नई दिल्ली: उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस के.एम. जोसेफ और वरिष्ठ अधिवक्ता इंदु मल्होत्रा को प्रोन्नत कर सुप्रीम कोर्ट लाने की कॉलेजियम की सिफारिशों पर सरकार के बैठने से खफा सुप्रीम कोर्ट में पांचवें वरिष्ठ जज जस्टिस कुरियन जोसेफ ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा है।

पत्र में उन्होंने कहा कि जस्टिस कर्णन के मामले में जिस प्रकार सात जजों की संविधान पीठ ने बैठकर फैसला दिया था वैसे ही सात जजों को स्वत: संज्ञान लेकर कॉलेजियम की सिफारिशों पर फैसला लेना चाहिए। जस्टिस जोसेफ ने जस्टिस दीपक मिश्रा को लिखे अपने पत्र में कहा है कि इससे पूर्व कभी सिफारिशों पर याद नहीं दिलाया गया, लेकिन अब सिफारिशों को भेजे तीन महीने हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि इस मामले में आपात कदम उठाए जाएं और ‘नार्मल डिलीवरी’ नहीं हो रही है तो ‘सर्जरी’ करने की जरूरत है। यदि ऐसा ऑपरेशन नहीं किया गया तो बच्चे की गर्भ में मौत हो सकती है।

इस पत्र की प्रति सुप्रीम कोर्ट अन्य 22 जजों को भी भेजी गई है। उन्होंने कहा कि सरकार अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर रही है और यह न्यायपालिका की आजादी के लिए खतरा है। उन्होंने कहा कि इससे गलत संदेश जा रहा है कि यदि केंद्र सरकार की लाइन पर नहीं चलोगे तो दिक्कतें होंगी। जस्टिस कुरियन जोसेफ ने अप्रैल 2016 में उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने के केंद्र सरकार के आदेश को निरस्त कर दिया था।

जस्टिस कुरियन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का जीवन और अस्तित्व ही खतरे में है। यदि हमने केंद्र सरकार के कॉलेजियम की सिफारिशों पर बैठने के खिलाफ कार्रवाई नहीं की तो हमें इतिहास माफ नहीं करेगा।