लखनऊ: प्रमुख सचिव गृह और डीजीपी के बयान से यह साफ हो गया कि फिलहाल पुलिस विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की गिरफ़्तारी नहीं करेगी। एसआईटी की विवेचना जारी रहेगी लेकिन विधायक की गिरफ़्तारी पर फ़ैसला अब सीबीआई लेगी। गुरुवार को राज्य सरकार की ओर से अधिकृत तौर पर सीबीआई जांच का पत्र भेज दिया गया है। सीबीआई चार जून 2017 की घटना के साथ ही अन्य दोनों मामले की भी विवेचना करेगी।

प्रमुख सचिव गृह अरविंद कुमार और डीजीपी ओपी सिंह ने उन्नाव मामले में गुरुवार सुबह प्रेस कांफ्रेंस कर अब तक हुई कार्रवाई के बारे में पक्ष रखा। प्रमुख सचिव गृह ने कहा कि उन्नाव मामले में एसआईटी गठित की गई थी, जिसने पीड़िता के चाचा, उसकी मां और अन्य के बयान लिए। एसआईटी ने प्राथमिक जांच में यह भी पाया कि पीड़िता 11 जून 2017 को ग़ायब हो गई थी। उसकी मां ने इस बारे में 12 जून को पुलिस को सूचना दी। पुलिस ने पीड़िता को औरैया से बरामद किया और कोर्ट में पेश किया, जहां मजिस्ट्रेट के सामने पीड़िता के 164 के तहत बयान दर्ज हुए।

इस आधार पर दो अभियुक्तों को गिरफ़्तार भी किया गया था। पीड़िता ने तब अपने बयान में चार जून 2017 की घटना का उल्लेख नहीं किया। 11 जून के मामले में एक अगस्त 2017 को पुलिस ने चार्जशीट फ़ाइल कर दी। एसआईटी की पूछताछ में पीड़िता के चाचा ने बताया कि 30 जून 2017 को वह अपनी भतीजी को लेकर दिल्ली चले गए। वहां पीड़िता ने अपनी चाची को 4 जून की घटना के बारे में जानकारी दी। इसके बाद फिर 17 अगस्त 2017 को घटना की शिकायत की गई।

पुलिस ने मामले की जांच की लेकिन 11 जून की घटना के संबंध में हुए 164 के बयान में पहले की घटना यानी चार जून की घटना का उल्लेख न होने के चलते विधायक या अन्य किसी गिरफ़्तारी नहीं की थी। 3 अप्रैल 2018 को पीड़िता के पिता के साथ मारपीट के मामले में डीजीआई जेल ने जो रिपोर्ट दी है और डीएम उन्नाव ने वहां के अस्पताल की भूमिका के संबंध में जो तथ्य रखे उसके आधार पर यह साफ हुआ कि जेल भेजे जाने और इलाज के लिए दोबारा अस्पताल भेजे जाने में लापरवाही हुई। इसलिए सीएमएस, इमरजेंसी मेडिकल अफसर को निलम्बित किया गया और अन्य चार डॉक्टरों पर भी विभागीय कार्रवाई की जा रही है। अब चार जून की घटना की एफआईआर दर्ज करते हुए मामले की सीबीआई से विवेचना कराने का फैसला किया गया है।

विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को माननीय बोलने पर डीजीपी ओपी सिंह विवादों में फंस गए हैं। इस पर पत्रकारों ने आपत्ति की तो उन्होंने कहा कि जब तक दोष सिद्ध नहीं हो जाता तब तक हर किसी को सम्मान का अधिकार है। विधायक बाहर रहकर किसी प्रकार पीड़िता और उसके परिवार को भयभीत न कर सकें, इसलिए परिवार को समुचित सुरक्षा दी गई है। एक पूर्व पुलिस उच्चाधिकारी ने कहा कि हाईकोर्ट एक आदेश में कह चुका है कि जैसे ही किसी विधायक अथवा सांसद के खिलाफ आपराधिक मामले में रिपोर्ट दर्ज हो, उसे माननीय कहकर संबोधित नहीं किया जाना चाहिए।

डीजीपी और प्रमुख सचिव गृह ने संयुक्त बयान में कहा कि चूंकि अब मामला सीबीआई को भेज दिया गया है लिहाजा सीबीआई ही तय करेगी कि विधायक की गिरफ़्तारी की जानी है या नहीं। गुण-दोष के आधार पर वह फैसला लेने के लिए स्वतंत्र है।

डीजीपी ने विधायक को बचाने के आरोपों पर कहा कि पीड़िता के आरोप के आधार पर ही मुकदमा दर्ज किया गया है। साक्ष्य मिलने पर सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि भूमिका पर सवाल उठाने का कोई भी प्रश्न नहीं उठता है। हम लोग ईमानदारी से काम कर रहे हैं। किसी भी दोषी को बचाने की कोई मंशा नहीं है। तथ्यों और साक्ष्यों के आधार पर अब तक कार्रवाई हुई है। आगे भी साक्ष्यों के आधार पर कार्रवाई होगी।