नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से SC/ST एक्ट पर अपने आदेश वापस लेने का आग्रह किया है. सरकार ने कहा है कि इस फैसले से देश को खासा नुकसान हुआ है. केंद्र की तरफ से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने दावा किया है कि इस फैसले से देश में काफी हंगामा हुआ है. लोग गुस्से में हैं और साथ हो लोगों में इस फैसले को लेकर असहमति भी है.

केंद्र ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले की समीक्षा करने की आवश्यकता हो सकती है. अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में SC/ST एक्ट को लेकर एफिडेविट फाइल किया. इस एफिडेविट में सरकार की तरफ से कहा गया है कि 'कोर्ट इस तरह से कानून में बदलाव नहीं कर सकता, ये अधिकार संसद के पास है। इसके साथ ही सरकार ने कोर्ट से ये भी कहा कि 'एससी-एसटी एक्ट पर दिए गए फैसले ने न सिर्फ इस कानून को कमजोर किया है, बल्कि इसके कारण देश में हिंसा भी फैली, जिससे देश को काफी नुकसान हुआ.'

इस एफिडेविट में सरकार ने कहा कि डीएसपी की जांच के बाद एफआईआर दर्ज करने का फैसला गलत है. साथ ही सरकारी कर्मचारी या आम नागरिक की गिरफ्तारी से पहले भी निश्चित अथॉरटी की मंजूरी लेने का फैसला भी गलत है. FIR दर्ज करना पुलिस का काम है.
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस एक्ट के जरिए कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है. सरकार ने इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दिया है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को दिए अपने फैसले में एससी-एसटी एक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए अग्रिम जमानत को मंजूरी दे दी थी.

इस महीने की तीन तारीख को सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST एक्ट पर अपने फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि केन्द्र की पुनर्विचार याचिका पर 10 दिन बाद विस्तार से सुनवाई की जायेगी. जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस उदय यू ललित की पीठ की दलील थी कि आंदोलन कर रहे लोगों ने फैसले को ठीक से पढ़ा नहीं है और उन्हें कुछ लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए गुमराह किया है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस एक्ट के तहत कानून का दुरुपयोग हो रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी न किए जाने का आदेश दिया है. इसके अलावा इसके तहत दर्ज होने वाले केसों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस को 7 दिन के भीतर जांच करनी चाहिए और फिर आगे एक्शन लेना चाहिए. अगर अभियुक्त सरकारी कर्मचारी है तो उसकी गिरफ़्तारी के लिए उसे नियुक्त करने वाले अधिकारी की सहमति ज़रूरी होगी. उन्हें ये लिख कर देना होगा कि उनकी गिरफ्तारी क्यों हो रही है. अगर अभियुक्त सरकारी कर्मचारी नहीं है तो गिरफ़्तारी के लिए एसएसपी की सहमति ज़रूरी होगी. इससे पहले ऐसे केस में सीधे गिरफ्तारी हो जाती थी.