लखनऊ: पीसीओएस एक सामान्य स्वास्थ्य समस्या है, जो प्रजनन हाॅर्मोन्स के असंतुलन के चलते होता है, जिसके चलते महिलाएं स्वाभाविक रूप से गर्भधारण नहीं कर पाती हैं। यह 10-15 प्रतिशत महिलाओं को उनके प्रजनन काल में प्रभावित कर सकता है और यह सामान्य तौर पर मोटी या ओवरवेट महिलाओं में देखा जाता है। पीसीओएस से प्रभावित महिलाओं में हाॅर्मोन असंतुलन होता है और उन्हें उपापचय संबंधी समस्याएं होती हैं, जैसे-डायबिटीज, हाइपरलिपिडेमिया और एंडोमेट्रियल हाइपरप्लेसिया, जो उनके संपूर्ण स्वास्थ्य एवं रूपरेखा को प्रभावित करता है। पीसीओएस की पहचान हो जाने पर, फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट के साथ शीघ्र परामर्श करना अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है।

नोवा आईवीआई फर्टिलिटी, लखनऊ की फर्टिलिटी कंसल्टेंट, डाॅ. आंचल गर्ग ने बताया, ‘‘अध्ययनों के अनुसार, भारत में प्रत्येक 10 में से एक महिला पीसीओएस से प्रभावित है। पीसीओएस, एक सामान्य इंडोक्राइनल सिस्टम विकार है, जो प्रजनन आयु वाली महिलाओं में होता है। पीसीओएस की पहचान की गई प्रत्येक 10 महिलाओं में से, छः किशोर उम्र की लड़कियां होती हैं। युवाओं में पीसीओएस के बढ़ते मामलों के पीछे प्राथमिक कारण के रूप में अस्वास्थ्यकर जीवन शैली को माना जाता है। हमने पाया कि पिछले तीन महीनों में लगभग 15-20 प्रतिशत महिला इनफर्टिलिटी के मामले पीसीओएस के चलते देखने को मिले। यद्यपि पीसीओएस का कोई एक ठोस कारण नहीं है, यह आनुवांशिक प्रवृत्तियों के चलते हो सकता है, जिससे विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं और इन्हीं के चलते पाॅलीसिस्टिक ओवरी होता है। महिलाओं द्वारा प्रारंभिक चरण में पीसीओएस के लक्षणों को नजरंदाज कर दिया जाता है। जब विकार के चलते इनफर्टिलिटी जैसी कोई गंभीर समस्या पैदा होती है, तभी महिलाएं किसी स्पेशलिस्ट के पास जाती हैं।’’

पाॅलीसिस्टिक ओवरीज में, कोई पुटी (सिस्ट) नहीं होता है, बल्कि अपरिपक्व अण्डाणुओं की भरमार होती है, जिसके चलते अंडाणुओं का अच्छा-खास भण्डार इकट्ठा हो जाता है। हालांकि, अण्डाणुओं का यह ओवरलोड एक असामान्य हाॅर्मोन परिवेश पैदा करता है, जिसके चलते एक भी अण्डाणु विकास नहीं कर पाता है और अण्डोत्सर्जन के समय तक परिपक्व नहीं हो पाता है। कूप बढ़ना शुरू कर सकते हैं और फ्लुइड तैयार हो जाता है और सिस्ट जैसी संरचना बन जाती है, लेकिन अण्डोत्सर्जन नहीं होता है।

पीसीओएस के लक्षणः

अनियमित मासिक-धर्म – 28/30 दिन के चक्र का पालन नहीं होता है या 6 महीने से अधिक समय तक पीरियड देर आती है

साल में 8 से कम मासिक चक्र होते हैं

बालों का अत्यधिक बढ़ना, जैसे-गलमुच्छा, ठुड्डी के नीचे और शरीर के बाल – छाती, मध्यपट, नाभि, और पीठ के निचले हिस्से में बाल

गंजापन का एंड्रोजेनिक रूप या बाल झड़ना

आवाज में परिवर्तन या पुरूषों के यौवनारंभ से जुड़े अन्य परिवर्तन

कील या मुंहासों का असामान्य रूप से निकलना

असामान्य रूप से वजन बढ़ना

पीसीओएस का उपचार

स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर, संतुलित आहार एवं पर्याप्त व्यायाप सुनिश्चित कर न केवल पीसीओएस बल्कि स्वास्थ्य संबंधी अन्य समस्याओं को भी रोकने में मदद मिलेगी। युवतियों को स्टार्चयुक्त भोजन, जटिल काॅर्बोहाइड्रेट्स एवं वसा से परहेज करने की सलाह दी जाती है। खान-पान की स्वस्थ आदतों और व्यायाम से यदि 5 प्रतिशत भी वजन कम हो जाता है, समय से अण्डोत्सर्जन होने लग सकता है। यदि आप मोटे हैं, तो नियमित व्यायाम के जरिए अपने वजन को नियंत्रण में रखें।

डाॅ. आंचल गर्ग ने आगे बताया, ‘‘पीसीओएस मात्र एक विकार है; आप इसे बीमारी के रूप में परिभाषित नहीं कर सकते हैं। दुर्भाग्यवश, यह ठीक नहीं किया जा सकता है, लेकिन उपचार शुरू कर इसे प्रबंधित किया जा सकता है। शुरूआती अवस्था में लक्षणों की पहचान पीसीओएस के उपचार के लिए महत्वपूर्ण है। इंसुलिन प्रतिरोध को बेहतर बनाने के लिए व्यायाम एवं स्वास्थ्यकर आहार पीसीओएस से प्रभावित महिलाओं के लिए सर्वोत्तम है, चूंकि इससे उनके मासिक चक्र को नियमित बनाने और रक्त शर्करा के स्तर को कम करने में मदद मिलेगी।’’

चिकित्सा की दृष्टि से, पीसीओएस के उपचार में हाॅर्मोन असंतुलन एवं वजन को नियंत्रण में लाना शामिल है और सामान्य मासिक चक्र सुनिश्चित करना शामिल है। सांख्यिकीय दृष्टि से, पाॅलीसिस्टिक ओवरीज वाली 20 प्रतिशत महिलाओं को अण्डोत्सर्जन या गर्भधारण की समस्या नहीं हो सकती है। जब प्रजनन की इच्छा हो, तब अण्डोत्सर्जन नहीं करने वाली महिलाएं इसके लिए ओवेरियन स्टिम्युलेशन का सहारा ले सकती हैं। यह औषधि के जरिए किया जाता है। इसके बाद आसान आईयूआई के जरिए गर्भधारण संभव है।