प्रौद्योगिकी ने हमारे जीवन को बदल दिया है. इसका एक दूरगामी, विघटनकारी प्रभाव भी पड़ा है, जिसने परंपरा को चुनौती दी है. इसने न केवल हमारे द्वारा किए गए कार्यों को बदल दिया है, बल्कि कार्य करने के तरीके को भी बदला है.

अशोक शर्मा,प्रेसीडेंट-एग्रीकल्चर सेक्टर, एमडी और सीईओ – महिंद्रा एग्री सॉल्यूशंस लिमिटेड के अनुसार इस पर विचार करें. दुनिया की सबसे बड़ी यात्रा के लिए कारण उपलब्ध कराने वाली कंपनी के पास एक भी कार नहीं है. दुनिया की सबसे बड़ी होटल श्रृंखला के पास एक भी होटल नहीं है. गूगल और एप्पल किसी दिन स्वायत्त कार के निर्माता के रूप में दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों की प्रतिद्वंद्वी बन सकती है.

भारतीय कृषि पर भी प्रौद्योगिकी का ऐसा ही विघटनकारी और परिवर्तनकारी प्रभाव पड़ सकता है.

मैंने जिन उदाहरणों का उल्लेख किया है, उन कंपनियों का व्यवसायिक मॉडल तकनीक पर निर्भर हैं. कृषि डिजिटल रूप से गहन नहीं है, फिर भी प्रौद्योगिकी को अपनाने से नई क्रांति पैदा हो सकती है और अभूतपूर्व उत्पादकता बढ सकती है. इससे समृद्धि का नया युग शुरू हो सकता है.

आज जिस तरह से चीजें हमारे सामने है, भारत की 50 फीसदी से अधिक आबादी कृषि और संबंधित गतिविधियों से अपनी आजीविका चलाती है. लेकिन, देश के 80 प्रतिशत से अधिक किसान छोटे और सीमांत हैं. उनके खेतों का आकार औसतन दो हेक्टेयर से कम है.

इसके कारण, किसान उत्पादन या प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी के आधुनिकीकरण को नहीं अपना पा रहे है. वे उपज बढाने लायक बीज और खाद भी इस्तेमाल नहीं करते है. इस तरह, खराब उत्पादकता और कमजोर आय का एक दुष्चक्र जारी रहता है.

इसके लिए सरकारी नियमों की जटिलताएं, परिवहन और भंडारण वितरण से संबंधित अपर्याप्त बुनियादी ढांचा भी कारण है. यह सब कृषि उत्पादन को प्रभावित करता है. ये किसान के उत्पादन मूल्य को कम कर देता है.

प्रौद्योगिकी को अपनाने से इस दुष्चक्र को तोडा जा सकता है. तकनीक भारत की कृषि संभावनाओं को सामने ला सकता है और देश के किसानों की समृद्धि बढा सकता है.

स्मार्टफोन का बढता इस्तेमाल किसानों के लिए नए अवसर खोल रहा हैं.

हम इस बदलाव को फार्मिंग 3.0 कहते हैं और यह पहले से ही चल रहा है. इस रोमांचक नए चरण में, भारत सक्रिय रूप से अभिनव खेती की ओर बढ़ रहा है. सरकार और साथ ही निजी क्षेत्र इस बदलाव का लाभ लेते हुए किसानों और ग्राहकों को बेहतर सेवा देने के लिए काम कर रहे है. हम ये देखी रहे है कि पारंपरिक तरीके को चुनौती देते हुए बहुत से युवा उद्यमी स्टार्ट अप्स और नए आइडियाज के साथ सामने आ रहे हैं.

आजादी के कुछ ही समय बाद शुरू हुआ फार्मिंग 1.0, जो 1960 के मध्य तक चला, भूमि सुधार के रूप में देखा गया. 1960 के दशक में शुरू हुआ दूसरा चरण, फार्मिंग 2.0 कहते है, का उद्देश्य भारत को अनाज के मामले में और खाद्य सुरक्षा के हिसाब से आत्मनिर्भर बनाना था.

