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मुसलमानों को निशाना बनाने के लिए योगी सरकार ला रही है यूपीकोका: रिहाई मंच

लखनऊ: रिहाई मंच ने कहा कि 12 दिसंबर 2007 को आजमगढ़ के तारिक कासमी के एसटीएफ द्वारा अपहरण किए जाने के बाद बेगुनाहों की रिहाई के लिए उठने वाली आवाज को आज दस साल हो गए। 12 दिसंबर को आजमगढ़ से तारिक और 16 दिसंबर को खालिद के उठाए जाने के बाद एसटीएफ जैसी विशेष पुलिस बल के खिलाफ आम अवाम सड़क पर उतरी और उसने कहा कि हमारे बेगुनाह बेटों का नार्को टेस्ट कराने वाले अपहरणकर्ता एसटीएफ वालों का भी नार्को टेस्ट कराओ।

रिहाई मंच प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने कहा कि पूर्वी यूपी के छोटे से जिले आजमगढ़ से बेगुनाहों की रिहाई के लिए उठी अवाज सच्चे मायने में लोकतंत्र को स्थापित करने वाली आवाज थी। टाडा, पोटा, यूएपीए जैसे गैर लोकतांत्रिक कानूनों जिन पर गोष्ठियों-संगोष्ठियों में बहस होती थी, उसको तारिक-खालिद की रिहाई के लिए उठी अवाज ने संड़क पर लाकर खड़ा कर दिया। इस आंदोलन के दबाव ने जहां तत्कालीन मायवाती सरकार को इनकी फर्जी गिरफ्तारियों पर आरडी निमेष आयोग गठित करने पर मजबूर किया तो वहीं सपा को बेगुनाहों की रिहाई के वादे को चुनावी घोषणा पत्र में शामिल करने पर।

मंच प्रवक्ता ने कहा कि दस साल पहले भी यूपी कोका लाने के लिए तत्कालीन सरकार ने आतंकवाद के नाम पर बेगुनाहों की गिरफ्तारियां करवाईं और जिस साम्प्रदायिक राजनीति ने यह सब रचा आज वह सत्ता में आने के बाद यूपीकोका जैसे दुष्चक्र को फिर से रच रही है। जिसमें बेगुनाह मुसलमान बेमौत मारा जाएगा।

रिहाई मंच ने कहा कि 2007 में यूपी के वाराणसी, फैजाबाद, लखनऊ कचहरियों में हुए धमाकों के बाद तारिक-खालिद की जहां यूपी से तो वहीं जम्मू और कश्मीर के सज्जादुर्रहमान और अख्तर वानी की गिरफ्तारी हुई। बार एशोसिएशन ने फतवे जारी किए कि उनके मुकदमें नहीं लड़ने देंगे। ऐसे में लखनऊ के अधिवक्ता मुहम्मद शुऐब, बारांबकी में उनके साथी रणधीर सिंह सुमन और फैजाबाद में एडवोकेट जमाल खड़े हुए। एसटीएफ की शह पर मुकदमें न चलने देने के लिए इन पर जानलेवा हमले तक हुए जिसमें मुहम्मद शुऐब को लखनऊ कचहरी में पीटा गया। वहीं एडवोकेट जमाल का कोर्ट परिसर से बस्ता फेक दिया गया और वो चटाई पर बैठने को मजबूर हुए। शाहनवाज आलम ने कहा कि आरडी निमेष आयोग ने तारिक-खालिद की गिरफ्तारी को संदिग्ध करार देते हुए दोषी पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई की बात कही थी। लेकिन तत्कालीन सरकार जिसने बेगुनाहों को छोड़ने का वादा किया था ने उन्हें रिहा नहीं किया। उसकी कमजोर इच्छा शक्ति और खुफिया विभाग और तत्कालीन एडीजी लाॅ एण्ड आर्डर तथा वर्तमान भाजपा नेता बृजलाल, डीजीपी विक्रम सिंह, मनोज कुमार झां जैसे आईपीएस अधिकारियों ने खालिद की हिरासत में हत्या करवा दी। उन्होंने बताया कि कोर्ट ब्लास्ट केस में सज्जादुर्रहमान जहां लखनऊ से बरी हो चुके हैं वहीं तारिक कासमी जिनकी गिरफ्तारी को आरडी निमेष आयोग ने संदिग्ध बताया था को बाराबंकी के एक केस में आजीवन कारावास की सजा सुनाते हुए जज को कहना पड़ा कि उनको नौकरी करनी है, जो साबित करता है कि अदालतें तक सरकारों के दबाव में काम करने पर मजबूर हैं।

शाहनवाज आलम ने कहा कि रिहाई आंदोलन के दस साल पूरे होने पर 16 दिसम्बर को प्रेस क्लब, लखनऊ में रिहाई मंच ‘न्यायिक भ्रष्टाचार और लोकतंत्र’ विषयक सम्मेलन करेगा। जिसके मुख्य वक्ता प्रख्यात अधिवक्ता और मानवाधिकार कार्यकर्ता प्रशांत भूषण होंगे।

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