नई दिल्ली : हर पेट्रोल पंप, रसोई गैस एजेंसी या चौक-चौरहों पर आपको गैस सिलेंडर की सब्सिडी छोड़ने की अपील करते बड़े-बड़े विज्ञापन दिखाई दे जाएंगे. और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सब्सिडी छोड़ने की अपील का असर भी हुआ है. लाखों सक्षम लोगों ने सब्सिडी वाले रसोई गैस सिलेंडर लेना बंद भी कर दिया है. मगर वहीं एक तस्वीर यह भी है कि चुनावों में करोड़ों रुपया पानी की तरह बहाने वाले हमारे माननीयों को संसद भवन में सब्सिडी वाला सस्ता भोजन मुहैया कराया जाता है. पिछले 5 सालों में सरकार सांसदों के सस्ते भोजन पर 74 करोड़ रुपये सब्सिडी के खर्च कर चुकी है.

वैसे तो निर्वाचित प्रतिनिधि अपने को 'जनता का सेवक' बताने से नहीं हिचकते, मगर एक बार चुनाव जीतने के बाद उनकी आर्थिक स्थिति में आने वाले बदलाव का किसी को अंदाजा नहीं है. एक तरफ जहां सांसदों को लगभग डेढ़ लाख रुपये मासिक पगार व भत्ते मिलते हैं, वहीं बिजली, पानी, आवास, चिकित्सा, रेल और हवाई जहाज में यात्रा सुविधा मुफ्त मिलती है. इतना ही नहीं, एक बार निर्वाचित होने पर जीवनभर पेंशन का भी प्रावधान है.

संसद के दोनों सदनों- लोकसभा और राज्यसभा में करोड़पति सांसदों की कमी नहीं है, उसके बावजूद उन्हें संसद परिसर में स्थित चार कैंटीनों में सस्ता खाना दिया जाता है. वास्तविक कीमत और रियायती दर पर दिए जाने वाले खाने के अंतर की भरपाई लोकसभा सचिवालय यानी सरकार को करनी होती है. औसत तौर पर हर वर्ष कैंटीन से सांसदों को उपलब्ध कराए जाने वाले सस्ते भोजन के एवज में 15 करोड़ की सब्सिडी के तौर पर भरपाई करनी होती है.

मध्य प्रदेश के नीमच निवासी सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने सूचना के अधिकार के तहत सांसदों को रियायती दर पर मिलने वाले भोजन के चलते सदन या सरकार पर पड़ने वाले आर्थिक भार की जो जानकारी हासिल की, वह चौंकाने वाली है. बताया गया है कि बीते पांच सालों में सांसदों के सस्ते भेाजन पर 73,85,62,474 रुपये बतौर सब्सिडी दी गई.