इस चरण ने हमें बड़ा ट्रैक्टर, बेहतर बीज और बेहतर सिंचाई व्यवस्था दिया. खाद्य उत्पादन में अगली छलांग का अर्थ है, खेती को और गहन बनाना. इसमें कम के साथ अधिक उत्पादन, बड़े पैमाने पर और अधिक दक्षता के साथ उत्पादन करना. इस क्रांति को लाने में प्रौद्योगिकी एक प्रमुख भूमिका निभाएगा.
यह चरण पूरी तरह से नवाचार, डिजिटल और सटीक कृषि के बारे में है. ये इस क्षेत्र की पीपल, प्रोसेस और टेक्नोलॉजी जैसी मौजूदा चुनौतियों से मुकाबला करने में मदद करेगा.

हमारे विभिन्न किसान उन्मुख पहल में से, महिंद्रा ने एक डिजिटल प्लेटफॉर्म लॉन्च किया है. ये प्लेट्फॉर्म स्मार्टफोन के जरिए किसानों को खेत संबंधी सामयिक जानकारी प्रदान करता है. हमारा मायएग्रीगुरु बहुभाषी ऐप एक 24’7 सलाहकार प्लेटफॉर्म के रूप में कार्य करता है. ये किसानों को आवश्यक जानकारी प्रदान करता है. जैसे, मौसम के आंकड़ों, पूर्वानुमान, मंडी की कीमतों और उन्हें कृषि विशेषज्ञों के साथ बातचीत करने की सुविधा भी देता है. ये उन्हें आवश्यक ज्ञान से सुसज्जित रखता है. ये किसानों को बेहतर कीमतों की जानकारी देने के साथ-साथ खेतों की देखभाल और बेहतर उत्पादन करने में मदद करता है.
हमारी एक अन्य तकनीकी पहल है, किराये पर ट्रैक्टर सेवा. इसका नाम है ट्र्रिन्गो. जब भी किसी किसान को ट्रैक्टर की जरूरत होती है, तो वह इसे खरीदने के बजाय किराए पर ले सकता है. इससे मैकेनाइजेशन को बढ़ाने में मदद मिलेगी. ये उत्पादन के स्तर और समग्र आय को बढ़ाएगी.

कृषि उत्पादकता में सुधार में प्रौद्योगिकी उपयोग के ये दो उदाहरण हैं.

लेकिन यह एक शुरुआत है, आगे का रास्ता और भी लंबा है. उदाहरण के लिए, एक ऐसी दुनिया की कल्पना करें जहां ड्रोन फ्लाईट खेत के ऊपर से डेटा इकट्ठा करते हैं, सेटेलाइट खेतों का क्षेत्रफल माप रहा हो, स्मार्ट फार्म उपकरण मौसम, मिट्टी की स्थिति और फसल के लिए आवश्यक पानी की जानकारी देते है.

सूक्ष्मता ही नया खेल होगा जो दक्षता बढाते हुए, लागत को कम करते हुए आउटपुट को अधिकतम करेगा. मोबाइल-आधारित एप लालफीताशाही कम करेगा. बिचैलिए हट जाएंगे और आपूर्ति श्रृंखला को छोटा हो जाएगा. सिस्टम से बेकार की लागतें खत्म हो जाएंगी. किसानों को अपने उत्पाद का निष्पक्ष और पूरा मूल्य मिलेगा. उपभोक्ता के लिए कीमतें कम हो जाएंगी.

मुझे विश्वास है कि मायएग्रीगुरू एप जैसा पहल, जो ऋण, इनपुट, सलाहकार सेवाओं या मार्केट लिंकेज जैसे मामले में अनौपचारिक और असंगठित खिलाड़ियों पर किसानों की निर्भरता को कम करता है, किसानों के आय को दोगुना करने में महत्वपूर्ण कारक साबित होगा.

अशोक शर्मा

प्रेसीडेंट-एग्रीकल्चर सेक्टर, एमडी और सीईओ – महिंद्रा एग्री सॉल्यूशंस लिमिटेड