नई दिल्ली: काला-आजार या विसरल लीशमानियासिस, विसरा यानि आंतरिक अंग, विशेष रूप से यकृत, प्लीहा, अस्थि मज्जा और लिम्फ नोड्स की एक लंबी चलने वाली एवं घातक परजीवी बीमारी है, जो लीशमानिया डोनोवानी नामक परजीवी द्वारा संक्रमण के कारण होती है। यह रोग फ्लेबोटोमस अर्जेंटीपस प्रजाति की सेंड फ़्लाइ के काटने के माध्यम से फैलता है। यह भारत के पूर्वी राज्यों, अर्थात् बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में व्यापक रूप से फैली हुई है । इन चार राज्यों में अनुमानित 165.4 मिलियन आबादी को इस से खतरा है। रोग का प्रबंधन प्रथम पंक्ति की (प्राथमिक) दवाओं के विरुद्ध प्रतिरोधकता बढ़ जाने एवं पोस्ट काला-आजार डर्मल लीशमानियासिस (पीकेडीएल) के कारण और भी जटिल हो जाता है।

सीएसआईआर-सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट, लखनऊ ने उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारियों (निग्लेक्टेड ट्रोपिकल डिजिजेस) खासतौर पर काला-आज़ार से लड़ने के लिए रणनीतियों पर चर्चा करने के लिए इस क्षेत्र में काम कर रहे डरहम यूनिवर्सिटी, इंग्लैण्ड, स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ कैंपिनस, ब्राजील, सीएसआईआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल बायोलॉजी, कोलकाता के वैज्ञानिकों को एक साथ एकत्र किया जो की ग्लोबल चैलेंज रिसर्च फंड (जीसीआरएफ) नेटवर्क ऑन निग्लेक्टेड ट्रोपिकल डिजिजेज़ (एनटीडी) (http://ntd-network.org)का हिस्सा हैं एवं शोध के लिए ब्रिटेन की रिसर्च काउंसिल से 8 मिलियन ब्रिटिश पाउंड की निधि प्राप्त कर चुके हैं।
सीएसआईआर-सीडीआरआई के निदेशक की ओर से डॉ नैबेद्य चट्टोपाध्याय ने वैज्ञानिकों का स्वागत किया। तत्पश्चात डरहम विश्वविद्यालय, ब्रिटेन से डॉ पॉल डेनी और डॉ एमके पोहल जो ब्रिटेन में जीसीआरएफ नेटवर्क ऑन एनटीडी के संकुल के नेतृत्वकर्ता (हब लीड) हैं, ने काला-आजार से संबंधित नवीन दवा लक्ष्यों (ड्रग टार्गेट्स) की खोज और उनके पुष्टिकरण के संबंध में नवीनतम प्रगति के बारे में अवगत कराया। ब्राजील में परजीवी की दवाओं के प्रति संवेदनशीलता और प्रतिरोध के विषय में ब्राजील के स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ कैंपिनस के डॉ एड्रियानो सी कोएल्हो ने जानकारी दी की किस तरह से उपल्ब्ध दवाओ के प्रति काला-आजार का परजीवी संवेदनशील है एवं कैसे वह उन दवाओं के विरुद्ध प्रतिरोधकता विकसित कर रहा है। भारत में जीसीआरएफ नेटवर्क ऑन एनटीडी के संकुल के नेतृत्वकर्ता, सीएसआईआर-आईआईसीबी के डॉ नाहिद अली ने भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा इस क्षेत्र में भागीदारी का विस्तृत ब्योरा प्रस्तुत किया।

सीएसआईआर-सीडीआरआई के इस क्षेत्र में काम कर रहे अग्रणी वैज्ञानिकों डॉ अनुराधा दुबे और डॉ नीना गोयल, ने लीशमानिया जो काला-आजार का कारक एजेंट है के विरुद्ध दवाओं और वेक्सीन्स के विकास के संबंध में अपने नवीनतम शोध को साझा किया । रोग की प्रक्रिया में शामिल कुछ महत्वपूर्ण संकेतक तंत्र (सिग्नलिंग मेकेनिज़्म) एवं रोग प्रक्रिया में शामिल कुछ महत्वपूर्ण लक्ष्यों (टार्गेटों) का संरचनात्मक जीवविज्ञानिक विश्लेषण क्रमशः डॉ सुशांत कार एवं डॉ आशीष अरोड़ा द्वारा प्रस्तुत किया गया। डॉ अमोघ सहस्रबुद्धे भी इस क्षेत्र में सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं और जीसीआरएफ नेटवर्क ऑन एनटीडी का हिस्सा हैं। काला-आजार पर अनुसंधान के लिए चुनौती वाले क्षेत्रों को प्राथमिकता देने हेतु सीएसआईआर-सीडीआरआई के वैज्ञानिकों और विदेशों से आमंत्रित वैज्ञानिकों के बीच व्यापक एवं गहन चर्चाएं हुईं । वैज्ञानिक, जीसीआरएफ नेटवर्क ऑन एनटीडी द्वारा किए गए सहयोगात्मक प्रयासों से उत्साहित और आशावान हैं, निश्चित रूप से निकट भविष्य में लंबी अवधि की इस घातक परजीवी बीमारी के समाधान के कुछ उपाय अवश्य मिल जाएंगे। इस संगोष्ठी में बड़ी संख्या में वैज्ञानिकों और संस्थान के छात्रों ने भाग लिया जिसका समापन संस्थान के डॉ संजय बत्रा के धन्यवाद प्रस्तावित से हुआ।