लखनऊ: पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों में शामिल किए जाने की मांग तो काफी पुराने समय से चल रही है लेकिन अब यूपी सरकार 17 अतिपिछड़ी जातियों को एससी में शामिल करने का मन बना रही है. सपा और बसपा गठबंधन के बाद सूबे की सियासत में बीजेपी सरकार अब इन जातियों को शामिल कर नया पासा फेंकने की तैयारी में है.

जिन जातियों के लिए कवायद चल रही है वो जातियां हैं-मछुआरा, प्रजापति, राजभर, कहार, कुम्हार, मांझी, तुरहा, धीमर, निषाद, बिन्द, मल्लाह, केवट, कश्यप, भर धीवर, बाथम, गौड़.

अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की सियासत कोई नई बात नहीं है. लेकिन अब इसका फायदा केंद्र सरकार उठाने के मूड में नजर आ रही है. समाजवादी पार्टी सरकार ने 2016 में अति पिछड़ी जातियों को एससी में शामिल करने का प्रस्ताव कैबिनेट से पास कराया था और केंद्र सरकार को संस्तुति भेजकर अधिसूचना जारी की थी.

गेंद अब गेंद केंद्र सरकार के पाले में है. अमित शाह के 11 अप्रैल के दौरे में सरकार की सहयोगी पार्टी के नेता ओमप्रकाश राजभर ने यह मांग रखी थी. उन्होंने बीजेपी के सामने पूरा प्रकरण रखा और बताया था कि क्यों इन्हें एससी में शामिल किया जाए.

केंद्रीय नेतृत्व राजभर के इस समीकरण से काफी संतु्ष्ट दिख रहा है. इसे सियासत के नए दौर में जरूरी समझा गया है और अब सरकार इस पर मंथन कर रही है कि क्यों न इन जातियों को शामिल कर सियासत का नया दांव खेला जाए. दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी इसे अपनी देन बता रही है.

मामले में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष राम आसरे विश्वकर्मा कहते हैं कि अखिलेश यादव ने सपा सरकार के दौरान इन 17 अति​ पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल कराने के लिए कैबिनेट से प्रस्ताव पास कराकर केंद्र भेजा था. इसी बीजेपी की केंद्र सरकार ने उसे निरस्त कर दिया था. हमें लगता है कि बीजेपी को उस समय ये लोग विरोधी लगते थे. आज उन्हें सद्बुद्धि आ गई है. इन जातियों की सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति दलितों से भी बदतर है.

भले ही सियासत का दांव हो लेकिन अगर इन पिछड़ी जातियों को एससी में शामिल करने की प्रक्रिया पूरी कर ली जाती है तो इनलोगों की बरसों से चल रही मांग पूरी तो होगी लेकिन साथ ही दलित वर्ग की नाराजगी भी बीजेपी को झेलनी पड़ सकती है. ऐसे में बीजेपी दलितों की नाराजगी दूर करने के लिए दूसरा दांव भी खेलेगी और वह होगा प्रमोशन में आरक्षण. वैसे ये तो वक्त बताएगा कि नए सियासी माहौल में इस तरह के फैसलों को किसकों कितना फायदा मिलता है.