नई दिल्ली। भारत के सबसे बड़े मुस्लिम छात्र संगठन मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इंडिया यानी एमएसओ ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हिंसा की कड़ी भर्त्सना करते हुए छात्रों पर लाठी चार्ज करने वाले पुलिसकर्मियों को नौकरी से बर्खास्त करने की माँग की है। संगठन ने यहाँ पत्रकारों से बातचीत में कहाकि यह सोची समझी राजनीति के तहत गुंडई की गई है जिससे ना सिर्फ यूनिवर्सिटी की छवि को ख़राब किया जा सके बल्कि इसकी आंच पर कर्नाटक और देश में उपचुनाव की रोटी भी सेकी जा सके।

संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष शुजात अली क़ादरी ने पत्रकारों से कहाकि अलीगढ़ में छात्रों पर पुलिस ने बर्बरतापूर्वक लाठी चार्ज किया जबकि वह देश के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी पर हमला करने जा रहे गुंडों से उनकी रक्षा के लिए मांग कर रहे थे। अब देश में घिनौनी साम्प्रदायिक सियासत पर उतर आई है कि जिस परिवार ने देश को 18 स्वतंत्रता सेनानी दिए हैं, उसके पुत्र और पूर्व उपराष्ट्रपति में उन्हें मात्र एक मुसलमान नज़र आ रहा है। यही नहीं जब गुंडे पूर्व उपराष्ट्रपति पर हमला करने की नीयत से अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी पर हमला करने की योजना बना रहे थे, तब यूनिवर्सिटी के आम छात्र उन्हें सुरक्षित करने की माँग कर रहे थे। इस पर बजाय गुंडों पर कार्रवाई के पुलिस ने यूनिवर्सिटी के आम छात्रों पर लाठी चार्ज कर माहौल ख़राब करने की कोशिश की है। कादरी ने कहाकि इसके जवाब में दोषी पुलिसकर्मियों को नौकरी से बर्ख़ास्त किया जाए, घायल छात्रों का इलाज किया जाए और उन्हें मुआवज़ा दिया जाए। क़ादरी ने कहाकि छात्रसंघ के अध्यक्ष मशकूर अहमद उस्मानी, सचिव मुहम्मद फ़हद के साथ साथ पुर्व छात्रसंघ उपाध्यक्ष माजिद जैदी, अध्यक्ष फैजुल हसन, सज्जाद और इमरान पर लाठीचार्ज करने वाले पुलिसकर्मियों पर उत्पीड़न और क़ानून के दुरुपयोग का मुक़दमा भी चलाया जाए।

एक सवाल के जवाब में मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इंडिया यानी एमएसओ ने पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्नाह की तस्वीर पर सफाई पेश करते हुए कहाकि यूनिवर्सिटी के छात्र संघ ने 1918 में जिन्नाह को मानद सदस्यता दी थी जिसके बाद ही यह तस्वीर लगी हुई है। यदि सरकार इस तस्वीर को हटाना चाहे तो हटा सकती है, इस पर किसी को आपत्ति नहीं है लेकिन चुनावों के मद्देनज़र भारतीय जनता पार्टी यदि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को राजनीतिक इस्तेमाल के लिए बर्बाद करना चाहती है तो इसे आम अलीगढ़ के छात्र और भारत की जनता बर्दाश्त नहीं करेगी।

उन्होंने कहाकि जिन्नाह से पहले यह मानद सदस्यता महात्मा गाँधी, बाबा साहेब भीवराव अम्बेडकर, वैज्ञानिक सीवी रमण, जयप्रकाश नारायण और भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को भी दी गई थी। उनकी तस्वीरें भी लगी हैं। यह जिन्नाह का गुणगान नहीं बल्कि एक रिकॉर्ड की बात है। इसके बावजूद यह मामला केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन आता है जिसके मंत्री भाजपाई प्रकाश जावड़ेकर हैं। वह जिन्नाह की तस्वीर पर चुप भी हैं और उसे हटाने का आदेश भी नहीं दे रहे। जिससे साफ़ है कि भारतीय जनता पार्टी की पूरी सियासत अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का राजनीतिक इस्तेमाल कर रही है। क़ादरी ने कहाकि कैराना उपचुनाव और 2019 लोकसभा चुनाव सामने हैं, उत्तर प्रदेश की आदित्यनाथ और केन्द्र की मोदी सरकार ने बेरोजगारी, मंहगाई पर कुछ किया नहीं है इसलिए एएमयू से ध्रुवीकरण कर राजनीतिक लाभ लेना चाहते हैं।

शुजात क़ादरी ने स्टैनले वॉल्पर्ट की किताब ‘जिन्नाह ऑफ पाकिस्तान’ का हवाला देते हुए बताया कि इस पुस्तक के मुताबिक़ जब पहला विश्वयुद्ध खत्म हुआ तो बॉम्बे के गवर्नर का कार्यकाल पूरा होने पर उसे विदाई दी जा रही थी, तब जिन्नाह इस फेयरवेल के विरोध में जनता को सड़कों पर लाए। सभी ने चंदा से 6500 रुपए जमा किए और एक हॉल ‘पीपुल्स ऑफ़ जिन्नाह हॉल’ बनाया जो आज भी मुम्बई में स्थित है। जिन्नाह के नाम पर साम्प्रदायिक राजनीति करने वाली भारतीय जनता पार्टी की महाराष्ट्र सरकार ने अब तक ‘पीपुल्स ऑफ़ जिन्नाह हॉल’ का नाम क्यों नहीं बदला। मुम्बई में जिन्नाह के बंगले जिन्नाह हाउस का भी नाम महाराष्ट्र की भारतीय जनता पार्टी की देवेन्द्र फडणवीस सरकार और एनिमी प्रॉपर्टी की देखरेख करने वाले गृह मंत्रालय के जिम्मेदार राजनाथ सिंह ने क्यों नहीं बदला?