उपन्यास है जिसमें विरासत व इतिहास के साथ जो आधुनिकता आ रही है, उसका वर्णन है। ‘लमही’ के संपादक विजय राय का कहना था कि लेखक अपने अतीत के प्रति काफी भावुक है। आजादी के पहले जो मानव मूल्य थे, आपसी भईचारा था, उसे लेखक बचाना चाहता है। उसी में वह असली हिन्दुस्तान को देखता है। इप्टा के महासचिव राकेश ने कहा कि हमारी साझी संस्कृति की जो विराट परम्परा है, यह उपन्यास उसी की रचनात्मक अभिव्यक्ति है। उपन्यास के अनुवादक डाॅ वजाहत हुसैन रिजवी ने भी अपना वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि अनुवाद कार्य के लिए मेरे चचा जान बादशाह हुसैन रिजवी ने मुझे प्रेरित किया। आज मैं जो भी हूं उनकी वजह से हूं। बोलते हुए वे इतने भावुक हो गए कि उनकी आंखें छलछला आई और आगे नहीं बोल पाये।

कार्यक्रम का संचालन लेखक शकील सिद्दीकी ने किया। इस मौके पर बादशाह हुसैन रिजवी के बेटे शहजाद रिजवी के साथ बड़ी संख्या में हिन्दी व उर्दू के रचनाकार माौजूद थे।