भारत और अमेरिका सहित कई देशों में नेट न्यूट्रैलिटी एक बड़ा सवाल बना हुआ है. अमेरिका में ट्रंप प्रशासन ने नेट न्यूट्रैलिटी से जुड़े पुराने कानून को पलट दिया है. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में लाए गए नेट न्यूट्रैलिटी कानून के विरोध में अमेरिका के रेग्युलेटर्स ने वोट किया.

नेट न्यूट्रैलिटी को खत्म करने का प्रस्ताव रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से कुछ दिन पहले नियुक्त भारतीय-अमेरिकी चेयरमैन अजित पाई ने रखा था. फेडरल कम्युनिकेशन ने इस प्रस्ताव के पक्ष में वोट किया. नेट न्यूट्रैलिटी के फैसले का विरोध करने वालों का तर्क है कि इससे यूज़र्स को नुकसान होगा और बड़ी कंपनियों को फायदा मिलेगा.

नेट न्यूट्रैलिटी को लेकर भारत में रह रह कर बहस होती रही हैं. वहीं जहां कुछ टेलीकॉम कंपनीज़ इसके समर्थन में हैं, तो कई इसके खिलाफ. नेट न्यूट्रैलिटी के समर्थन में यह तर्क दिया जाता है कि अगर इसे आज से दस साल पहले खत्म कर दिया जाता, तो शायद ऑरकुट और माई-स्पेस जैसी वेबसाइट्स सर्विस प्रोवाइडर को ज्यादा पैसे देकर अपनी स्पीड बढ़वा सकती थी. इससे वह दूसरी सोशल साइट्स के मुकाबले ज्यादा तेज़ खुलतीं और तेजी से प्रसार कर पातीं और इस कारण तब फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइटों को जड़ें जमाने का मौका ही नहीं मिल पाता. वहीं आज भी अगर ऐसा होता है तो इससे नई वेबसाइटों को मुश्किल का सामना करना पड़ेगा.

वीमियो और रेड्डिट जैसी छोटी वेबसाइट इंटरनेट पर अभी अपनी जगह बना रही है, अगर नेट न्यूट्रैलिटी के आभाव में इस तरह की वेबसाइट अमेरिका में बंद कर दी जाती हैं, तो भारत जैसे देशों में भी इनके यूज़र्स में कमी आएगी. भारत हमेशा से नेट न्यूट्रैलिटी को किसी भी तरह से प्रभवित करने का पक्षधर नहीं, लेकिन ये जरूर है अमेरिका में नेट न्यूट्रैलिटी खत्म होने से भारत सहित कई देश इससे प्रभावित होंगे.