नई दिल्ली: कर्नाटक चुनाव से पहले भले ही इस बात के संकेत मिल रहे थे कि किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं होगा, बावजूद इसके लोग इस बात को लेकर आश्वस्त थे कि भारतीय जनता पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह की रणनीति किसी न किसी तरह से बीजेपी को सत्ता में ले ही आएगी. हालांकि, ऐसा हुआ भी, मगर कांग्रेस के 'चाणक्य' के सामने अमित शाह की रणनीति धरी की धरी रह गई और बीजेपी की येदियुरप्पा सरकार ढाई दिन में ही गिर गई. भले ही कर्नाटक का क्लाईमेक्स अब धीरे-धीरे अपने अवसान पर है, मगर इसके बावजूद लोगों की दिलचस्पी इस बात में बनी हुई है कि आखिर लगातार विजयी पताका लहराने वाली बीजेपी को कर्नाटक में किस शख्स ने पटखनी दी कि येदियुरप्पा को बहुमत साबित करने से पहले ही इस्तीफा देना पड़ गया. दरअसल, कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस ने अगर मिलकर बीजेपी को सत्ता में बने रहने से रोका है, तो उसका सारा क्रेडिट कांग्रेस के विधायक और कद्दावर नेता डी. के. शिवकुमार को जाता है.

दरअसल, कांग्रेस के डी.के. शिवकुमार ने अपने दांव-पेंच और चाणक्य नीति से ऐसा बंदोबस्त किया कि बहुमत न होने के बाद भी आनन-फानन में सरकार बनाने वाली बीजेपी को सत्ता से हटना पड़ा और सीएम की कुर्सी कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के लिए छोड़नी पड़ी. डी. के. शिवकुमार ही वह कांग्रेसी नेता हैं, जिन्होंने अपने सभी विधायकों को बीजेपी की सेंधमारी से बचाए रखा और एक भी विधायक को टूटने नहीं दिया. जब बीजेपी बहुमत के आंकड़े को छूने के लिए एक-एक विधायक की गुजत में थी, तब कांग्रेस के लिए संकटमोचक की भूमिका में डी. के शिवकुमार ने पार्टी की नैया को संभाले रखा और बीच मजधार में डूबने से बचाया.

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद यह स्पष्ट हो गया कि किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं हुए हैं और बिना जोड़-तोड़ किये सरकार बनाना मुश्किल है. नतीजे सामने आते ही कांग्रेस के दिग्गज नेता और आलाकमान जेडीएस के साथ गठबंधन को अमादा हो गये और 78 सीटें जीतने वाली कांग्रेस ने 38 सीटों वाली पार्टी जेडीएस को मुख्यमंत्री पद का ऑफर कर दिया. यानी कि कांग्रेस ने जेडीएस के साथ मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया. मगर कर्नाटक के चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी बीजेपी को सबसे पहले सरकार बनाने का न्योता दिया गया, जिसके बाद 17 मई को येदियुरप्पा ने सीएम पद की शपथ ली. अब मामला फंसा था बहुमत के आंकड़े को लेकर, जिसके लिए बीजेपी ने राज्यपाल से समय मांगा और राज्यपाल ने बहुमत साबित करने के लिए 15 दिनों का समय दे दिया. अब कांग्रेस के लिए यह मुश्किल की घड़ी थी, क्योंकि कांग्रेस के 7-8 विधायकों को तोड़ना बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के लिए कोई बड़ी बात नहीं थी. अब कांग्रेस के पास अपने विधायकों को बचाने के अलावा कोई चारा नहीं था. ऐसे वक्त में डी. के. शिवकुमार ने ही संकटमोचक की भूमिका निभाई और विधायकों को बीजेपी के संपर्क से दूर रखने और टूटने से बचाने का जिम्मा अपने कंधे पर लिया.

हालांकि, शिवकुमार की चाणक्य नीति पर कुछ समय के लिए फ्लोर टेस्ट के दिन यानी शनिवार को संशय पैदा हुआ, जब कांग्रेस के दो विधायक प्रताप गौड़ा पाटिल और आनंद सिंह लापता हो गये. मगर शिवकुमार लगातार उन लोगों के कॉन्टैक्ट में थे. यही वजह है कि शिवकुमार ने कहा कि विधानसभा में प्रताप गौड़ा पहुंच चुके हैं और विधायक के रूप में शपथ लेंगे. साथ ही उन्होंने यह भी आश्वस्त किया कि वो कांग्रेस के लिए वोट करेंगे. शिवकुमार के चाणक्य नीति का सटिक अंदाजा उस वक्त लगा, जब विधानसभा में आनंद सिंह के साथ वह दिखे. यानी कि पूरे ढाई दिन तक के घटनाक्रम में शिवकुमार ने कांग्रेस के लिए बड़ी भूमिका निभाई. हैदराबाद के होटल से लेकर बेंगलुरु तक में वह लगातार कांग्रेस विधायकों के साथ थे और अपनी जिम्मेवारी का पूरी तरह से निर्वहन करते दिखे.

गुजरात राज्यसभा चुनाव के दौरान जब अहमद पटेल की जीत पर संशय के बादल मंडरा रहे थे, तब भी कांग्रेस विधायकों को बीजेपी के टूट से बचाने की जिम्मेवारी डी. के. शिवकुमार ने ही निभाई. बेंगलुरु के इग्लेटन गोल्फ रिसोर्ट में जब कांग्रेस के 44 विधायकों को रखा गया था, ताकि बीजेपी किसी तरह से उनसे संपर्क न कर पाए और विधायक टूटने से बच जाए, तब डी. के. शिवकुमार ने ही संकटमोचक की भूमिका निभाई थी और सभी विधायकों को अपनी देख-रेख में रखा था. हालांकि, इस दौरान शिवकुमार के ठिकानों पर रेड भी पड़े थे.

डी. के. शिवकुमार कर्नाटक की राजनीति में कांग्रेस के लिए बड़ा नाम है. सिद्धारमैया की सरकार में शिवकुमार ऊर्जा मंत्री भी रह चुके हैं. वह कनकपुरा विधानसभा से विधायक हैं. डी. के. शिवकुमार पर भ्रष्टाचार के भी आरोप लगे हैं. 2015 में कर्नाटक हाईकोर्ट में एक याचिका डाल डीके शिवकुमार और उनके परिवार पर अवैध खनन में शामिल होने का आरोप लगाया गया था. इतना ही नहीं, 2015 में ही शिवकुमार और उनके भाई डी के सुरेश पर 66 एकड़ जमीन पर कब्जा करने के आरोप लगे हैं है. अमित शाह की रणनीति से कांग्रेस की डूबती नैया को बचाने वाले डी. के. शिवकुमार ने साबित कर दिया कि वह भी अपनी पार्टी के लिए किसी चाणक्य से कम नहीं हैं.