लखनऊ: लखनऊ विश्वविद्यालय के मालवीय सभागार में जयप्रकाश शाही स्मृति संस्थान द्वारा आयोजित विचार मंथन में प्रदेश के विधायी एवं न्याय, अतिरिक्त ऊर्जा स्रोत तथा राजनीतिक पेंशन मंत्री बृजेश पाठक और ग्राम्य विकास, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री डा० महेन्द्र सिंह, वरिष्ठ पत्रकार के विक्रम राव, बाबा हरदेव सिंह, श्री बृज लाल एवं अनेक सुधी वक्ताओं ने बहुत सरल और सर्वग्राह्य शैली में बताया कि समरसता का तात्पर्य वास्तव में क्या है। समरसता का अर्थ एकरूपता नहीं है। समरसता का मूल भाव अपनी क्षमता और योग्यता के अनुसार अर्जित सुख को सबके साथ मिल बांट कर रहने में है।

इस संगोष्ठी की अध्यक्षता लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एस.पी.सिंह ने की। विभिन्न क्षेत्रों के अनेक महानुभावों जिन्हें आज इस गरिमामय मंच से सम्मानित किया गया उनमें वरिष्ठ पत्रकार नन्दकिशोर श्रीवास्तव, इलेक्ट्रानिक मीडिया की पत्रकार शिल्पी सेन, उत्कर्ष चतुर्वेदी, फोटो पत्रकार इन्द्रेश और अनेक वर्षों से अपनी पत्रकारिता से सामाजिक चेतना जागृत करने वाले शिव शरण सिंह शामिल थे। इनके अलावा बेसिक शिक्षा के निदेशक सर्वेन्द्र विक्रम बहादुर सिंह, समाजसेवी और लखनऊ उद्योग व्यापार मण्डल के अध्यक्ष राजेन्द्र अग्रवाल, कन्हैया लाल अग्रवाल, डा० सुभाष चन्द्र विश्वकर्मा, प्रख्यात अधिवक्ता प्रशान्त सिंह अटल, उर्दू अखबार सहाफत के सम्पादक अमान अब्बास, वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी, प्रो. राकेश दिवेदी, राहुल राज रस्तोगी, महन्त धमेन्द्र दास उदासीन अखाड़ा शामिल थे।

प्रदेश के विधायी एवं न्याय, अतिरिक्त ऊर्जा स्रोत तथा राजनीतिक पेंशन मंत्री बृजेश पाठक, ग्राम्य विकास, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री डा० महेन्द्र सिंह, वरिष्ठ पत्रकार के विक्रम राव ने इस संगोष्ठी में अपने विद्वतापूर्ण व्याख्यानों के लिए उपस्थित स्रोताओं द्वारा बहुत सराहे गये। श्री बृजेश पाठक ने जहां देश और प्रदेश में सुचिता और स्वच्छ प्रशासन के प्रति बढ़ते विश्वास का जिक्र किया। वहीं सामाजिक समरसता को वर्तमान समय की आवश्यकता बताया। डा० महेन्द्र सिंह ने पुस्तक मेरी बातें के विभिन्न लेखों को जिक्र करते हुए बताया कि किस तरह इस पुस्तक के माध्यम से सामाजिक समरसता के विषय को पूरी गम्भीरता से व्यक्त किया गया है। उन्होंने बताया कि लेखक की सात पुस्तकों में से सभी को अध्ययन उन्होंने किया है और माना है कि समाज के जागरूक नागरिक की भूमिका का लेखक ने बखूबी निर्वाह किया है। श्री के० विक्रम राव ने स्वर्गीय जयप्रकाश शाही जी की लेखनी के पहलू साझा किये | उन्होंने बताया की शाही जी जब जनसत्ता में थे तो उन्होंने कई खोजी रपट लिखीं | श्री विक्रम राव ने कहा की पत्रकारों को अपने संस्मरण खूब लिखने चाहिये क्युकी वे लोग इतहास के साक्षी है | डा० महेन्द्र सिंह की पुस्तक “मेरी बातें” के बारे में के विक्रम राव ने कहा की डा० महेंद्र ने अपने दशकों के संस्मरण इसमें समायोजित किये है, ये पुस्तक युवा पत्रकारों के लिए प्रेरणा स्त्रोत है |

प्रदेश के पुलिस महानिदेशक रहे श्री बृजलाल ने अपने अनेक अनुभवों का उल्लेख किया। साथ ही कहा कि अनुसूचित जातियों को एक बार फिर भरमाने का प्रयास कुछ लोग कर रहे हैं। इनका उद्देश्य केवल इतना ही है कि ये समाज उसी तरह भटकाया जाय जिस तरह भारत विभाजन के काल में बंगाल के हरिजन नेता जोगेन्द्र नाथ मण्डल के माध्यम से भड़का कर उन्हें पाकिस्तान में बने रहने के लिए कहा गया था। वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी रहे बाबा हरदेव सिंह के विवेचन की गम्भीरता का असर श्रोताओं पर बहुत पड़ा। उन्होंने जिस शैली में सामाजिक समरसता और राष्ट्रीय चेतना के विषय की व्याख्या की वह निश्चित रूप से अदभुत और बहुत सारगर्भित थी। कुलपति प्रो. एस.पी.सिंह ने आयोजन की सराहना करते हुए कहा कि राष्ट्रीय विषयों पर युवा पीढ़ी को प्रभावित और प्रेरित करने वाली ऐसी विवेचनपूर्ण संगोष्ठियां समय-समय पर आयोजित की जानी चाहिए। संगोष्ठी के अन्त में वेणु रंजन भदौरिया ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। संगोष्ठी में स्व. जयप्रकाश शाही की पत्नी श्रीमती शीला शाही और दोनों बेटियां ऋतु तथा रुचि ने अपने पिता के चित्र पर पुष्पांजलि की। संगोष्ठी का संचालन प्रमुख समाजसेवी राजेन्द्र जी ने किया। इस संगोष्ठी में प्रो. एस.पी.शाक्य, प्रो. एस.एन.सिंह, प्रो. अमिता, कर्नल धर्मराज सिंह, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी आर.बी.सिंह, प्रशान्त सिंह, अशोक सेंगर, अशोक कुमार सिन्हा, सर्वेश चन्द्र द्विवेदी, रामवीर सिंह, अर्चना भदौरिया, डा० संग्राम सिंह, ओंकारनाथ बाजपेयी, तेजभान सिंह, रवीन्द्र रस्तोगी, विजय द्विवेदी, धनन्जय सिंह, तुलाराम निमेष, डा० शैलेष मिश्र, बृजराज भदौरिया, अजीत सिंह आदि उल्लेखनीय महानुभाव उपस्थित रहे।