सूरत: गुजरात के सूरत जिले में बड़े बिटक्वॉइन रैकेट का भंडाफोड़ हुआ है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का पूर्व विधायक इस मामले में बिचौलिए की भूमिका में था। मामले का खुलासा बिल्डर शैलेष भट्ट की उस चिट्ठी से हुआ, जो उन्होंने गुजरात के मंत्री प्रदीप सिंह जडेजा को फरवरी में लिखी थी। उन्होंने आरोप लगाया कि अमरेली पुलिस ने उनसे 12 करोड़ रुपए के बिटक्वॉइन जबरन वसूल लिए थे। मंत्री ने इसके बाद उनकी शिकायत क्राइम इन्वेस्टिगेशन डिपार्टमेंट (सीआईडी) को सौंप दी थी। सीआईडी ने जांच में पाया कि भट्ट भी लोगों से पैसे ऐंठते थे। अमरेली पुलिस ने उन्हें पकड़ा, उससे पहले तक वह 155.21 करोड़ रुपए के बिटक्वॉइन कई लोगों से वसूल चुके थे।

एजेंसी ने इसी बाबत नया मामला दर्ज किया है, जिसमें भट्ट समेत एसपी जगदीश पटेल और पुलिस इंस्पेक्टर अनंत पटेल के नाम भी हैं। बीजेपी के पूर्व विधायक नलिन कोटाड़िया भी इस मामले में आरोपी हैं। फिलहाल वह फरार चल रहे हैं। सीआईडी जांच के मुताबिक, दो साल पहले सतीश कुंभानी नाम के शख्स ने ‘बिट कनेक्ट इन्वेस्टमेंट कंपनी’ बनाई थी। यह कंपनी भट्ट जैसे लोगों को पैसे निवेश करने के लिए बहलाती-फुसलाती थी। एक से चार फीसदी प्रति दिन के हिसाब से रिटर्न का वादा किया जाता था। ऐसे में भट्ट ने दो करोड़ रुपए कंपनी में लगा दिए। दिसंबर 2017 में कंपनी के मालिक बोरिया-बिस्तर समेट कर फुर्र हो गए।

भट्ट ने फंसे पैसे वापस पाने के लिए अपने साथियों को आयकर अधिकारी (फर्जी) बनाया और पीयूष सवालिया का अपहरण कराया, जो बिट कनेक्ट के साथ करता था। बंदूक की नोंक पर उसे फार्महाउस में रखा गया था, जिसके दो दिनों बाद उसे छोड़ दिया गया था। एक फरवरी को भट्ट के आदमियों ने धवल मवानी नाम के कंपनी से जुड़े एक अन्य शख्स को किडनैप किया और आधी रात को उसे रिहा कर दिया। मवानी पर 2,256 बिटक्वॉइन्स को ट्रांसफर करने का दबाव बनाया गया था, जिनकी कीमत 131 करोड़ रुपए थी।

बिल्डर और उसके साथियों ने 166 बिटक्वॉइन इसके बाद अकाउंट में ट्रांसफर कर दिए थे, जिनकी कीमत तकरीबन 9.64 करोड़ रुपए थी। सीआईडी (अपराध) के डीजीपी आशीष भाटिया ने 21 मई को बताया कि भट्ट की जांच करने पर पता लगा कि उसने पीयूष सवालिया को मुंह बंद रखने के 34.5 लाख रुपए दिए थे। पूर्व विधायक इस मामले में भट्ट और अमरेली पुलिस के बीच बिचौलिया था। आरोप है कि उसने 60 लाख रुपए हवाला के जरिए लिए थे, जिसमें 20 लाख रुपए सीआईडी ने बरामद कर लिए थे। डीजीपी ने शक जताया कि यह रैकेट और भी बड़ा हो सकता है। चूंकि इस क्रम में अभी तक कुल 167 करोड़ रुपए के दो मामले सामने आ चुके हैं।

सीआईडी का कहना है कि वह फिलहाल सात कंपनियों और उसमें वर्चुअल मुद्रा के जरिए किए गए निवेश की जांच-पड़ताल में जुटी है। नाम न बताने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा कि यह खुला राज है कि नोटबंदी के दौरान लोगों के पास भारी मात्रा में नगदी थी। अपने कालेधन को लोगों ने क्रिप्टोकरेंसी में हवाला कारोबारियों का सहारा लेकर तब्दील किया था।