लखनऊ: “एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय दलित हितों पर कुठाराघात”- यह बात आज एस.आर.दारापुरी, पूर्व पुलिस महानिरीक्षक एवं संयोजक जन मंच उत्तर प्रदेश ने प्रेस को जारी ब्यान में कही है. उनका कहना है उक्त निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने उक्त एक्ट के क्रियानव्यन के सम्बन्ध में जो दिशा निर्देश जारी किये हैं वे इस एक्ट को बिलकुल निष्प्रभावी कर देंगे. यह सर्वविदित है कि वर्तमान में दलित उत्पीडन के मामले की प्रथम सूचना दर्ज कराना सबसे मुश्किल काम होता है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा राजपत्रित अधिकारी द्वारा जांच के बाद ही प्रथम सूचना दर्ज किया जाना इसे और भी कठिन बना देगा. इतना ही नहीं गलत प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होने पर सज़ा और कन्टेम्प्ट आफ कोर्ट का डर अधिकारियों को और भी भयभीत कर देगा और वे आसानी से प्रथम सूचना दर्ज करने का आदेश नहीं देंगे. यह भी ज्ञातव्य है कि वर्तमान में भी गलत केस दर्ज कराने पर वादी के विरुद्ध आईपीसी की धारा 182 के अंतर्गत केस दर्ज करके दण्डित करने का प्राविधान है. इसी प्रकार अग्रिम जमानत मिलने तथा उच्च अधिकारियों की अनुमति से ही गिरफ्तारी करने का आदेश इस एक्ट के डर को बिलकुल खत्म कर देगा. सरकारी कर्मचारियों के मामले में आरोपी व्यक्ति के विरुद्ध नियुक्ति अधिकारी की स्वीकृति प्राप्त करने के बाद ही अदालत में मुकदमा चलाने का आदेश भी इस एक्ट को काफी हद तक कमज़ोर कर देगा. पहले ही इस एक्ट के अंतर्गत सज़ा मिलने की दर बहुत निम्न है.

इस प्रकार कुल मिला कर एससी/एसटी एक्ट के दुरूपयोग को रोकने के इरादे से सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गये दिशा निर्देश वादी की रक्षा की बजाये आरोपी के हित में ही खड़े दिखाई देते हैं जिस से दलित उत्पीड़न की उपेक्षा और उत्पीड़क को संरक्षण मिलेगा.

अतः जन मंच उत्तर प्रदेश यह मांग करता है कि केन्द्रीय सरकार उक्त निर्णय में एससी/एसटी एक्ट के क्रियानव्यन पर लगाये गये प्रतिबंधों को ख़त्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका तुरंत दाखिल करे ताकि उत्पीड़न का शिकार दलितों को कानून का उचित संरक्षण मिल सके. सभी दलित संगठनों को भी इस मांग को जोर शोर से उठाना चाहिए.