नई दिल्ली। चर्च द्वारा वर्तमान सरकारों पर बार-बार हमलों पर अपनी चुप्पी तोड़ विश्व हिंदू परिषद ने प्रतिक्रिया देते हुए आज कहा है कि भारत का चर्च, एक बड़े षड्यंत्र के तहत, केंद्र व राज्यों में ऎसी सरकारें बनाने में जुट गया है जो कि वेटिकन की कठपुतली बन कर उसका स्वार्थ सिद्ध कर सकें. विहिप के संयुक्त महासचिव डा सुरेन्द्र जैन ने आज कहा कि दिल्ली के आर्कबिशप के बाद अब गोवा के आर्कबिशप को भी संविधान खतरे में दिखाई दे रहा है. अब यह स्पष्ट हो गया है कि वैटिकन के इशारे पर भारत का चर्च वर्तमान सरकारों के विरोध में एक वातावरण बनाने का षड्यंत्र कर रहा है. केवल भाजपा सरकार के आने पर ही इनको ऎसा क्यों दिखाई देता है, यह प्रश्न देश पूछना चाहता है. मोदीजी की सरकार के आते ही चर्च पर हमलों के झूठे प्रचार किए गये. और सारे झूठ पकड़े जाने पर भी इन्होने माफी मांगने की सभ्यता तक नहीं दिखाई. अटल जी की सरकार के समय तो चर्च ने सब सीमाओं को तोड़ दिया था. इसने तत्कालीन सरकार व हिंदू संगठनों पर जिस प्रकार के घिनौने आरोप लगाए थे, वे किसी सभ्य समाज में चर्चा के लायक भी नहीं हैं. उस समय विहिप ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग से इन आरोपों की जाँच के लिए निवेदन भी किया था. जिस पर आयोग ने भी माना कि ये सभी आरोप झूठे हैं.

डा जैन ने कहा कि वैटिकन सम्पूर्ण विश्व में केवल हिंदू समाज को ही नहीं अपितु, भारत को बदनाम करता है और भारत का चर्च उनकी कठपुतली बनकर अपने ही देश को बदनाम करने का अक्षम्य अपराध करता है. आपात-काल लगाने, कश्मीरी हिंदुओं के नर संहार, 1984 में सिक्खों के कत्लेआम, चकमा बौद्धों पर चर्च के क्रूर जुल्मों से इनको कभी संविधान खतरे में नहीं दिखाई दिया. यह इनका दृष्टिदोष नहीं, वेटिकन के इशारे पर नाचने वाली सरकार को लाने का एक राजनीतिक षड़यंत्र है. अवार्ड वापसी माफिया की तरह ये भी एक चुनी हुई सरकार को अस्थिर करने की सुपारी ले कर काम कर रहे हैं.

विहिप के संयुक्त महा सचिव ने आज यह भी कहा कि केवल दिल्ली और गोवा के पादरी ही नहीं, मिजोरम, कर्नाटक, झारखंड, पंजाब आदि राज्यों के चुनावों के समय भी ऎसा ही माहोल बनाकर चर्च ने एक दल विशेष को जिताने के फरमान जारी किए हैं. यह कौन सा सैक्युलर कार्य है? संविधान पूजा का अधिकार देता है परंतु अवैध धर्मांतरण का अधिकार किसी को नहीं है. अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब हिंदुओं के देवी देवताओं का अपमान करना या उनकी मूर्ति जलाना नहीं है. अवैध धर्मान्तरण को रोकने वाले स्वामी लक्ष्मणानंद व शांतिकाली जी महाराज की हत्या कौन से वैधानिक अधिकार के अंतर्गत की जाती है? उन्हें स्मरण रखना चाहिए कि भारत अपने संविधान से चलता है, वैटिकन के मध्ययुगीन बर्बर संविधान से नहीं. भारत के संविधान को चर्च के राजनीतिक व धर्मांतरण के आक्रामक एजेंडे के कारण खतरा है और यह खतरा पूरे देश को भली भांति समझ में आ गया है. इसी एजेंडे के कारण गोवा के आर्केबिशप ने 1947 में भारत की आजादी का विरोध किया था. 1961 में इन्होने ही गोवा मुक्ति का विरोध करते हुए कहा था कि ईसाइयों का कल्याण पुर्तगाल की गुलामी में ही है. अब उन्हें आत्मविश्लेषण कर अपने पापों के लिए माफी मांगनी चाहिए और वेटिकन से मुक्त होकर भारत के संविधान के अनुसार चलना चाहिए.