शहरी इलाकों में रहने वाले लोगों को अक्सर दूषित हवा के कारण सेहत का खतरा बना रहता है। ऐसे में अब लोग घरों में एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करने लगे हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि कुछ पौधे भी आपके घर की हवा को स्वच्छ रखने में मदद करते हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा लेकिन यह सच है। हाल ही में पालमपुर स्थित काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च-इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायो रिसोर्स टेक्नोलॉजी (सीएसआइआर-आइएचबीटी) में किए गए अध्ययन में ऐसे ही कुछ पौधो का पता लगाया है, जो कि हवा में मौजूद प्रदूषण के कणों को सोख लेते हैं।

सीएसआइआर-आइएचबीटी पालमपुर ने ऐसे 12 पौधों को खोज निकाला है, जिनमें इस प्रकार के गुण पाए गए हैं। इन पौधों में इनमें एलोवेरा, एरिका पाम, बारवटन-डेजी (जरबेरा डेजी), बोस्टोन-फरन, गुलदाउदी, फिलोडेनड्रोन, इंग्लिश-आइवी, पीस लिली, रबर प्लांट, स्नेक प्लांट, लघु सेंसेवेरिया व वीपिंग फिग शामिल हैं।

वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि घर में इस्तेमाल होने वाली आम रोजमर्रा चीजें जैसे कि दीवारों के रंग, रेफ्रिजरेटर, माइक्रोवेव, डयोड्रेंट, बूट पॉलिस, अगरबत्ती, गैस, परफ्यूम, बिल्डिंग मैटीरियल, हीटर, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों व सिगरेट के धुएं से हानिकारक गैसें कार्बन डाइऑक्साइड, बैनजीन, ट्राइक्लोरो थाइलीन, जाइलीन, टॉयलीन और कार्बन मोनोऑक्साइड आदि पैदा होती हैं। इन सभी गैसों को वोलाटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड (वीओसी) नाम दिया गया है।

वोलाटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड (वीओसी) के कारण आपको कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इससे आंखों की जलन, जुकाम, गले में दर्द, दमा व निमोनिया आदि परेशानियां शामिल हैं। वैज्ञानिकों नें इन बीमारियों को सिक्क बिल्डिंग सिंड्रोम का नाम दिया है। वैज्ञानिकों के अनुसार यदि इन पौधों को घर में लगाया जाए, तो सिक्क बिल्डिंग सिंड्रोम के खतरे से बचा जा सकता है। इसके अलावा इन पौधों की खास बात यह भी है कि हानिकारक गैसें सोखने के बाद भी इन पौधों के स्वरूप में कोई बदलाव नहीं होता है।

वैज्ञानिक बताते है कि ये पौधे पत्तों में मौजूद स्टोमेटा के जरिए गैसों को अवशोषित करते हैं और उन्हें जड़ों के माध्यम से मिट्टी तक पहुंचा देते हैं। इस प्रक्रिया को फाइटो रेमिडिएशन कहा जाता है। हालांकि यह तय नहीं हो पाया कि कौन सा पौधा कितनी गैस सोखता है और कितने पौधे कमरे में रखने चाहिए। इस पर अभी शोध चल रहा है। आकड़ों की मानें तो 32 प्रतिशत लोग शहरी इलाकों में रहते हैं। इनमें 90 प्रतिशत लोग घरों के अंदर ही काम करते हैं। वैज्ञानिक अलग-अलग दफ्तरों और घरों का माहौल तैयार कर इन पौधों को कमरों में रखकर समय-समय पर कमरों के वातावरण में बदलाव की जांच करते हैं।