नई दिल्ली: प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के जरिए स्वरोजगार पाने वालों को देश में पहली बार जॉब डेटा में शामिल किया जाएगा। अगर ऐसा होता है तो नौकरीशुदा लोगों की मौजूदा संख्या पचास करोड़ में पांच करोड़ का इजाफा हो सकता है।
अपने चार साल के कार्यकाल में प्रतिवर्ष एक करोड़ लोगों को नौकरी नहीं देने के वादे पर चौतरफा वार झेल रही केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार अब स्वरोजगार पाए लोगों का आंकड़ा भी रोजगार पाए लोगों की सूची में शामिल करने पर विचार कर रही है। अगर ऐसा होता है तो पिछले चार साल में नौकरी पाने वालों की संख्या में आश्चर्यजनक इजाफा हो सकता है। ईटी के मुताबिक केंद्रीय श्रम मंत्रालय द्वारा प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के जरिए ऋण लेकर स्वरोजगार करने वालों का आंकड़ा जोड़ने पर विचार किया जा रहा है। बता दें कि श्रम ब्यूरो जो रोजगार पर आंकड़े जारी करता है, श्रम मंत्रालय के अधीन काम करता है। माना जा रहा है कि अगले साल यानी 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले मोदी सरकार श्रम ब्यूरो के आंकड़ों को लोगों के सामने रखकर अपनी पीठ थपथपा सकती है।

दरअसल, यह प्रस्ताव तब आया जब रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि इस साल 55 लाख लोगों को कर्मचारी भविष्य निधि से जोड़ा जाएगा। ईपीएफओ में इतनी संख्या को जोड़ने का अर्थ सरकारी एजेंसियों ने इतनी नौकरियों के सृजन से लगाया था लेकिन आलोचकों का कहना है कि ईपीएफओ में नामांकन का मतलब नौकरी नहीं होता है। मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से ईटी के मुताबिक प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के जरिए स्वरोजगार पाने वालों को देश में पहली बार जॉब डेटा में शामिल किया जाएगा। अगर ऐसा होता है तो नौकरीशुदा लोगों की मौजूदा संख्या 50 करोड़ में पांच करोड़ का इजाफा हो सकता है। यानी पांच साल में पांच करोड़ का रोजगार सृजन, जैसा कि पीएम मोदी ने वादा किया था।