उत्तर प्रदेश के जौनपुर में पैदा हुए डॉ ओनिल गुप्ता के सभी चाचा डॉक्टर हैं। इसीसे प्रभावित होकर उन्होंने भी डॉक्टरी की पढ़ाई की और दिल्ली स्थित एक सरकारी अस्पताल में काम करने लगे। डॉक्टर होने और अस्पताल में काम करने के बावजूद उन्होंने खुद को तब बेहद लाचार महसूस किया जब उनके पास अपनी मां के इलाज के पैसे नहीं थे। अपनी इस लाचारी से तंग आकर तब उन्होंने अतिरिक्त आमदनी के माधयमों की तलाश करनी शुरू की तो कहीं जाकर उन्हें प्रत्यक्ष विक्रय उद्योग की व्यापकता के बारे में पता चला।

डॉ ओनिल बताते हैं कि वर्ष 2012 में उन्हें प्रत्यक्ष विक्रय कंपनी क्यूनेट के बारे उनकी छोटी बहन ने बताया। एक दिन उसने फोन पर कहा कि उसने बिज़नेस शुरू किया है और उन्हें भी इस बिज़नेस को शुरू करने की सलाह दी। बहन की सलाह पर उन्हें लगा कि यह कम उनसे नहीं हो सकता क्योंकि डॉक्टर बनने में उन्हें दस साल लगे और डॉक्टरी के अलावा वे कुछ नहीं कर सकते। समाज की सोच की चिंता भी उन्हें सता रही रही थी। फिर भीए बहन के प्रस्ताव को खारिज नहीं करते हुए अपने दिमाग को उन्होंने खुला रखा और बहन की मदद करने की नीयत से उन्होंने क्यूनेट से कुछ चीजें खरीद लीं।

इस घटना के लगभग 3 . 4 महीने बाद जौनपुर में उनकी मां की तबीयत खराब हो गई। उन्हें ऐसी बीमारी हो गई थी जिसका इलाज वहां संभव नहीं था और आर्थिक कारणों से वे उनका इलाज दिल्ली के किसी निजी अस्पताल में नहीं करवा सकते थे। इस घटना ने उन्हें बुरी तरह से झकझोर दिया और वे गंभीरता से आमदनी के वैकल्पिक माध्यमों के बारे में सोचने लगे।

डॉ ओनिल बताते हैं कि इसके बाद उन्होंने क्यूनेट के बारे में जानकारी जुटानी शुरू की और आखिरकार सितंबर 2012 में डॉक्टरी छोड़ पूरी तरह क्यूनेट के प्रत्यक्ष विक्रय व्यापार का हिस्सा बन गए। वे आगे बताते हैं कि डॉक्टरी छोड़ क्यूनेट को अपनाने का फैसला आसान नहीं था। सबसे बड़ी चुनौती उनके खुद के दिमाग में थी। इस तरह के बिज़नेस का न तो उन्हें अनुभव था और न ही जानकारी। स्वभाव से वो अंतर्मुखी थे और प्रत्यक्ष विक्रय के पेशे में लोगों से काफी मिलना .जुलना होता है। लेकिन उन्होंने इससे जूझा और लोगों से संपर्क करना शुरू किया। उनके अनुसार आज उनका व्यापार बढ़िया चल रहा हैए उनके पास अच्छी टीम हैए अच्छे दोस्त हैं और है अच्छा पैसा।
यह पूछे जाने पर व्यापार के विस्तार की प्रक्रिया में उन्हें किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ाए डॉ ओनिल ने बताया कि सबसे बड़ी समस्या है लोगों में जानकारी का अभाव। जब वह लोगों को प्रत्यक्ष विक्रय के माध्यम से खरीदारी की बात करते थे तो यह अवधारणा उन्हें समझ में नहीं आती थी। कुछ लोग तो इस व्यापार को पूरी तरह फर्जी मानते थे जबकि क्यूनेट के उत्पाद वर्ष 2012 से ही इ. कॉमर्स के मंच पर उपलब्ध हैं। ऐसे में लोगों को समझानाए उन्हें विश्वास दिलाना बहुत मुश्किल काम था।

जब उनसे यह पूछा गया कि प्रत्यक्ष विक्रय के दिशानिर्देशों से उद्योग को क्या फायदा मिला है तो इसके जवाब में लगभग 10ए000 सक्रिय वितरकों वाली टीम के मुखिया डॉ ओनिलए जिनका व्यापार यूएइ तक फैला हुआ है और जो अपने व्यापर का विस्तार मलेशिया और थाईलैंड तक करने वाले हैंए का कहना है कि उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों के बाद इस उद्योग को कानूनी दर्जा मिला है। सरकारी दिशानिर्देशों के कारण प्रत्यक्ष विक्रय को उद्योग की मान्यता मिली है। उन्हें इस बात की बेहद खुशी है कि आखिरकार सरकार ने प्रत्यक्ष विक्रय की महत्ता को स्वीकार किया और इसे मान्यता दी।

डॉ ओनिल से जब यह पूछा गया कि प्रत्यक्ष विक्रय उद्यमी बनने के बाद उनके जीवन में क्या परिवर्तन आए तो उन्होंने सबसे पहले आर्थिक बदलाव की बात कही। पहले उनके माता .पिता को ट्रेन का एसी टिकट मांगने में हिचक होती थी जबकि आज की तारिख में वे हवाई जहाज के बिज़नेस क्लास में यात्रा करते हैं। 50 साल तक भाड़े के मकान में रहने वाले अपने माता .पिता के लिए उन्होंने दिल्ली में न केवल दो विला खरीदे बल्कि उन्हें ड्राइवर सहित जर्मन गाड़ी भी दी है। उनके बच्चे दिल्ली के सबसे अच्छे स्कूल में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। साथ हीए सबसे ज्यादा आयकर देने वालों में से एक होने के कारणए वित्त मंत्रालय ने उन्हें रजत प्रमाण पत्र भी दिया है।

एक और बात जो डॉ ओनिल ने बताई कि समय . समय पर क्यूनेट व्यक्तिगत विकास पर आधारित कार्यक्रमों और परिसंवादों का आयोजन करता रहता है जिनकी वजह से उनकी सोच की दशा और दिशा दोनों में जबरदस्त बदलाव आया हैए जोकि सफलता की राह के लिए बहुत आवश्यक है।