लखनऊ। योगी सरकार द्वारा यूपीकोका लाने पर प्रतिक्रिया देते हुए रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि इस तरह के कानून पुलिस को खुली छूट देकर निरंकुश बना देते हैं जिससे आम नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन होता है। साक्ष्य के कानून में पुलिस के समक्ष दिया गया किसी भी अभियुक्त का बयान महत्वहीन होता है तथा उसे न्यायालय साक्ष्य के तौर पर स्वीकार नहीं करता। लेकिन कन्ट्रोल आॅफ आर्गनाइज क्राइम वह चाहे किसी भी प्रदेश का हो पुलिस अधिकारियों को यह अधिकार देता है कि वह अभियुक्त का बयान जिस तरह चाहें दर्ज कर लें, न्यायालय उसे स्वीकार करेगा। यह कानून पुलिस को मनमाने तरीके से अभियुक्तों को प्रताड़ित करने का भी पूरा अधिकार देता है। यह किसी से छुपा नहीं है कि स्वीकारोक्ति के लिए पुलिस अधिकारी अभियुक्तों के साथ थर्ड डिग्री टार्चर का इस्तेमाल करते हैं। यह कानून पुलिस अधिकारियों को पूरी तरह से निरंकुश बना देगा और उनके द्वारा थर्ड डिग्री टार्चर के विरुद्ध किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जा सकेगी। प्रचारित किया जा रहा है कि इस कानून का इस्तेमाल भू-खनन माफियाओं के खिलाफ किया जाएगा जबकि ऐसे अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होता है और हर सत्ता के साथ उसका व्यवसायिक गठजोड़ हो जाता हैै। अब तक आतंकवाद के मामले में जितने भी मुकदमे कायम किए गए हैं, किसी में भी पुलिस द्वारा साक्ष्य नहीं जुटाया जा सका है। इस कानून से पुलिस को विवेचना के लिए मेहनत नहीं करनी होगी और वह स्वीकारोक्ति के आधार पर बेगुनाहों को सजा दिलाने में सफल होगी। इस तरह के काले कानून वंचित समाज पर राज्य द्वारा संगठित हमले की साजिश हैं। जिसके चलते आदिवासी समाज को नक्सलवाद-माओवाद के नाम पर जेल में ठूसा जाएगा तो वहीं मुसलमान को आतंकवाद के नाम पर।

मंच अध्यक्ष ने जागरुक नागरिकों से अपील की है कि इस तरह के काले कानूनों का विरोध संगठित होकर किया जाए ताकि वचिंत समाज का उत्पीड़न रोका जा सके।