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समता, समरसता व कर्मठता की मिसाल रहे न्यायमूर्ति अचल बिहारी

इलाहाबाद। कई महत्वपूर्ण निर्णयों और समता, समरसता कर्मठता की मिसाल रहे पूर्व न्यायमूर्ति अचल बिहारी श्रीवास्तव का त्रयोदश कार्यक्रम कल 22 मई को आयोजित किया जा रहा है। जिनका देहान्त बीते दिनों नौ मई को लम्बी बीमारी के बाद हो गया था। १९६१ में अपने प्रतिष्ठित न्यायिक कैरियर की शुरुआत करने वाले न्यायमूर्ति अचल बिहारी १९९६ में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति के पद से निवृत हुए। आज वह हमारे बीच में नहीं है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में खंडपीठ के एक सदस्य के रूप में, वह कई ऐतिहासिक फैसले दिया। न्यायमूर्ति अटल बिहारी श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति धवन की डिवीजन बेंच ने उत्तराखंड संघर्ष समिति बनाम उत्तरप्रदेश व अन्य ,के केस में मात्र सरकार की ज्यादतियों के शिकार लोगों के मुआवजे के मुद्दे के अलावा, उत्तरांचल राज्य के गठन की धारणा को मजबूत किया. एक छात्र द्वारा दायर एक जनहित याचिका में दिए फैसले में १९९५ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के ऐकडेमिक सत्र को नियमित करने का कार्य किया जो कि करीब एक दशक से अनिश्चित और अनियमित चल रहा था। इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश के पद से अवकाश ग्रहण करने के बाद उन्हें १९९७ में उत्तरप्रदेश के विधानसभा में हुई हिंसकघटनाओं की जाँच के लिए गठित आयोग का मुखिया नियुक्त किया गया था। न्यायमूर्ति अचल बिहारी श्रीवास्तव का जन्म 11 नवंबर १९३४ को उत्तरप्रदेश के गाजीपुर जिले में हुआ। उनके माता-पिता श्री गौरीशंकर श्रीवास्तव और श्रीमती कृष्णाप्यारी थे। उनके पिता ने ब्रिटिश राज्य के दौरान पुलिस में एक क्लर्क के रूप में कार्यरत थे जो स्वतंत्रता पश्चात यू ॰पी॰ पुलिस में मोटर लाइसेन्स प्रभाग में एक उपनिरीक्षक बने।

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