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थर्ड जेनरेशन के ईवीएम मशीनों से होंगे कर्नाटक चुनाव

नई दिल्ली: ईवीएम मशीनों में हैकिंग का आरोप झेल रहे चुनाव आयोग ने कर्नाटक चुनाव से पहले थर्ड जेनरेशन के ईवीएम मशीनों को लॉन्च करने जा रही है। चुनाव आयोग का दावा है कि ये ईवीएम मशीनें पूरी तरह से टैंपर प्रूफ है। इन मशीनों को इलेक्ट्रानिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड और भारत इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड ने बेंगलुरु में बनाया है। ये दोनों कंपनियां भारत सरकार की हैं। चुनाव आयोग का दावा है कि ये मशीनें नयी विशेषताओं से लैस हैं। जैसे कि ये मशीनें अपनी गलती खुद पकड़ती हैं, और इसे खुद सुधार भी सकती हैं। ये मशीनें डिजिटल हस्ताक्षर की सुविधा से लैस है। इस वजह से चंद लोगों के सिग्नेचर से ही ये मशीनें खुलती हैं और टैंपरिंग फ्रूफ है। हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक तीसरी जेनरेशन की ये मशीनें बंगलुरु में सात विधानसभा के 1800 पोलिंग स्टेशन में इस्तेमाल की जाएगी। इन विधानसभाओं में 2700 बैलट यूनिट, 2250 कंट्रोल यूनिट्स और 2350 वीवीपैट का इस्तेमाल किया जाएगा।

रिपोर्ट के मुताबिक ये ईवीएम मशीनें 24 बैलट यूनिट्स और 384 कैंडिडेट का डाटा रिकॉर्ड कर सकती है। जबकि दूसरी जेनरेशन की मशीनों में 4 बैलट और 64 कैंडिडेट का डाटा रिकॉर्ड कर सकता था। खास बात यह है कि तीसरी श्रेणी की इन ईवीएम मशीनों के माइक्रोकंट्रोलर चिप को सिर्फ एक बार प्रोग्राम किया जा सकता है। इस मशीन के सॉफ्टवेयर कोड को दोबारा नहीं लिखा जा सकता है। इस ईवीएम को निश्चित रूप से इंटरनेट या किसी और नेटवर्क से संचालित नहीं किया जा सकता है। चुनाव आयोग का यह भी कहना है कि मशीन पर कोई भी वायरस अटैक नहीं हो सकता है, क्योंकि इसको बनाने में किसी भी ऑपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल नहीं किया गया है।

इसके अलावा इन मशीनों में बैटरी का सही स्तर भी पता चलता है। इससे पहले की ईवीएम मशीनें बैटरी के बारे में हाई, मीडियम या फिर लो लेवल ही दिखाती थीं। चुनाव आयोग की योजना है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में इन ईवीएम मशीनों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाए। विधानसभा चुनावों में इसका इस्तेमाल ट्रायल के तौर पर देखा जा रहा है। यही नहीं ईवीएम के कंट्रोल यूनिट और बैलेट्स यूनिट ECIL और BEL द्वारा बनाये गये सॉफ्टवेयर और पुर्जे को ही स्वीकार करती है। नयी किस्म की मशीनों को ऑपरेट करने में मैनपॉवर की भी अपेक्षाकृत कम जरूरत होती है। इन मशीनों को 4 लोग चला कर सकते हैं जबकि पुराने मशीनों को चलाने के लिए 5 लोगों की जरूरत होती थी।

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