लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा में मंगलवार को यूपीकोका बिल दोबारा पास हो गया है. योगी सरकार का दावा है कि उत्तर प्रदेश संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (यूपीकोका) बिल से सूबे में खनन माफिया, लैंड माफिया और संगठित अपराध पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी. वैसे तो इस कानून का मसौदा मायावती शासनकाल में ही तैयार किया गया था, लेकिन किन्हीं कारणों से यह पास नहीं हो पाया. लेकिन योगी सरकार अब यूपीकोका को पास करवाकर सूबे में संगठित अपराध को खत्म करने का दावा कर रही है.

सदन में सीएम योगी ने कहा कि यूपीकोका से प्रदेश में संगठित अपराध से जुड़े अपराधियों की कमर टूटेगी. सीएम ने कहा​ कि यूपीकोका महराष्ट्र और कर्नाटक से भी तुलना करके तैयार किया गया है. बाहुबल, फिरौती, अपहरण, तमाम ऐसे अपराध है, जिससे राज्य की छवि खराब हो रही है, जिस पर यूपी कोका विराम लगाएगा.

दरअसल अब तक पुलिस पहले अपराधी को पकड़कर कोर्ट में पेश करती थी, फिर सबूत जुटाती थी. लेकिन यूपीकोका के तहत पुलिस पहले अपराधियों के खिलाफ सबूत जुटाएगी और फिर उसी के आधार पर उनकी गिरफ्तारी होगी यानी अब अपराधी को कोर्ट में अपनी बेगुनाही साबित करनी होगी. इसके अलावा सरकार के खिलाफ होने वाले हिंसक प्रदर्शनों को भी इसमें शामिल किया गया है. सरकार का दावा है कि इस बिल में गवाहों की सुरक्षा का खास ख्याल रखा गया है. यूपीकोका के तहत आरोपी ये नहीं जान सकेगा कि किसने उसके खिलाफ गवाही दी है.

सरकार न सिर्फ गवाहों को सुरक्षा मुहैया कराएगी बल्कि गवाही भी बंद कमरे में होगी. अदालत भी गवाह के नाम को उजागर नहीं करेगी. इतना ही नहीं अपराधी की शिनाख्त परेड भी आमने सामने न होकर अप्रत्यक्ष रूप से होगी. मसलन, फोटो, वीडियो या फिर ऐसे शीशे से कराई जाएगी, जिसमें अपराधी गवाह को देख न सके. इस कानून के तहत अभियुक्त को यह जानने का अधिकार नहीं होगा कि उसके खिलाफ किसने गवाही दी है.

प्रमुख सचिव गृह अरविंद कुमार ने पिछले दिनों बताया था कि इस कानून का दुरुपयोग न हो इसका भी ख़याल रखा गया है. यूपीकोका उन्हीं पर लगेगा, जिसका पहले से आपराधिक इतिहास रहा हो. पिछले पांच वर्ष में एक से अधिक बार संगठित अपराध के मामले में चार्जशीट दाखिल की गई हो और कोर्ट ने दोषी पाया हो. इसका दुरुपयोग न हो सके इसके लिए कमिश्नर और आईजी या डीआईजी स्तर के अधिकारी की समिति के अनुमोदन का प्रावधान है. इनसे ऊपर राज्य की समिति होगी जो ऐसे मामले में निगरानी रखेगी.

यूपीकोका यानी संगठित जुर्मों के खिलाफ बना यह कानून पुलिस को अप्रत्याशित अधिकार और पावर दे देता है. किसी अन्य जुर्म के लिए पुलिस आरोपी को 15 दिनों की रिमांड पर ही हवालात में रख सकती है लेकिन यूपीकोका के सेक्शन 28 (3अ) के अंतर्गत बिना जुर्म साबित हुए भी पुलिस किसी आरोपी को 60 दिनों तक हवालात में रख सकती है. इस दौरान पुलिस पूछताछ के साथ थर्ड डिग्री टॉर्चर आम बात है.

आईपीसी की धारा के अंतर्गत किसी को गिरफ्तार करने के 60 से 90 दिनों के अन्दर चार्जशीट दाखिल करनी पड़ती है, वहीं मकोका में यह अवधि 180 दिनों की है. इसी तर्ज पर यूपीकोका में भी 180 दिनों तक बिना चार्जशीट दाखिल किए आरोपी को जेल में रखा जा सकेगा.

इसके साथ ही जेल के अन्य कैदियों से मिलने के लिए भी इस कानून के अंतर्गत बहुत सख्ती है. सेक्शन 33 (सी) के अनुसार किसी जिलाधिकारी की परमिशन के बाद ही यूपीकोका के आरोपी साथी कैदियों से मिल सकते हैं, वो भी हफ्ते में एक से दो बार.

यूपीकोका की सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट बैठेगी और मुजरिम पाए जाने पर उम्र कैद से लेकर मौत की सजा का भी प्रावधान होगा. साथ ही मुजरिम पर 5 से लेकर 25 लाख तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.

इस तरह का नियम लागू करने के बाद उत्तर प्रदेश भी उन राज्यों में शामिल हो जाएगा जिन्होंने COCA (कंट्रोल ऑफ आर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट) लागू किए हैं. इस तरह के एक्ट्स की शुरुआत हुई थी मुंबई में साल 1999 में जिसके बाद गुजरात, कर्नाटक और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों ने भी अपने अलग कानून बना लिए.

यूपीकोका के तहत आरोपी को सजा–ए-मौत तक का प्रावधान है. गृह विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि किसी ऐसे संगठित अपराध जिसमें किसी की मौत होती है तो ऐसे मामलों में आरोपी को फांसी तक का प्रावधान है. यूपीकोका से संबंधित मामलों में कम से कम सजा सात साल व कम से कम जुर्माना 15 लाख रुपए तय किया गया है.

संगठित अपराध करने वालों को शरण देने पर उम्रकैद से 7 साल तक की सज़ा और 15 लाख का जुर्माना संगठित अपराध करने वाले की संपत्ति रखने वाले को 3 साल से आजीवन कारावास तक.

यूपीकोका के तहत अपराधों की सूची निजी या सरकारी जमीन पर कब्ज़ा, बाजारों, व्यापारियों से अवैध वसूली, अवैध खनन, वन उपज का अवैध दोहन, मनी लॉन्ड्रिंग, मानव व्यापार नकली दवा, अवैध शराब बेचना ऐसे अपराधों से किसी की मौत होने पर आरोपी को उम्रकैद या मृत्युदंड मिलेगा.