लखनऊ: उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने आज ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती उर्दू, अरबी-फारसी विश्वविद्यालय, लखनऊ एवं मौलाना आजाद इन्स्टीट्यूट आॅफ हयूमिनिटीज साइंस एण्ड टेक्नोलाॅजी, सीतापुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय उर्दू सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस अवसर पर न्यायमूर्ति शबीहुल हसन, न्यायमूर्ति मसूदी, पूर्व मंत्री डाॅ0 अम्मार रिज़वी, कुलपति डाॅ0 महरूख मिर्जा, प्रो0 सहबा हुसैन कनाडा, प्रो0 आरिफ नकवी जर्मनी, डाॅ0 कायम मेंहदी लन्दन, डाॅ0 मुर्तजा अली नकवी सहित देश एवं विदेश से पधारे अनेक उर्दू विद्वान उपस्थित थे। सम्मेलन में बर्लिन विश्वविद्यालय के प्रो0 आरिफ नकवी ने राज्यपाल की पुस्तक ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ के जर्मन अनुवाद तथा लखनऊ विश्वविद्यालय से प्रो0 आरिफ अयूबी ने अरबी एवं फारसी भाषा में अनुवाद का आलेख राज्यपाल को भेंट किया।

राज्यपाल ने इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि उर्दू सबको जोड़ने वाली भारतीय भाषा है। उर्दू किसी वर्ग विशेष की भाषा नहीं है क्योंकि भारतीय संविधान में उसे मान्यता दी गयी है। उर्दू ने देश को अनेक ऐसे मूर्धन्य विद्वान दिए हैं जो किसी वर्ग विशेष के नहीं हैं। फिराक गोरखपुरी, चकबस्त, गोपीचंद नारंग, प्रेमचंद जैसे अनेक उर्दू साहित्यकार हैं जिन्होंने उर्दू को समृद्ध करने का काम किया है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ को मानने वाले देश में सभी भारतीय भाषायें एक समान हैं। उन्होंने कहा कि हिन्दी और उर्दू आपस में बहनें हैं। उन्होंने आश्वस्त किया कि सम्मेलन से निकले निष्कर्ष के आधार पर उर्दू भाषा के विकास के लिए वे केन्द्र और राज्य सरकार के स्तर पर जो भी आवश्यकता होगी, सहयोग करेंगे।

श्री नाईक ने कहा कि उर्दू का देश में शानदार इतिहास रहा है। स्वतंत्रता संग्राम और समाज के उत्थान में उर्दू भाषा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, मौलवी बाकर अली, मौलाना अली मोहम्मद जौहर, गणेश शंकर विद्यार्थी, हसरत मोहानी आदि जैसे इंकलाबी पत्रकारों ने आजादी की मशाल को अपने विचारों से आगे बढ़ाया। उर्दू के शब्दों में जोश और जज्बा पैदा करने की क्षमता है। उन्होंने कहा कि समाज में एकता और सद्भाव बढ़ाने के लिए सभी भाषा के साहित्यकार अपने कलम का प्रयोग करें।

राज्यपाल ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि राज्य सरकार ने अपने बजट में अल्पसंख्यकों के विकास के लिए 2,757 करोड़ रूपये की व्यवस्था की है जो पिछले वर्ष की तुलना में 281.39 करोड़ रूपये अधिक है। सरकार ने अरबी-फारसी मदरसों के आधुनीकीकरण के लिए 404 करोड़ रूपये की व्यवस्था बजट में की है। उर्दू के अच्छे साहित्य अन्य भारतीय भाषाओं में तथा अन्य भारतीय भाषाओं के अच्छे साहित्य उर्दू भाषा में अनुवाद किए जाएं। अनुवाद के माध्यम से सभी भाषाओं का विकास होगा तथा लोगों तक अच्छे साहित्य की जानकारी पहुंचेगी। उन्होंने कहा कि उर्दू भाषा के विकास के लिए उर्दू को शेरो-शायरी तक सीमित न रखकर रोजगारपरक बनाकर समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की आवश्यकता है। राज्यपाल ने अपनी पुस्तक ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ की पृष्ठभूमि पर चर्चा करते हुए कहा कि उन्होंने अपनी पुस्तक के साथ-साथ अपने तृतीय वार्षिक कार्यवृत्त का प्रकाशन उर्दू में भी किया है।

डाॅ0 अम्मार रिज़वी ने उर्दू सम्मेलन के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए बताया कि उर्दू के विकास के लिए यह दूसरा अंतर्राष्ट्रीय उर्दू सम्मेलन आयोजित किया गया है। उन्होंने कहा कि उर्दू को ‘आरनामेंटल भाषा’ तक सीमित न करके उसे रोजगार से जोड़ने की जरूरत है।

राज्यपाल ने इस अवसर पर डाॅ0 शमसुर रहमान फारूकी को प्रो0 नैय्यर मसूद अवार्ड, डाॅ0 मसरूर जहाँ को आबिद सुहैल अवार्ड, प्रो0 आरिफ नकवी को डाॅ0 मलिकजादा मंजूर अहमद अवार्ड तथा श्रीमती सुनीता झिंगरन को कृष्ण बिहारी नूर अवार्ड देकर सम्मानित किया।
कार्यक्रम में स्वागत उद्बोधन एवं धन्यवाद ज्ञापन कुलपति डाॅ0 महरूख मिर्जा द्वारा किया गया।